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Agri Quiz: किस सब्जी की किस्म है 'पूसा सुप्रिया', कब-कैसे करते हैं इसकी खेती

Agri Quiz: किस सब्जी की किस्म है 'पूसा सुप्रिया', कब-कैसे करते हैं इसकी खेती

तोरई एक कद्दू वर्गीय फसल है. तोरई की उपज शुरू होने के बाद यह हर दिन कमाई करने वाली फसल है, इसलिए इसे नकदी फसल भी कहा जाता है. देश के कई हिस्सों में किसान तोरई की खूब बुवाई करते हैं. गर्मी में शरीर को जरूरी पोषक तत्वों की भरपाई के लिए अप्रैल के बाद से तोरई की मांग और खपत बढ़ जाती है.

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पूसा सुप्रिया पूसा सुप्रिया

हरी सब्जी सेहत के लिए फायदेमंद मानी जाती है. लोग पूरे साल खूद को सेहतमंद रखने के लिए हरी सब्जी खाते हैं. वहीं बाजारों में पूरे साल सीजन के हिसाब से हरी सब्जियों की डिमांड भी रहती है. साथ ही कई किस्में हैं जो सब्जियों की खासियत को बढ़ा देती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं कि किस सब्जी की किस्म है 'पूसा सुप्रिया' और कब-कैसे करते हैं इसकी खेती. आपको बता दें कि गर्मी के दिनों में मिलने वाली सब्जी तोरई की किस्म है 'पूसा सुप्रिया'. तोरई की इस किस्म की किसानों में खूब डिमांड रहती है. वहीं किसान इस किस्म की खेती करके बेहतर उपज और कमाई कर सकते हैं. ऐसे में आइए जानते हैं 'पूसा सुप्रिया' की खासियत.

तोरई के बीज की खासियत

तोरई की पूसा सुप्रिया किस्म के बीज की ये खासियत होती है इसके फल चिकने और बिना बालों वाले होते हैं. इस किस्म की तोरई हल्के हरे रंग की होती है. इसके एक बेल में 12 से 16 फल आता है. साथ ही यह किस्म वसंत, गर्मी और खरीफ मौसम के लिए उपयुक्त है. इसके गर्मी वाले फलों की तुड़ाई 50-53 दिन में और खरीफ में उगाए गए फल 45 दिन में तैयार हो जाते हैं और औसत उपज 140 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है.

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तोरई से कर सकते हैं कमाई

तोरई एक कद्दू वर्गीय फसल है. तोरई उपज शुरू होने के बाद किसानों की हर दिन कमाई कराने वाली फसल है, इसलिए इसे नकदी फसल भी कहा जाता है. देश के कई हिस्सों में किसान तोरई की खूब बुवाई करते हैं. गर्मी में शरीर को जरूरी पोषक तत्वों की भरपाई के लिए अप्रैल के बाद से तोरई की मांग और खपत बढ़ जाती है. तोरई ऐसी फसल है, जिसकी बुवाई बीज और पौधों दोनों तरह से की जा सकती है. वहीं 50-60 दिनों में तोरई फल देना शुरू कर देती है. किसान चाहें तो तोरई की परंपरागत खेती न करके पॉलीहाउस में बल्कि कहीं भी उगा कर मोटी कमाई कर सकते हैं.

कब-कैसे करें इसकी खेती

तोरई की पूसा सुप्रिया किस्म के उत्पादन के लिए जायद मौसम की अपेक्षा, खरीफ मौसम अधिक उपयुक्त माना जाता है. वहीं इसकी खेती करने से पहले खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी होती है. उसके बाद खेतों को कुछ दिनों के लिए खाली छोड़ दें, ताकि उसको अच्छे से धूप लग सके. इसके बाद खेत में 15 से 20 टन गोबर की पुरानी खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल कर खेत की हल्की जुताई करें. ऐसा करने से मिट्टी में खाद अच्छी तरह से मिल जाता है. इसके बाद खेत में रोटावेटर लगा कर मिट्टी को भुरभुरा कर लें. इसके बाद आखिरी जुताई के समय मिट्टी में एन.पी.के खाद का छिड़काव करें. उसके बाद खेतों में बीजों को लगाएं.