
महाराष्ट्र में जब हापुस आम की बात होती है तो सबसे पहले दिमाग में कोंकण का ही नाम आता है. इसी में जुन्नर प्रांत भी आता है जहां सातवाहन काल यानी करीब दो हजार साल पहले हापुस आम की खेती होती थी. हापुसबाग और अमरापुर गांव इसके गवाह हैं. इसका ऐतिहासिक प्रमाण जानने और समझने के लिए 'आजतक' संवाददाता सीधा उस स्थान पर गए जहां दो हजार साल पहले हापुस आम की खेती के प्रमाण मिलते हैं. यह स्थान जुन्नर में है. साक्ष्यों से पता चलता है कि यहां हबशी सरदार मलिक अंबर ने जुन्नर के पूर्व में तोलेजंग महल का निर्माण किया और क्षेत्र में आम लगाए. इस बाग में पानी की आपूर्ति के लिए बादशाह ने एक झील का निर्माण मिट्टी का बांध बनाकर किया था. इसलिए समय के साथ इस क्षेत्र को हाफीज बाग के नाम से जाना जाने लगा.
हापुस आम का कनेक्शन मुगल बादशाह औरंगजेब से भी रहा है. मुगल काल के दौरान सम्राट औरंगजेब के जुन्नर प्रांत में 350 पेड़ थे. इतिहास के शोधकर्ता प्रोफेसर लहू गायकवाड़ की किताब के अनुसार, सेतु माधवराव पगड़ी द्वारा लिखित 'मुगल दरबार के बातमी पत्र' में औरंगजेब और हापुस आम के बीच कनेक्शन की बातें दर्ज हैं. उसी काल में मुहर्रम खां सरकारी बागों के दरोगा थे. उन्होंने औरंगजेब को एक पत्र में जुन्नर में आमों के बारे में इस प्रकार सूचित किया - "जुन्नर परगने के पास 350 इरसाली आम के पेड़ हैं. अब पेड़ों पर मुहर लग चुकी है. इन पेड़ों की देखभाल के लिए किसी को नियुक्त किया जाना चाहिए."
इस पर औरंगजेब बादशाह ने सूचित किया कि, "जब आम तैयार हो जाएं तो उन्हें संभालकर भेजना चाहिए. इसलिए जुन्नर में रहमतुल्ला को भेजा है. इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आम की मुहर गिर ना जाए." इससे यह स्पष्ट होता है कि जुन्नर का हापुस आम औरंगजेब के दरबार में पेश होता था. इसके अलावा औरंगजेब खुद इस आम के बगीचे पर विशेष ध्यान दे रहे थे.
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जुन्नर क्षेत्र में आम की खेती का इतिहास सातवाहन काल से शुरू होता है. यानी 2000 साल पहले से इसकी खेती हो रही है. कहा जाता है कि हापुस आम की पहचान भारत में चीनी यात्री 'ह्यु-एन-त्संग' द्वारा की गई थी. लेकिन इससे 600 साल पहले 'गाथा सप्तशती' में इस आम के बारे में कई गाथाओं में बातें लिखी गई हैं. ऐतिहासिक साक्ष्य हैं कि पुर्तगालियों ने गोवा में हापुस लगाए थे, लेकिन उससे पहले जुन्नर में इरसल, कलमी, रायवल आम उगाए थे.
जुन्नर से लगभग 10 किमी की दूरी पर 'येनेरे गांव' है. औरंगजेब का यह गाव पसंदीदा गांव था. यहां की खेती में उन्होंने फलदार पेड़ लगवाए थे. शिवनेरी के किलेदार को इन बगीचों की देखभाल की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. 16 मार्च 1703 को जुन्नर के वाके नवीस इमाम अल्ली द्वारा औरंगजेब को भेजे गए एक पत्र के अनुसार, जुन्नर क्षेत्र (परगना) में 350 आम के पेड़ थे. इन पेड़ों की देखभाल के लिए एक मददगार की जरूरत थी. इसलिए उन्होंने औरंगजेब के सरकारी बागानों का प्रबंधन देखने वाले 'दरोगा' मुहर्रम खान को सूचित किया कि जुन्नर क्षेत्र में उनके आम के पेड़ों में मुहर आया है, इसलिए आम के पेड़ों की देखभाल के लिए एक सहायक नियुक्त किया जाना चाहिए. औरंगजेब ने तुरंत पीर मुहम्मद के बेटे रहमतुल्लाह को दरोगा नियुक्त कर दिया. इसलिए आज भी 'येनेरे' गांव और जुन्नर क्षेत्र के गांव मधुर मीठे और रसीले आमों के लिए प्रसिद्ध हैं.
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शिवनेरी किले के आसपास 50 से 200 साल पुराने आम के अच्छे फलदार बाग हैं. इस तालुकों में मुख्य रूप से येनेरे, तांबे, काले, दारखीलवाडी, पारुंडे, वैष्णवधाम, निरगुडे, बोतार्डे, शिंदे रालेगण, खामगांव, माणिकडोह, बेलसर, चिंचोली, वडज, सुराले, वानेवाड़ी, धालेवाड़ी, कुसूर, गोदरे, काटेडे, तेजुर, पुर, शिरोली, कुकडेश्वर आदि गांवों में किसान आम का उत्पादन बड़े पैगामे पर करते हैं. इस क्षेत्र का आम देर से आता है और आकार में बड़ा होता है.
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