Edible Oil Import: खाद्य तेल आयात का पैटर्न बदला, पाम ऑयल की हिस्सेदारी घटी, इन तेलों का दबदबा बढ़ा

Edible Oil Import: खाद्य तेल आयात का पैटर्न बदला, पाम ऑयल की हिस्सेदारी घटी, इन तेलों का दबदबा बढ़ा

भारत के खाद्य तेल आयात में बड़ा बदलाव दिख रहा है. पाम तेल की हिस्सेदारी घटी है जबकि सोयाबीन और सूरजमुखी तेल की मांग बढ़ी है. इंडोनेशिया-मलेशिया की नीतियों और आपूर्ति सीमाओं ने पाम तेल को प्रभावित किया है.

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खाद्य तेल आयात का पैटर्न बदला, पाम ऑयल की हिस्सेदारी घटी, इन तेलों का दबदबा बढ़ाखाद्य तेल आयात में पाम ऑयल का हिस्‍सा घटा. (सांकेतिक फोटो)

भारत के खाद्य तेल आयात पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. लंबे समय से आयात टोकरी में प्रमुख भूमिका निभाने वाला पाम तेल अब अपनी जगह बनाए रखने के लिए जूझ रहा है, जबकि सोयाबीन और सूरजमुखी तेल की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है. इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) का कहना है कि यह बदलाव पूरी तरह बाजार की ताकतों और वैश्विक आपूर्ति परिस्थितियों से प्रेरित है. पाम तेल का आयात पिछले कुछ वर्षों से 70 से 80 लाख टन के आसपास स्थिर है.

वहीं सोयाबीन तेल का आयात 35 लाख टन से बढ़कर करीब 50 लाख टन और सूरजमुखी तेल का आयात 25 लाख टन से बढ़कर लगभग 35 लाख टन तक पहुंच गया है. इस प्रवृत्ति के पीछे मुख्य कारण वैश्विक कीमतों का व्यवहार और आपूर्ति में उतार-चढ़ाव है.

सोयाबीन-सूरजमुखी तेल की कीमतें ज्‍यादा स्थिर

IVPA ने कहा कि इंडोनेशिया और मलेशिया में बायोडीजल नीति और मौसम संबंधी कारणों से पाम तेल की आपूर्ति सीमित रही है, जिससे इसकी कीमतें ऊंची बनी हुई हैं. इसके उलट, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल अपेक्षाकृत स्थिर कीमतों और विविध स्रोतों  जैसे दक्षिण अमेरिका और ब्लैक सी क्षेत्र से आयात के कारण भारतीय बाजार को अधिक लचीलापन प्रदान कर रहे हैं.

घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को नुकसान

संगठन ने कहा कि विजन को प्रभावित करने वाला एक अन्य पहलू नेपाल से शुल्क-मुक्त रिफाइंड सोयाबीन तेल का आयात है, जो SAFTA और भारत-नेपाल व्यापार संधि के तहत संभव हुआ है. इससे जहां क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा मिला है, वहीं घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को नुकसान हुआ है. बिना शुल्क के आने वाला रिफाइंड तेल भारतीय रिफाइनरियों की क्षमता उपयोग दर को घटा रहा है और उनके लाभ मार्जिन पर दबाव बना रहा है.

मिश्रित तेलों का बढ़ रहा चलन

उपभोक्ता प्रवृत्तियों में भी बदलाव दिख रहा है. शहरी परिवार और ब्रांडेड उत्पाद निर्माता अब ‘सॉफ्ट’ और मिश्रित तेलों को अधिक पसंद कर रहे हैं. स्वास्थ्य जागरूकता, स्वाद और विपणन अभियानों ने इस रुझान को मजबूत किया है. इसके परिणामस्वरूप भारत की खाद्य तेल खपत और आपूर्ति संरचना में धीरे-धीरे विविधता बढ़ रही है.

तिलहन क्षेत्र में वैल्‍यू चैन को मजबूत करने की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि आगे का रास्ता भारत की पूरी वैल्यू चेन को मजबूत करने में है. ति‍लहन उत्पादन, बीज गुणवत्ता, किसानों को तकनीकी सहायता, बाजार तक पहुंच और निष्पक्ष व्यापार ढांचे को सुदृढ़ करना जरूरी होगा. इससे न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि उपभोक्ताओं के लिए कीमतें भी संतुलित रहेंगी.

भारत का खाद्य तेल क्षेत्र हमेशा से वैश्विक परिवर्तनों के अनुरूप खुद को ढालता आया है. मौजूदा बदलाव भी उसी क्रम की एक कड़ी है. यह कोई योजनाबद्ध परिवर्तन नहीं बल्कि कीमतों, नीतियों और आपूर्ति के अंतर का परिणाम है. अब चुनौती इस बदलाव को रणनीति में बदलने की है ताकि घरेलू मूल्य संवर्धन, रोजगार और दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सके.

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