गोवर्धन पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को की जाती है. इसे अन्नकूट भी कहा जाता है. दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है. ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने देवताओं के राजा इंद्र के घमंड को तोड़ने और गोकुल के लोगों को उनके क्रोध से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था. आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा की तिथि, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त.
इस वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 14 नवंबर को शाम 4:18 बजे से शुरू होकर 15 नवंबर को दोपहर 2:42 बजे तक है. गोवर्धन पूजा 14 नवंबर को मनाई जाएगी और पूजा का शुभ समय सुबह 4.18 बजे से 8.43 बजे तक है.
गोवर्धन पूजा के लिए घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है. इसे फूलों और दीपों से सजाया जाता है, प्रसाद और फल चढ़ाए जाते हैं. पूजा के बाद गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पूजा करने और गायों को गुड़-चना खिलाने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं.
हिन्दू मान्यता के अनुसार एक बार ब्रज में पूजा का कार्यक्रम चल रहा था. सभी ब्रजवासी पूजन कार्यक्रम की तैयारी में लगे हुए थे. यह सब देखकर भगवान श्रीकृष्ण व्याकुल हो जाते हैं और अपनी मां यशोदा से पूछते हैं- मां आज ये सभी ब्रजवासी किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं. तब यशोदा माता ने बताया कि वे सभी इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं. तब श्रीकृष्ण फिर पूछते हैं कि वे इंद्र देव की पूजा क्यों करेंगे, तब यशोदा बताती हैं कि इंद्र देव वर्षा कराते हैं और उस वर्षा के कारण अन्न की पैदावार अच्छी होती है. जिससे हमारी गायों के लिए चारा उपलब्ध होता है. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वर्षा करना इंद्रदेव का कर्तव्य है. इसलिए उनकी पूजा न करके गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि गायें गोवर्धन पर्वत पर चरती हैं. इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे.
इससे इंद्रदेव क्रोधित हो गए और गुस्से में आकर मूसलाधार बारिश करने लगे. जिससे हर तरफ अफरा-तफरी मच गई. सभी ब्रजवासी अपने पशुओं की सुरक्षा के लिए भागने लगे. तब श्रीकृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासियों ने पहाड़ों पर शरण ली. जिसके बाद इंद्रदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी. इसके बाद से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा शुरू हुई. इस पर्व में अन्नकूट यानी अन्न और गोवंश की पूजा का बहुत महत्व है.
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