इस बेल का छिलका पतला, बीज कम और वजन 2 किलो तक...पढ़ें खास वैरायटी के बारे में

इस बेल का छिलका पतला, बीज कम और वजन 2 किलो तक...पढ़ें खास वैरायटी के बारे में

बेल की किस्मों में स्वर्ण वसुधा का नाम सबसे प्रमुख है. इसकी कई खासियतें हैं जो सभी बेल में इसे प्रमुख बनाती हैं. जैसे, इस किस्म के पेड़ पर सालों भर फल लगते हैं. सबसे खास बात ये है कि इसके एक बेल का वजन एक किलो से लेकर 2 किलो तक होता है.

Advertisement
इस बेल का छिलका पतला, बीज कम और वजन 2 किलो तक...पढ़ें खास वैरायटी के बारे मेंबेल की स्वर्ण वसुधा किस्म

गर्मी आते ही बेल की मांग बढ़ जाती है क्योंकि इसका रस गर्मियों में अमृत के समान माना जाता है. बाकी सीजन में भी इसका रस पी सकते हैं, मगर गर्मियों में इसका फायदा कुछ अधिक होता है. बेल ऊपर से देखने में जितना सख्त दिखता है, अंदर से उसका गूदा उतना ही मुलायम होता है. इसके गूदे से बना रस पाचन तंत्र के लिए बहुत अच्छा माना गया है. ऐसे में बेल की एक बहुत ही खास किस्म है जिसका नाम है स्वर्ण वसुधा.

बेल की किस्मों में स्वर्ण वसुधा का नाम सबसे प्रमुख है. इसकी कई खासियतें हैं जो सभी बेल में इसे प्रमुख बनाती हैं. जैसे, इस किस्म के पेड़ पर सालों भर फल लगते हैं. सबसे खास बात ये है कि इसके एक बेल का वजन एक किलो से लेकर 2 किलो तक होता है. इसका सबसे बड़ा फायदा बेल की व्यावसायिक खेती करने वाले किसानों को होता है. ऐसे किसान स्वर्ण वसुधा किस्म को महंगे रेट पर बेचते हैं.

ये भी पढ़ें: बिहार में बेल की खेती के लिए मिलेगी फ्री ट्रेनिंग, ATMA ऑफिस में तुरंत करें अप्लाई

स्वर्ण वसुधा किस्म की खासियत

बेल की बाकी वैरायटी से अधिक उपज स्वर्ण वसुधा किस्म से मिलती है. सिंचित क्षेत्र में अगर किसान इस किस्म को लगाता है तो एक पेड़ से 44 किलो तक पैदावार मिल सकती है. सामान्य तौर पर बाजार में 50 रुपये किलो तक बेल बिकता है. इस तरह  एक पेड़ से किसान 2 से 2.5 हजार रुपये तक कमाई कर सकता है. बाजार में इस किस्म की मांग इसलिए भी अधिक है क्योंकि एक फल से 80 परसेंट तक गूदे की रिकवरी मिलती है. 

बेल का छिलका अगर मोटा हो तो उसका वजन अधिक हो जाता है. इससे किसानों को बेचने में कम फायदा होता है. मगर स्वर्ण वसुधा किस्म में छिलका पतला होने के साथ गूदे की रिकवरी अधिक होती है. छिलका 2 एमएम तक पलता होने के साथ ही बीज की मात्रा भी बहुत कम होती है. बेल में बीज अधिक होने पर उसकी मांग कम हो जाती है. लेकिन स्वर्ण वसुधा के साथ ऐसी बात नहीं है.

ये भी पढ़ें: Agri Quiz: किस फसल की वैरायटी है 'भू सोना बेल', कौन-कौन सी हैं उन्नत किस्में?

17-19 टन तक मिलेगी उपज

बेल की इस किस्म को लगाकर किसान प्रति हेक्टेयर 17-19 टन तक उपज ले सकते हैं. किसानों को अधिक उपज लेनी है तो हाई डेंसिटी तकनीक से रोपाई करनी चाहिए. यानी पौधों की रोपाई कम कम जगह में करनी चाहिए. झारखंड की मिट्टी को इस बेल की खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. झारखंड के किसान इस बेल की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं.

 

POST A COMMENT