लगभग पूरे देश में धान की कटाई शुरू हो गई है. इसके बाद किसान रबी फसलों की बुवाई की तैयारी में लग जाएंगे. खास कर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार के किसान रबी फसलों में गेहूं की सबसे अधिक खेती करते हैं. ऐसे में इन राज्य के किसान कई बार गेहूं की उन्नत किस्मों को लेकर उलझन में पड़ जाते हैं. वे मिट्टी और जलवायु के हिसाब से सही गेहूं की किस्मों का चयन नहीं कर पाते हैं, जिससे उपज प्रभावित होती है. लेकिन अब किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम गेहूं की ऐसी 5 बेहतरीन किस्मों के बारे में चर्चा करेंगे, जिसकी बुवाई करने पर बंपर पैदावार होगी. साथ ही किसानों की कमाई भी जबरदस्त होगी.
करण नरेन्द्र: करण नरेंद्र गेहूं की सबसे नई किस्म है. इस किस्म को वैज्ञानिकों ने साल 2019 में विकसित किया था. यह किस्म महज 143 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. यानी 143 दिन के बाद आप करण नरेंद्र गेहूं की कटाई कर सकते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी रोटी की क्वालिटी काफी अच्छी होती है. अगर किसान चाहें, तो 25 नवंबर तक इसकी बुवाई कर सकते हैं. अगर सिंचाई की बात करें, तो गेहूं की दूसरी अन्य किस्मों के मुकाबले करण नरेंद्र को पानी की कम जरूरत पड़ती है. महज इसकी फसल को 4 बार ही सिंचाई करनी पड़ती है. अगर आप एक हेक्टेयर में इसकी खेती करते हैं, तो 65.1 से 82.1 क्विंटल तक पैदावार होगी.
करण श्रिया: गेहूं की यह किस्म साल 2021 में मार्केट में आई थी. बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश की जलवायु और मिट्टी को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने करण श्रिया को विकसित किया है. अगर इन राज्यों के किसान करण श्रिया की खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 22 क्विंटल तक पैदावार होगी. गेहूं की यह किस्म लगभग 127 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. खास बात यह है कि इस किस्म को महज एक बार ही सिंचाई की जरूरत पड़ती है.
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करन वंदना: करन वंदना किस्म में पीला रतुआ और ब्लास्ट जैसी बीमारियां के लगने की संभावना न के बराबर रहती है. इस किस्म को पकने में 120 दिनों का ही समय लगता है. सबसे बड़ी बात यह है कि करन वंदना किस्म को वैज्ञानिकों ने गंगा के तटीय क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है. यानी बिहार और यूपी में गंगा के टतीय क्षेत्रों के किसान इसकी खेती कर सकते हैं. इसकी पैदावार क्षमता 75 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पूसा यशस्वी: वैज्ञानिकों ने गेहूं की इस किस्म को कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की जलवायु को ध्यान में रखते हुए इजाद किया है. यानी इन तीनों राज्यों के किसान अगर इसकी खेती करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 57.5 से 79.60 क्विंटल तक पैदावार होगी. खास बात यह है कि पूसा यशस्वी फफूंदी और गलन रोग प्रतिरोधक है. इसकी बुवाई करने का सही समय 5 नवंबर से 25 नवंबर तक का है.
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