ड्रोन दीदी मनीषामध्य प्रदेश के सीधी जिले के सिहावल ब्लॉक में एक छोटा सा गांव है—खोटवाटोला. इसी गांव की रहने वाली हैं श्रीमती मनीषा कुशवाहा. कुछ साल पहले तक मनीषा एक साधारण गृहणी थीं, लेकिन उनके मन में अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने और खुद की एक पहचान बनाने की ललक थी. उन्हें बस एक सही मौके की तलाश थी. यह मौका उन्हें तब मिला जब वे 'लक्ष्मी स्व-सहायता समूह' से जुड़ीं. पार्वती क्लस्टर लेवल फेडरेशन के अंतर्गत इस समूह का हिस्सा बनकर मनीषा के जीवन में आत्मविश्वास का नया संचार हुआ और यहीं से उनके 'लखपति दीदी' बनने के सफर की शुरुआत हुई.
मनीषा ने सबसे पहले खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर जैविक खेती को अपनाया. उन्होंने ठान लिया था कि वे रसायनों के बिना शुद्ध सब्जियां और हल्दी उगाएंगी. इस फैसले से न केवल उनकी फसलों की गुणवत्ता सुधरी, बल्कि खाद और कीटनाशकों पर होने वाला भारी खर्च भी कम हो गया. उनकी मेहनत रंग लाई और उनकी सब्जियां बाजार में हाथों-हाथ बिकने लगीं. मनीषा का मानना है कि जैविक खेती न केवल धरती माता को बचाती है, बल्कि किसानों की जेब में भी ज्यादा मुनाफा पहुंचाती है.
एक सफल उद्यमी की पहचान यही है कि वह अकेले आगे नहीं बढ़ता, बल्कि सबको साथ लेकर चलता है. मनीषा ने कृषि कम्युनिटी रिसोर्स पर्सन (CRP) के रूप में नेतृत्व संभाला और अपने गांव के लगभग 150 किसानों को जैविक और टिकाऊ खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया. इतना ही नहीं, उन्होंने 15 महिलाओं के साथ मिलकर 'प्रगति उत्पादक समूह' बनाया.
एक लाख रुपये की कार्यशील पूंजी और 50,000 रुपये के इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के साथ, उनके समूह ने प्याज की खरीद-फरोख्त का काम शुरू किया. पहले ही सीजन में उन्होंने 10,000 रुपये का मुनाफा कमाकर यह साबित कर दिया कि गांव की महिलाएं भी बिजनेस बखूबी संभाल सकती हैं.
मनीषा की कहानी में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उन्हें 'नमो ड्रोन योजना' के तहत ड्रोन चलाने का प्रशिक्षण और ड्रोन मिला. आज वे अपने क्षेत्र में 'ड्रोन सखी' के रूप में जानी जाती हैं. जिस खेती में घंटों मेहनत लगती थी, उसे वे अब तकनीक की मदद से मिनटों में कर लेती हैं. वे न केवल अपने खेतों में ड्रोन का इस्तेमाल करती हैं, बल्कि अन्य किसानों को भी ड्रोन से छिड़काव की सेवाएं देती हैं. इससे उनकी आय का एक नया और आधुनिक जरिया खुल गया है. तकनीक ने उन्हें आधुनिक खेती का चेहरा बना दिया है..
आज मनीषा कुशवाहा की सालाना आय लाखों रुपये तक पहुंच गई है. इस आर्थिक मजबूती ने उनके परिवार के रहन-सहन का स्तर पूरी तरह बदल दिया है. बच्चों की बेहतर शिक्षा से लेकर घर की सुख-सुविधाओं तक, आज वे हर फैसले में आत्मनिर्भर हैं. उनकी यह कामयाबी इस बात का प्रमाण है कि अगर मेहनत और सही मार्गदर्शन मिले, तो गांव की कोई भी महिला आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो सकती है. वे अब एक 'लखपति दीदी' हैं, जो न केवल कमा रही हैं, बल्कि बचा भी रही हैं.
मनीषा की सफलता ने खोटवाटोला गांव की अन्य महिलाओं के लिए उम्मीद की एक नई किरण जगाई है. आज उन्हें देखकर गांव की कई महिलाएं स्व-सहायता समूहों से जुड़ रही हैं और छोटे-छोटे रोजगार शुरू कर रही मनीषा कहती हैं, "सपना देखना जरूरी है, क्योंकि सपने सच होते हैं." आज वे न केवल एक सफल किसान और ड्रोन सखी हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की एक जीती-जागती मिसाल भी हैं.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today