
एक तरफ़ 7 लाख करोड़ का आंकड़ा..दूसरी तरफ़ 23 लाख करोड़ की संख्या!...ये कोई साधारण गुणा-गणित नहीं, बल्कि भारतीय किसानों की तकदीर बदलने वाला नंबर है. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के आंकड़ों की तहों में झांकें तो आपको हर पन्ने पर एक अनकही दास्तां मिलेगी. शायद ही आपने सोचा हो कि सत्ता बदलते ही किसानों का नसीब किस कदर उलट-पलट जाता है? जहां मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अपने दस साल के कार्यकाल में किसानों के हाथों में 7 लाख करोड़ रुपये थमाए, वहीं मोदी सरकार ने अपने दौर (2014-24) में किसानों को दी जाने वाली MSP को 23 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचा दिया. यह सिर्फ संख्याओं का ही फासला नहीं, बल्कि नीतियों की नब्ज, प्राथमिकताओं का पैमाना और किसानों के प्रति नजरिये की मिसाल है.
मगर सवाल यह भी उठता है, क्या मोदी सरकार ने वाकई किसानों की आमदनी में क्रांति ला दी? या फिर ये सिर्फ़ महंगाई के साथ बढ़ती रकम का खेल है? क्या सरकार ने एमएसपी पर फसलों की खरीद भी बढ़ाई है और क्या वाकई आर्थिक संजीवनी ने ज़मीनी हकीकत बदली है? आइए, इन आंकड़ों आईने में दोनों सरकारों की कृषि-सपनों और हकीकत को सिलसिलेवार तरीके से टटोलते हैं! जब भी यह सवाल आएगा कि एमएसपी पर फसलों की सबसे ज्यादा खरीद किसने की या फिर एमएसपी पर सबसे ज्यादा खर्च किसने किया तो निसंदेह मोदी सरकार का नाम आएगा. एमएसपी के मामले में बीजेपी और कांग्रेस की बात होगी तो किसानों को फायदा देने में बीजेपी का पलड़ा भारी पड़ेगा.
दरअसल, एमएसपी किसानों की अच्छी इनकम का एक आधार है. लेकिन, यह कड़वा सच है कि सरकार के कुछ समर्थक एमएसपी की व्यवस्था के विरोधी हैं. इसके बावजूद एक सच यह भी है कि मनमोहन सिंह यूपीए के दस साल के मुकाबले एनडीए के दस साल में एमएसपी पर तीन गुना से अधिक रकम खर्च की गई. बहरहाल, मोदी सरकार के दौरान न सिर्फ धान, गेहूं की सरकारी खरीद बढ़ी है बल्कि दलहन, तिलहन और कपास की खरीद में भी काफी वृद्धि हुई है. यानी सरकार क्रॉप डायवर्सिफिकेशन को लेकर भी गंभीर दिख रही है.
वर्ष 1966-67 में पहली बार गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय हुआ था. उसके बाद जो भी सरकारें आईं उन्होंने इस व्यवस्था में न सिर्फ नई फसलों को जोड़ा बल्कि खरीद भी बढ़ाई. मोदी सरकार का भी रुख बता रहा है कि वो एमएसपी पर फसलों की खरीद को लेकर पीछे नहीं हटेगी. बल्कि एमएसपी पर फसलों की खरीद बढ़ाएगी.
कोई भी सरकार लाल बहादुर शास्त्री द्वारा बनाई गई इस व्यवस्था को बंद नहीं कर सकती, क्योंकि खाद्य सुरक्षा के लिए जो अनाज चाहिए उसे हम आउटसोर्स नहीं कर सकते. उसे सरकार को किसानों से ही खरीदना होगा. बहरहाल, आंकड़े बता रहे हैं कि मोदी सरकार ने एमएसपी देने का नया रिकॉर्ड बनाया है. एमएसपी के रूप में किसानों को इतना पैसा दिया है कि पहले कभी किसी सरकार ने सोचा भी नहीं होगा.
अब कुछ लोग यह सवाल कर सकते हैं कि जब मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार के मुकाबले एमएसपी पर तीन गुना से अधिक रकम खर्च की है तो फिर किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं? इस समय सरकार जो A2+FL फार्मूले के आधार पर एमएसपी घोषित कर रही है, उसे भी मिलने की गारंटी नहीं है. ऐसे में किसान संगठन एमएसपी को लेकर दो महत्वपूर्ण मांग कर रहे हैं. पहली मांग C-2 फार्मूले के आधार पर दाम तय करने की है.
धान की वर्तमान एमएसपी 2,300 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि C-2 वाली एमएसपी 3,012 रुपये प्रति क्विंटल होगी. यानी किसानों को प्रति क्विंटल 712 रुपये का नुकसान हो रहा है. इसी तरह अरहर का वर्तमान एमएसपी 7550 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि सी-2 फार्मूले वाली एमएसपी 9,756 रुपये प्रति क्विंटल होगी है. इस तरह किसानों को अरहर के मामले में 2,206 रुपये प्रति क्विंटल की आर्थिक चोट लग रही है.
किसानों की दूसरी मांग एमएसपी की लीगल गारंटी देने की है, ताकि सरकार और निजी क्षेत्र दोनों एमएसपी से कम कीमत पर कृषि उपज की खरीद न कर पाएं. अभी एमएसपी सरकारी क्षेत्र के लिए लागू है. निजी क्षेत्र पर एमएसपी से कम दाम पर खरीद की कोई बाध्यता नहीं है, इसलिए व्यापारी किसानों से अधिकांश फसलों को एमएसपी से कम कीमत पर खरीदते हैं, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है. किसान इसीलिए आंदोलन कर रहे हैं. एमएसपी के इन दोनों मुद्दों पर सरकार और किसानों के बीच सात दौर की बातचीत हो चुकी है.
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