रेशम को दुनिया को सबसे पुराना धागा कहा जाता है, जिसकी खोज 118 ईसा पूर्व हुई थी. तब से लेकर अब तक रेशम का जादू दुनियाभर में कायम है. रेशम के धागों से बने कपड़े राजा से लेकर रंग तक को प्रभावित करते हैं. मसलन, दुनियाभर के बाजाराें में रेशम के धागे की कीमत बेहद ही ऊंची है और रेशम के ये धागे किसान अपने पसीने से तैयार करते हैं, लेकिन इसके इतर रेशम के कारोबार की बात करें तो ये कारोबार अभी तक फीका नहीं हुई और भविष्य में इस कारोबार की तरक्की मानी जाती है. कुल जमा रेशम की कीड़े किसी को भी मालामाल बना सकते हैं. मसलन, रेशम के कीड़े युवा पीढ़ी के लिए करियर के लिहाज से भी हिट है. आइए जानते हैं कि 12वीं के बाद युवा रेशम के कीड़ों से कैसे मालामाल हो सकते हैं.
कृषि एक उभरता हुआ सेक्टर है. 12वीं के बाद युवा कृषि सेक्टर से जुड़े कई कोर्स कर सकते हैं. इन्हीं में से एक कोर्स बीएसएसी सेरीकल्चर है, जिसे सामान्य भाषा में रेशम के कीड़ों के पालन और रेशम उत्पादन से संबंधित पाठ्यक्रम कहा जा सकता है.12वीं के बाद रेशम के कीड़ों से जुड़े कारोबार और संस्थानों में दखल के लिए बीएसएसी सेरीकल्चर किया जा सकता है. ये कोर्स चार साल का है. जिसे करने के बाद रेशम के कीड़ों से जुड़ी अकादमिक और व्यवसायिक गतिविधियां की जा सकती है.
बीएसएसी सेरीकल्चर रेशम के कीड़ों से संबंधित अहम कोर्स है. ये तीन साल का डिग्री काेर्स है. इस कोर्स की बात की जाए तो देश की चुनिंंदा यूनिवर्सिटी ही बीएसएसी सेरीकल्चर ही कराती हैं. जिनमें असम एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी जोराहाट, शेर 'ए' कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टेक्नोलॉजी कश्मीर, तमिलनाडु एग्रीकल्चर कोएंबटूर ही ये कोर्स कराती हैं. सभी यूनिवर्सिटी में ये कोर्स 4 साल का है.
बीएससी सेरीकल्चर रेशम के कीड़ों के पठन-पाठन से जुड़ा पाठ्यक्रम है. इस पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्र रेशम उत्पादन के बारे में भी जान सकते हैं. असल में इस पाठ्यक्रम के माध्यम से छात्र रेशम के कीड़ों को पालने का तरीका, उसकी तकनीक, उत्पादन, बाजार से जुड़ी बात सीख सकेंगे. इस पाठ्यक्रम को करने के बाद छात्र इसी में पीजी की डिग्री ले सकते हैं. तो वहीं रेशम से जुड़ा हुआ कुटीर उद्योग भी स्थापित कर सकते हैं.
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