भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वाराणसी में पोषण सुरक्षा की दिशा में सब्जियों के ऊपर शोध का काम लंबे समय से किया जा रहा है. बरसात के मौसम में जलमग्न भू-भाग में उगने वाले कलमी साग या करमुआ साग पोषण सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण खोज है. इस साग को उगाने में किसानों को कम लागत में ज्यादा फायदा होता है. इसी वजह से सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों के द्वारा किसानों की आय को दुगनी करने की दिशा में और पोषण सुरक्षा के लिए कलमी साग को जमीन पर उगाने वाली किस्म विकसित कर ली है.
संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे ने कलमी साग को विकसित किया है. उन्होंने किसान तक को बताया कि इसकी कोई किस्म नहीं थी और यह अपने आप तालाबों में उग जाती है. उन्होंने इस साग की काशी मनु नामक किस्म को विकसित किया है, जिसमें पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा है. इस साग की सबसे खास बात यह है कि इसे महीने में तीन से चार बार काट सकते हैं. एक बार खेतों में लगाने के बाद यह दो से तीन सालों तक चलती है.
कलमी साग जिसे नारी का साग भी कहते हैं. बरसात के दिनों में तालाब और जलमग्न भू-भाग में यह अपने आप उग जाता है जिसको किसान बेचकर अच्छा मुनाफा कमाते हैं. भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे ने कलमी साग की एक नई किस्म को विकसित किया है, जिसको उन्होंने काशी मनु नाम दिया है. किसान तक से बात करते हुए डॉ राकेश दुबे बताते हैं यह पत्तेदार सब्जी है. वहीं तालाब में कई तरह के प्रदूषण भी होता है, लेकिन ज्यादा पानी भरा होने के चलते इसकी हार्वेस्टिंग करना मुश्किल होता है. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने जमीन पर विकसित होने वाली पोषण तत्वों से भरपूर कलमी साग की किस्म को विकसित किया है. इस साग की सबसे खास बात यह है कि इसे महीने में तीन से चार बार काट सकते हैं. एक बार खेतों में लगाने के बाद यह दो से तीन सालों तक चलती है.
करमुआ साग मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात पंजाब, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों के द्वारा उगाया जाता है. इस साग में पोषक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है. इसमें जिंक, आयरन और एंटी ऑक्सीडेंट के साथ-साथ प्रोटीन की भी भरपूर मात्रा होती है. इसके अलावा इसमें कैरोटीन और कई खनिज तत्व भी पाए जाते हैं.
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करमुआ साग की काशी मनु किस्म विकसित करने वाले वैज्ञानिक डॉ राकेश दुबे बताते हैं कि इसकी खेती में किसानों को फायदा ही फायदा है. इसका उत्पादन 90 से 100 टन प्रति हेक्टेयर होता है जिसकी लागत डेढ़ लाख रुपए प्रति हेक्टेयर तक आती है. वहीं बाजार में इस साग की औसत कीमत ₹20 किलो तक होती है. इस हिसाब से देखा जाए तो प्रति हेक्टेयर किसानों को दो से ₹300000 तक का मुनाफा होता है.
करमुआ साग पर शोध करने वाले वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे ने बताया कि उनके द्वारा विकसित की हुई किस्म काशी मनु के बीजों की काफी ज्यादा डिमांड है. किसानों को इसकी खेती करने में काफी फायदा हो रहा है, जिससे उनकी आय दोगुनी हो रही है. काशी मनु किस्म का बीज व कलम भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान में उपलब्ध है, जिसको कोई भी किसान ऑनलाइन या संस्थान में आकर ले सकता है.
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