खेत में किसान गेहूं, धान, जौ, मक्के जैसी फसल लगाते हैं, लेकिन इन फसलों के साथ ही खेत में कई पौधे उग आते हैं, जिन्हें खरपतवार कहा जाता है. असल में खरपतवार एक तरह के अनचाहे पौधें हैं, जो किसान की मर्जी के बिना ही उग आते हैं. तो वहीं ये खरपतवार फसलों की दुश्मन होती हैं. इसके पीछे की कहानी ये है कि खरपतवार, फसलों के साथ एक तरह का कम्पटीशन करते हैं और पानी, प्रकाश, पोषक तत्वों का उपयोग कर लेते है. ऐसे में फसल की ग्रोथ तो कम रहती है, लेकिन खरपतवार की ग्रोथ अधिक होती है, जिससे किसानों को नुकसान होता है. ऐसे में किसानों के लिए खरपतवार का नियंत्रण जरूरी हो जाता है. किसान तक की सीरीज खरीफनामा की इस कड़ी में खरपतवार के नियंत्रण पर पूरी रिपोर्ट...
फसल के साथ ही खरपतवार के पौधे तेजी से बढ़ते हैं. ऐसे में वह अपने पास की फसल को दबा देते हैं. नतीजन फसल कमजोर हो जाती है, वहीं दूसरी ओर खरपतवार फसल में रोग- कीटों को फैलाने का भी कार्य करते हैं. इससे फसल की पैदावार मे भारी गिरावट आती है. इसके आलावा इन खरपतवारों के बीज फसलों की उपज मिल कर इसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर के सहायक प्राध्यापक एवं कृषि विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष सिंह ने बताया कि खरपतवार से होने वाली हानि 20 से 50 फीसदी तक होती है और कई बार तो यह हानि 100 फीसदी तक भी पहुंच जाती है.
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डॉ. सिंह ने बताया कि अशुद्ध बीजों, पिछली फसल में उगे खरपतवारों के बीज, पशुओं के गोबर और चराई, एक खेत से दूसरे खेत में सिंचाई के पानी में ले जाए जाने वाले खरपतवारों के बीजों के प्रयोग से खरपतवारों का फैलाव होता है.
बिहार कृषि विश्वविद्यालय, भागलपुर के सहायक प्राध्यापक एवं कृषि विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष सिंह ने किसान तक से बातचीत में बताया कि शुरुआती दौर (कम्पटीशन काल) में ही खरपतवार का नियंत्रण किया जाए तो फसल को होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है. धान की मुख्य फसल खरीफ की तरह धान की रोपाई से लेकर 50 से 60 दिन, मक्का, ज्वार में बुवाई से 35 से 40 दिन तक और उड़द मूंग की बुवाई से लेकर 40 से 45 दिन तक कम्पटीशन काल है, इस समय खरपतवार फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. वहीं मार्च से जून तक गन्ने की फसल को खरपतवार सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. अगर फसलों की इस अवस्था तक खरपतवारों को रोका जाए तो फसलों में खरपतवारों से होने वाले नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकता है.
किसान तक से बातचीत में डॉ.आशुतोष सिंह ने कहा कि फसल से अच्छी उपज लेने के लिए फसलों को खरपतवारों से मुक्त रखना बहुत जरूरी है. आजकल खरपतवार नियंत्रण के लिए रासायनिक दवाओं का प्रयोग बहुत अधिक होता है, जिसके कारण कुछ खरपतवार मृदा में जोखिम को बढ़ाने के साथ-साथ खरपतवार रसायनों के प्रति अधिक सहनशील हो गए हैं. वहीं दूसरी ओर केवल निराई-गुड़ाई से खरपतवार नियंत्रण संभव नहीं है, क्योंकि मजदूरों की मजदूरी बढ़ रही है और मजदूरों की कमी भी आज के समय की एक बड़ी समस्या है. इस तरह आज के वक्त में किसान दो तरह की समस्याएं का सामना करना पड़ रहा है. इन समस्याओ से निजात पाने लिए एकीकृत खरपतवार नियंत्रण (आईडीएम) तकनीक सबसे बेहतर उपाय है. इससे खरपतवारों से फसल के हानि को रोका जा सकता है और लागत खर्च भी कम आएगी. उन्होंने कहा कि इस तकनीक में कृषि कार्यों, यांत्रिक विधि और रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल का प्रयोग किया जाता है.
खरपतवार से बचाव को लेकर डाॅ आशुतोष सिंह कहते हैं कि गर्मियों में खेतों की गहरी जुताई करने से किसान खरपतवार से बच सकते हैं, इससे खरपतवार नष्ट हो जाती है. गर्मी में खेत खाली ना रखें उसमें हरी खाद की बुवाई करेंं, जिससे खरपतवार नही उगगे और फसल को पोषक तत्व मिल जाएंगे. वहीं समुचित फसल चक्र अपनाना भी किसान खरपतवार से बच सकते हैं. जैसे धान की दो साल फसल लेने के बाद उस खेत में दूसरी फसल बोएं अगर धान की जगह सोयाबीन फसल उगाने से धान मे पाए जाने वाले जंगली लाल धान खरपतवार की संख्या कम हो जाती है. खरपतवार रहित प्रामाणित बीजो का प्रयोग करना चाहिए. बुवाई हमेशा लाइनों में करें तथा पौधों से पौधों की दूरी और लाइनों से लाइन की दूरी उचित दूरी पर रखें, जिससे निराई-गुड़ाई करने मे आसानी रहती है. उगे हुए खरपतवारों को नष्ट करने के लिए निराई-गुड़ाई करते रहें. खेतों में पूरी सड़ी हुई गोबर या कमपोस्ट की खाद का ही प्रयोग करें. खरपतवारों वाले क्षेत्रों से चराई करके आए हुए पशुओं की चराई खेतों में न कराएं .
खरपतवार को रोकने के लिए फसल लाइनों के बीच मेंं मल्चिग बिछाकर खरपतवार का नियन्त्रण करें .फसलों की मेड़ पर बुवाई करेंं यह विधि आपके नमी संरक्षण में भी सहायक होगी और खरपतवार भी नहीं उगंगे. खाली खेत ना छोड़ेंं, हरी खाद फसल बोने से खरपतवार कम उगते हैं. दूसरी ओर पोषक तत्व भी मिल जाते हैं. पौधों की नर्सरी उगाने वाले एरिया मे मृदा सौरीकरण का उपयोग कर पौधशाला मे खरपतवार नियन्त्रण के साथ-साथ कीट रोगों की भी रोकथाम कर सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में डॉ आशुतोष ने कहा कि इन सब उपायों से रोकथाम नहीं हो पा रही और खरपतवारों का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो खरपतवार नाशी दवाओं का प्रयोग करना चाहिए. इसके लिए किसानों यह जानना जरूरी है खरपतवार नाशी भी दो प्रकार के होते हैंं. एक फसल के अंकुरण से पहले प्रयोग होने वाला है, जिसका प्रयोग खरपतवार के उगने से पहले किया जाता हैं, जिसे प्रीइमरजेंस कहते है. जिनका प्रयोग फसल बुवाई के बाद जमने के पूर्व प्रयोग किया जाता है. वहीं फसल के अंकुरण के बाद प्रयोग होने वाले खरपतवारनाशी दवाएं होती है, जिसका प्रयोग खड़ी फसल में किया जाता है, उसे पोस्टइमरजेंस खरपतवारनाशी दवा कहते हैं. इन दोनों प्रकार के खरपतवारी नाशी दवाओं का फसलों में इस्तेमाल कृषि विशेषज्ञों से सलाह पर करना चाहिए. कब, कैसे और कितना दवा का प्रयोग करें. इस तरह खरपतवारों का नियन्त्रण किया जा सकता है. इन बताई गई बातों को अमल करेंगे तो फसलों में खरपतवार उगेंगे ही नहीं यदि आप खरपतवारों का नियन्त्रण करने में सफल रहे तो कम लागत में फसल की उपज अच्छी होगी.
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