गन्ना गाथा : पिछले कुछ वर्षों से भारतीय चीनी उद्योग स्वाभाविक रूप से काफी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है. एक तरफ इस फसल के बेहतर उत्पादन के लिए मौसम ने साथ दिया है तो दूसरी तरफ पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम बड़े पैमाने पर शुरू हो गया है. गन्ना बकाया बढ़ने की लंबे समय से चली आ रही समस्या लगभग शून्य हो गई और निर्यात रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है. चीनी मिलों के लिए गन्ना मूल्य भुगतान की सबसे बड़ी समस्या लगभग समाप्त हो गई है, जो लगभग सभी समस्याओं की जननी थी. इथेनॉल सम्मिश्रण (Ethanol Blending) ने चीनी क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला दी है. इससे गन्ना किसानों से लेकर चीनी मिल कंपनियों तक में भारी सुधार आया है और मिलें किसानों को गन्ने का बकाया पहले की तुलना में तेजी से भुगतान करने में सक्षम हो गई हैं. आखिर एक दशक पहले जो चीनी उद्योग शापित हो गया था, गन्ना गाथा में जानेंगे आखिर कैसे इथेनॉल ने उस चीनी उद्योग की छवि बदली है. आज किसान से लेकर चीनी मिल दोनों संतुष्ट हैं.
पेट्रोल में इथेनॉल सम्मिश्रण के कारण गन्ने की मांग बढ़ गई और विदेशों में चीनी की कीमतें और बढ़ गईं. इससे चीनी मिलें धीरे-धीरे मजबूत हुईं जिससे गन्ने का बकाया भुगतान समय पर होने लगा. इससे किसानों को अपनी खेती का क्षेत्र बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन मिला है. गांव चितावा जिला फैजाबाद, उत्तर प्रदेश के किसान सीताराम वर्मा ने किसान तक को बताया कि उनके पास तीन एकड़ खेत है. उन्होंने किसान को बताया कि वे 1.5 एकड़ में गन्ने की खेती करते हैं. अब अच्छी प्रजाति आने से गन्ने का उत्पादन 400 से 425 क्विंटल होता है और गन्ना मिल में गन्ना कटाई के 15 दिन के अंदर भुगतान मिल जाता है. इसके चलते गन्ने की खेती अब झंझट मुक्त हो गई है.
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इस बदलाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि संसद की स्थायी समिति की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 2013-14 (अक्टूबर से सितंबर) के चीनी सीजन में मिलों को इथेनॉल से करीब 1,368 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. 2021 में 22वें सीजन के अंत तक यह बढ़कर लगभग 21,000 करोड़ रुपये हो गया है. तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) ने विभिन्न ग्रेड के इथेनॉल के लिए अलग-अलग कीमतें निर्धारित कीं और नई क्षमताएं जोड़ने के लिए सब्सिडी वाले ऋण दिए, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि इसके कारण चीनी मिल कंपनियों ने 2013-14 में केवल 3.8 करोड़ लीटर इथेनॉल की आपूर्ति की थी, जो 2021-22 सीज़न में बढ़कर लगभग 44 करोड़ लीटर हो गई है.
पेट्रोल में इथेनॉल का मिश्रण 2013-14 में 1.53 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में लगभग 10.02 प्रतिशत हो गया और 2022-23 सीज़न के अंत तक अगले कुछ महीनों में 12 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा. चीनी उद्योग के इथेनॉल पर स्थानांतरित होने के कारण 2018-19 में भारत ने 33 लाख टन कम चीनी का उत्पादन किया, जो 2022-23 सीज़न तक बढ़कर 4.3 लाख टन हो गया. यह वृद्धि निर्यात के बजाय पेट्रोल में इथेनॉल के मिश्रण के कारण हुई थी. इसमें भी भारी बढ़ोतरी हुई है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2017-18 के चीनी सीजन में करीब 6.2 लाख टन चीनी का निर्यात हुआ था, जो 2021-22 सीजन में अब तक के सबसे ऊंचे स्तर 110 लाख टन पर पहुंच गया है. चालू 2022-23 सीज़न में भारत ने लगभग 60-61 लाख टन चीनी का निर्यात किया.
इथेनॉल सम्मिश्रण और अधिक निर्यात की दोनों नीतियों का मतलब था कि सिस्टम में जो भी अधिक गन्ना उत्पादन होता था, उसका उपयोग इथेनॉल के लिए किया जाता है और किसानों को समय पर भुगतान मिलना शुरू हो गया. 2017-18 चीनी सीजन में, चीनी एफआरपी 9.5 प्रतिशत थी, इसका 255 रुपये प्रति क्विंटल मूल्य निर्धारित था. जब औसत रिकवरी के लिए 10.25 प्रतिशत बढ़ गया तो 305 रुपये प्रति क्विंटल दाम हो गया. जिन राज्यों ने अपना एसएपी दिया है, उनमें वृद्धि हुई है, जैसे पंजाब, हरियाणा, यूपी और उत्तराखंड में 2017-18 और 2022-23 सीज़न के बीच, एसएपी 300 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर 380 रुपये प्रति हो गया. दूसरी ओर यूपी में यह 315 रुपये से बढ़कर 350 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. अहम बात यह है कि गन्ने का बकाया पूरी तरह से गायब हो गया है और संसद में सरकार के बयान के अनुसार, 2018-19 और 2021-22 के बीच किसानों को बकाया गन्ना मूल्य का लगभग 100 प्रतिशत भुगतान किया गया है.
भारत के लगातार उच्च चीनी उत्पादन का श्रेय अद्भुत किस्म Co-0238 को भी दिया जा सकता है. Co-0238 की न केवल मौजूदा गन्ने की किस्मों की तुलना में प्रति हेक्टेयर अधिक पैदावार होती है, बल्कि इसमें सुक्रोज भी होता है. पहले से जहां किसानों को लाभ हुआ वहीं दूसरे से मिल मालिकों का दिल खुश हो गया. गन्ना के कृषि वैज्ञानिको के अनुसार गन्ने की अच्छी किस्मों के आने से गन्ने की पैदावार अधिक हुई है. यूपी में किसानों ने Co-0238 का उपयोग करके प्रति हेक्टेयर लगभग 62,000 रुपये अधिक कमाए, जबकि मिल मालिकों के लिए रिकवरी लगभग 1.2 -2.0 प्रतिशत बढ़ी है. प्रति हेक्टेयर अधिक रिटर्न और अधिक रिकवरी के कारण कुछ ही समय में गन्ना सीओ-0238 उत्तर प्रदेश के आम गन्ना किसान की पहली पसंद बन गया है.
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एक दशक पहले गन्ना उत्पादक किसान से लेकर चीनी मिल मालिक तक सभी इस क्षेत्र को घाटे का सौदा मान रहे थे क्योंकि गन्ना उत्पादन से लेकर चीनी निर्यात तक सभी श्रृंखला में दिक्कतें थीं. भारतीय चीनी क्षेत्र शापित था. ऐसा आमतौर पर देखा जाता है क्योंकि तीन से चार वर्षों तक चीनी के अधिक उत्पादन के बाद एक से दो वर्षों तक चीनी उत्पादन में गिरावट आती है. चीनी के अधिक उत्पादन वाले सालों में चीनी की कीमत में गिरावट की वजह से गन्ना किसानों का गन्ना मूल्य बकाया बढ़ गया. भुगतान मिलने में देरी के कारण किसानों का गन्ना की खेती से मोहभंग होने लगा. इसके कारण गन्ने की उपलब्धता कम हो गई और चीनी उत्पादन में गिरावट आई. 2010-11 के चीनी सीज़न के बाद से चीनी क्षेत्र में समस्या काफी कम हो गई है और चीनी मिल उद्योग लगातार घरेलू जरूरतों से अधिक चीनी का उत्पादन कर रहा है. पिछले 10 वर्षों में, केवल 2016-17 में महाराष्ट्र और कर्नाटक में सूखी चीनी के उत्पादन में कमी आई थी.
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