Rice Export: अमेरिका बहुत छोटा बाजार, नहीं होगा कोई असर-ट्रेडर्स ने ट्रंप की धमकी को किया किनारे 

Rice Export: अमेरिका बहुत छोटा बाजार, नहीं होगा कोई असर-ट्रेडर्स ने ट्रंप की धमकी को किया किनारे 

भारत के कुल लगभग 2.1 करोड़ टन चावल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है.  प्रेम गर्ग ने बताया कि अमेरिका को बासमती चावल का एक्सपोर्ट देश के सालाना छह मिलियन टन शिपमेंट का 3 प्रतिशत से भी कम है, जबकि भारत के कुल चावल एक्सपोर्ट, करीब 21 मिलियन टन, में अमेरिका का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम है.

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Rice Export: अमेरिका बहुत छोटा बाजार, नहीं होगा कोई असर-ट्रेडर्स ने ट्रंप की धमकी को किया किनारे भारत के चावल निर्यात पर नहीं होगा कोई असर (सांके‍तिक तस्‍वीर)

अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की तरफ से भारत से आने वाले चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी गई है. लेकिन इसे लेकर भारतीय चावल निर्यातक कोई ज्‍यादा परेशान नहीं हैं. निर्यातकों का कहना है कि यह कोई बड़ी चिंता की बात नहीं है. निर्यातकों की मानें तो अमेरिका में मांग फिलहाल स्थिर बनी हुई है और वहां होने वाला निर्यात इतना कम है कि इसका सेक्टर पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा. इंडिया राइस एक्सपोर्टर फेडरेशन के अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने बताया कि अमेरिका को बासमती चावल का निर्यात देश के सालाना 60 लाख टन कुल शिपमेंट का तीन फीसदी से भी कम है. 

तीन फीसदी से कम निर्यात 

भारत के कुल लगभग 2.1 करोड़ टन चावल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी एक प्रतिशत से भी कम है.  प्रेम गर्ग ने बताया कि अमेरिका को बासमती चावल का एक्सपोर्ट देश के सालाना छह मिलियन टन शिपमेंट का 3 प्रतिशत से भी कम है, जबकि भारत के कुल चावल एक्सपोर्ट, करीब 21 मिलियन टन, में अमेरिका का हिस्सा एक प्रतिशत से भी कम है. उन्होंने कहा, 'हमारे कुल निर्यात बास्केट में अमेरिकी बाजार बहुत बड़ा नहीं है और बाकी नए बाजारों में भी निर्यात लगातार बढ़ रहा है.' 

डंपिंग के आरोपों को नकारा 

गर्ग ने अमेरिकी अधिकारियों की तरफ से भारत पर चावल की -'डंपिंग' के आरोपों को पूरी तरह से खारिज कर दिया. साथ ही दोहराया कि अमेरिका हर साल भारत से केवल सिर्फ 2.7 लाख टन चावल आयात करता है, जो ग्‍लोबली भारत की हिस्सेदारी की तुलना में बेहद कम है. उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है, जब अमेरिका में भारतीय चावल पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने को लेकर चर्चा चल रही है. भारतीय चावल पर पहले से ही 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया जा रहा है. यह शुल्क छह महीने पहले 10 प्रतिशत से शुरू हुआ था, जो बाद में बढ़कर 25 प्रतिशत हुआ और पिछले तीन महीनों में 50 प्रतिशत तक पहुंच गया. 

अमेरिका पर पड़ेगा बोझ 

गर्ग ने कहा कि इस टैरिफ का मांग पर 'कोई असर नहीं पड़ा है'. उन्होंने आगे कहा, 'नवंबर में निर्यात का स्तर पिछले साल के समान ही रहा है.' इंडस्‍ट्री से जुड़े लोगों ने कहा कि अगर टैरिफ में और इजाफा होता है तो उसका बोझ मुख्य तौर पर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर ही पड़ेगा. राइसविला ग्रुप के सीईओ सूरज अग्रवाल ने कहा कि अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले भारतीय बासमती और प्रीमियम नॉन-बासमती चावल एशियाई और मध्य पूर्वी समुदायों के लिए जरूरी खाद्य पदार्थ हैं. उन्होंने कहा, 'ये लग्जरी सामान नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जरूरत की चीजें हैं. मांग पर इसका असर नगण्य होगा. अतिरिक्त टैरिफ का पूरा बोझ सिर्फ अमेरिकी उपभोक्ताओं को ही उठाना पड़ेगा.' 

172 देशों में जाता चावल 

भारत अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर चावल निर्यात का 40 प्रतिशत हिस्सा सप्लाई करता है और 172 देशों को चावल भेजता है. भारतीय चावल की मांग लगातार मजबूत बनी हुई है. जहां खाड़ी देश बासमती चावल के लिए प्रमुख बाजार बने हुए हैं, वहीं अफ्रीकी देश तेजी से उभरते खरीदार के रूप में सामने आए हैं. गर्ग ने बताया कि उदाहरण के तौर पर बेनिन ने पिछले साल 60 हजार टन से ज्‍यादा बासमती चावल का आयात किया, जो एक नया बाजार है और 'बहुत तेजी से' बढ़ रहा है. 

लगातार बन रहे नए ग्राहक

रूस ने भी अब बासमती चावल की खरीद शुरू कर दी है और वह अपनी पारंपरिक नॉन-बासमती किस्मों तक सीमित नहीं रहा है. उन्होंने बताया कि ब्राजील और थाईलैंड जैसे बड़े चावल उत्पादक देश भी भारतीय बासमती का आयात कर रहे हैं. गर्ग ने कहा कि भारत ने चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश बनने का मुकाम हासिल कर लिया है. साथ ही किसानों को बेहतर दाम मिलने के चलते अगले साल देश में चावल का घरेलू उत्पादन 4 से 5 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है.

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