इथेनॉल ब्लेंडिंग टारगेट 20 फीसदी को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी, गुड़ सीरप के साथ ही मक्का जैसे सूखे अनाजों के इस्तेमाल को भी मंजूरी दी है. इस बार 15 फरवरी तक बीते साल की तुलना में इथेनॉल बनाने में चीनी का लगभग दोगुना इस्तेमाल हो चुका है. जबकि, भारी मात्रा में मक्का का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. अब मीठी ज्वार (sweet sorghum) को भी टिकाऊ बॉयोफ्यूल सोर्स के रूप में इस्तेमाल के लिए विकसित किया जाएगा.
इथेनॉल बनाने के लिए मीठी ज्वार को इस्तेमाल लायक करने के लिए भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (BPCL) और नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट (NSI) कानपुर ने करार किया है. शुगर इंस्टीट्यूट मीठी ज्वार को टिकाऊ बॉयोफ्यूल सोर्स के रूप में विकसित करेगा. रिसर्च और डेवलपमें के लिए भारत पेट्रोलियम 5 करोड़ रुपये शुगर इंस्टीट्यूट को देगा.
मीठी ज्वार में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं और इसका इस्तेमाल पशु हरा चारा के रूप में करने के साथ ही मिठास के चलते गुड़, मीठा सीरप भी बनाया जाता है. इसका इस्तेमाल बॉयोफ्यूल के रूप में करने के लिए इसे और विकसित करने के इरादे से भारत पेट्रोलियम और नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट साथ में मिलकर काम करेंगे. रिपोर्ट के अनुसार कानपुर में शुगर संस्थान में मीठी ज्वार को इथेनॉल के लिए मजबूत सोर्स के रूप में विकसित किया जाएगा.
भारत पेट्रोलियम ने बायोएथेनॉल उत्पादन के लिए पर्यावरण अनुकूल फीडस्टॉक के रूप में मीठी ज्वार को सहयोगात्मक रूप से विकसित करने के लिए कानपुर में राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. यह रणनीतिक गठबंधन भारत के इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम का समर्थन करता है और बायोफ्यूल को बढ़ावा देने तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के सरकार के उद्देश्यों की दिशा में बड़ा कदम है.
भारत पेट्रोलियम ने इस साझेदारी के तहत अनुसंधान और विकास पहलों के लिए 5 करोड़ रुपये शुगर संस्थान को देगा. इस फंडिंग से मीठी ज्वार की पैदावार और कृषि पद्धतियों में सुधार होगा. इसके साथ ही इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए रस निकालने और फर्मेंटेशन मेथड विकसित किए जाएंगे. इसके अतिरिक्त मीठी ज्वार से संपीड़ित बायोगैस (CBG) और अन्य बचे हुए बायोमास के इस्तेमाल की जांच करेगा. इससे बॉयो एनर्जी के इस्तेमाल के लिए बड़े नजरिए को बढ़ावा मिलेगा.
निजी चीनी मिलों के शीर्ष उद्योग निकाय ISMA के अनुसार इथेनॉल बनाने के लिए इस साल चीनी का डायवर्जन लगभग 14.1 लाख टन होने का अनुमान है. जबकि, पिछले साल लगभग 8.3 लाख टन डायवर्जन हुआ था. इस हिसाब से इस साल लगभग 70 फीसदी अधिक चीनी का इस्तेमाल इथेनॉल बनाने में किया जाएगा. केंद्र ने इथेनॉल ब्लेंडिंग टारगेट 20 फीसदी रखा है. ऐसे में मक्का, चावल समेत कुछ अन्य सूखे अनाजों का इस्तेमाल भी इथेनॉल बनाने में किया जा रहा है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today