ट्रंप टैरिफ के बीच भारत का कृषि निर्यात बढ़ादुनिया भर के बाजारों में मची हलचल और ट्रंप के 'टैक्स (टैरिफ) बढ़ाने' के डर के बीच, भारत ने सबको हैरान कर दिया है. 17 नवंबर 2025 को आए सरकारी आंकड़े साफ बताते हैं कि मुश्किलें चाहे जो हों, भारतीय सामान की मांग दुनिया में कम नहीं हुई है. इसमें सबसे बड़ा कमाल हमारे खेती-किसानी यानी एग्रीकल्चर सेक्टर ने किया है. जहां एक तरफ मोबाइल और गैजेट्स खूब बिक रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हमारे काजू, कॉफी और चावल ने विदेशी बाज़ारों में झंडे गाड़ दिए हैं.
'टैरिफ वॉर' के शोर को अगर छोड़ दें, तो खुशी की बात यह है कि अमेरिका आज भी हमारा सबसे बड़ा और भरोसेमंद ग्राहक है. वहां भेजे जाने वाले सामान में 10 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है. यह साबित करता है कि नेता या नीतियां बदलने से हमारी क्वालिटी की मांग नहीं बदलती. हमारे किसानों ने दिखा दिया है कि वे अपनी मेहनत से किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं और देश का खजाना भरने का पूरा दम रखते हैं.
साल की शुरुआत में हर किसी को बस एक ही डर सता रहा था—'ट्रंप टैरिफ' का डर. सबको लग रहा था कि अगर अमेरिका ने (टैरिफ) बढ़ा दिए, तो भारत का व्यापार गिर जाएगा और हमें नुकसान होगा. चालू वित्त वर्ष के पहले 6 महीनों +अप्रैल से अक्टूबर 2025 में भारत ने दुनिया भर में कुल 491.80 अरब डॉलर का माल और सेवाएं बेची हैं. यह पिछले साल के मुकाबले 4.84% ज्यादा है.
जहां सामान बेचने में ठीक-ठाक बढ़त रही, वहीं हमारे सर्विस सेक्टर में 237.55 अरब डॉलर का कारोबार किया, जिसने कुल निर्यात को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया है. जब दुनिया महंगाई से जूझ रही थी, तब भारत ने दुनिया का पेट भरने का काम किया. अक्टूबर 2025 के आंकड़े बताते हैं कि कृषि निर्यात में 8.8% की जोरदार बढ़ोतरी हुई है जिसमें मुख्य रूप स काजू निर्यात में 126.85% की रिकॉर्डतोड़ बढ़ोतरी हुई. यानी मांग दुगुनी से भी ज्यादा हो गई.
गैर-बासमती चावल की मांग 27.53% बढ़ी. दुनिया भर में भारत के साधारण चावल की खूब बिक्री हुई. वही बफेलो मीट और दूध के उत्पादों में लगभग 31 फीसदी का उछाल आया. वही कॉफी और मछली/झींगा के निर्यात में भी 11% से 17% तक की बढ़ोतरी देखी गई.
बासमती चावल: बासमती चावल का निर्यात थोड़ा घटा है. यह 2.86 अरब डॉलर से गिरकर 2.76 अरब डॉलर रह गया. अमेरिका में कड़े नियमों और टैरिफ के डर से मसालों और बासमती के निर्यात में थोड़ी रुकावट आई. हालांकि, जानकारों का मानना है कि अमेरिका ने हाल ही में खाने-पीने की कुछ चीजों पर टैक्स कम किया है, जिससे आने वाले महीनों में मसालों और सब्जियों का निर्यात फिर से रफ्तार पकड़ सकता है.
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि हमने दुनिया को माल बेचा तो खूब, लेकिन खरीदा उससे भी ज्यादा. अक्टूबर महीने में भारत का आयात (Import) करीब 15% बढ़ गया. सिर्फ बेचने में ही नहीं, बल्कि खाने-पीने की चीजें बाहर से मंगवाने में भी तेजी आई है. इस साल की पहली छमाही में खाने के सामान का आयात 5.9% बढ़ा है. इसमें खास बात यह है कि हम अमेरिका से भारी मात्रा में फल और सूखे मेवे मंगवा रहे हैं. वहीं, हमारे खाने के आयात में सबसे बड़ा हिस्सा 'खाने के तेल' का है, जिसमें शुरुआत के तीन महीनों में ही 13.5% का बड़ा उछाल आया है.
तमाम राजनीतिक बयानबाजी और 'टैरिफ वॉर' की खबरों को एक तरफ रख दें, तो सबसे अच्छी बात यह है कि अमेरिका आज भी भारत के लिए सबसे बड़ा और भरोसेमंद ग्राहक बना हुआ है. अमेरिका को भेजे जाने वाले सामान में 10% से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है, जो यह साफ करती है कि नीतियां या नेता बदलने से भारतीय उत्पादों की मांग पर कोई असर नहीं पड़ा है. दुनिया को हमारे सामान की क्वालिटी पर पूरा भरोसा है. खासकर हमारे किसानों ने यह साबित कर दिया है कि वे किसी भी मुश्किल का डटकर सामना कर सकते हैं और अपनी मेहनत से देश का खजाना भरने का दम रखते हैं.
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