यूएन की रिपोर्ट में किए गए अजीब दावे कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ और एक बड़ी आबादी के लिए रोजगार का जरिया है. आज भी करीब 60 फीसदी आबादी इससे जुड़ी हुई है. दुनिया के कई देशों को अनाज और दूसरे कृषि उत्पाद सप्लाई करके, उनकी जरूरतें पूरी करने वाले भारत पर आज नए आरोप लग रहे हैं और आरोप भी ऐसे कि आपको पहले तो शायद सुनकर थोड़ी सी हंसी भी आएगी.दरअसल संयुक्त राष्ट्रसंघ की एक रिपोर्ट ने भारत में कृषि को दुनिया में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार करार दे दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र से मीथेन उत्सर्जन में भारत दुनिया में टॉप पर है. आपको बता दें कि मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो क्लाइमेट चेंज या ग्लोबल वॉर्मिंग को और बढ़ाती है. वैसे अमेरिका के प्रभाव वाले यूएन में भारत के बाद दूसरा नाम चीन का है.
17 नवंबर को जारी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की तरफ से आई ग्लोबल मीथेन स्टेटस रिपोर्ट 2025 के अनुसार, कृषि क्षेत्र से मीथेन उत्सर्जन में भारत दुनिया में सबसे आगे है. इस रिपोर्ट में कहा गया है, 'क्षेत्रों के बीच उत्सर्जन में काफी अंतर है. G20+ देश ग्लोबल एग्रीकल्चर मीथेन उत्सर्जन में 60 फीसदी से ज्यादा योगदान कर रहे हैं भारत, चीन, ब्राजील, अमेरिका और यूरोनियन यूनियन सबसे आगे हैं.' ब्राजील में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) के तहत 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (COP30) में इस रिपोर्ट को जारी किया गया. रिपोर्ट के अनुसार, कृषि वर्ष 2020 में ग्लोबल बायोजेनिक मीथेन उत्सर्जन का सबसे बड़ा सोर्स थी. यह हर साल 146 मिलियन टन, यानी कुल ग्लोबल इमीशन का करीब 42 फीसदी है. एनर्जी क्षेत्र से यह आंकड़ा थोड़ा ही आगे रहा. जो कारण इमीशन या उत्सर्जन के गिनाएं गए हैं, उनमें पशुधन 76 प्रतिशत, धान (चावल) की खेती 21 प्रतिशत और बाकी तीन फीसदी कृषि अवशेष जलाने का है.
संयुक्त राष्ट्र की तरफ से आगाह किया गया है कि दिसंबर 2024 तक लागू नीतियों के अलावा अगर अतिरिक्त उपाय नहीं किए गए तो कृषि क्षेत्र से मीथेन उत्सर्जन 2020 की तुलना में 2030 तक 7.8 फीसदी और 2050 तक 17 फीसदी तक बढ़ सकता है. यह वृद्धि मुख्य रूप से पशुधन की संख्या बढ़ने, खासकर अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में, के कारण होगी. रिपोर्ट में मीथेन को एक 'खतरनाक क्लाइमेट फोर्सर' और हानिकारक वायु प्रदूषक बताया गया है. कार्बन डाइऑक्साइड के बाद मानव-जनित ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देने वाली दूसरी सबसे महत्वपूर्ण गैस होने के कारण, मीथेन का कम समय में बहुत ज्यादा गर्मी बढ़ाने वाला प्रभाव होता है. इस गैस को ग्राउंड-लेवल ओजोन बनने का एक प्रमुख कारण भी बताया गया है. इसे इंसान की सेहत, कृषि उत्पादन और पारिस्थितिक तंत्रों को गंभीर नुकसान पहुंचाता है.
रिपोर्ट के अनुसार कृषि क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन मुख्य तौर पर दो वजहों से है-
रिपोर्ट का कहना है कि भारत, जो एक प्रमुख कृषि अर्थव्यवस्था है, दुनिया में सबसे बड़े पशुधन समूहों में से एक रखता है, जिनमें गाय, बकरी, भेड़ और मुर्गियाँ शामिल हैं. साथ ही यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक भी है. इस रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि कि कृषि मीथेन उत्सर्जन का एक बड़ा और बढ़ता हुआ स्रोत है, लेकिन इसके लिए कई कम लागत वाले और सामाजिक तौर पर फायदेमंद विकल्प भी उपलब्ध हैं.
रिपोर्ट के अनुसार धान की खेती में बेहतर जल प्रबंधन और सल्फेट प्रयोग जैसी तकनीकों को अपनाने से मीथेन के उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. दावा है कि ऐसा करने से 9.8 मिलियन टन प्रति वर्ष उत्सर्जन में कमी संभव है. साथ ही अगर कृषि अवशेषों का खुले में जलाना बंद किया जाए तो साल 2030 तक 4.7 मिलियन टन प्रति वर्ष उत्सर्जन में अतिरिक्त कमी लाई जा सकती है. वहीं पशुधन क्षेत्र में कई रणनीतियां मौजूद हैं जैसे एंटेरिक फर्मेंटेशन (आंतों में होने वाली पाचन प्रक्रिया) को कम किया जा सकता है और मल प्रबंधन में सुधार करके भी इसमें कमी लाई जा सकती है.
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