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यूपी के किसानों को मिलीं गन्ने की पांच नई किस्में, सभी वेरायटी की ये रही डिटेल्स

यूपी के किसानों को मिलीं गन्ने की पांच नई किस्में, सभी वेरायटी की ये रही डिटेल्स

गन्ने की किस्म 'को. शा. 16233 और को. लख. 14204' देर से पकने वाली किस्म की श्रेणी में शामिल की गई हैं, लेकिन इनकी उपज और चीनी, कई अन्य अगेती किस्मों के समान है. इसलिए ये किस्में किसानों के लिए गन्ना की खेती में किस्म विविधता के लिहाज से उपयुक्त साबित हो सकती है.

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यूपी में गन्ना की पांच नई किस्मों को मंजूरी दी गई है यूपी में गन्ना की पांच नई किस्मों को मंजूरी दी गई है

उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के अलग-अलग इलाकों में उगाई जा सकने वाली गन्ना की 5 नई किस्मों (sugarcane variety) को मंजूरी दी है. उत्तर प्रदेश के गन्ना और चीनी आयुक्त, संजय आर भूसरेड्डी की अध्यक्षता में हुई एक अहम बैठक में इन किस्मों को मंजूरी दी गई. गन्ना निदेशालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार 'बीज, गन्ना एवं गन्ना किस्म स्वीकृति उप समिति' ने उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद, शाहजहांपुर द्वारा विकसित किस्म को मंजूरी दी. परिषद की ओर से औसत समय में पकने वाली गन्ना की किस्में 'को.शा. 16233' और 'को.शा.15233' के आंकड़े जारी किए गए. इन आंकड़ों पर समिति द्वारा गहन विचार-विमर्श के बाद दोनों किस्मों को व्यावसायिक खेती के लिए पूरे उत्तर प्रदेश के लिए मंजूरी दी गई.   

समिति‍ को बताया गयाा कि गन्ना की नई किस्म (sugarcane variety) 'को.शा. 16233' की औसत उपज 87.65 टन प्रति हेक्टेयर और पोल इन केन औसतत 14.07 प्रतिशत है. इसी प्रकार दूसरी किस्म 'को. शा. 15233' की औसत उपज 93.48 टन प्रति हेक्टेयर और पोल इन केन औसतन 13.85 प्रतिशत है.

ये हैं गन्ने की नई किस्में

गन्ना और चीनी आयुक्त भूसरेड्डी ने बताया कि बैठक में अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के अंतर्गत उत्तर मध्य क्षेत्र के लिए नोटिफाइड की गई गन्ने की किस्म 'को. लख. 15466' को मंजूरी दी गई. उन्होंने बताया कि कम समय में पकने वाली इस किस्म को पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में उगाने की मंजूरी दी गई. इसकी औसत उपज 85.97 टन प्रति हेक्टेअर और पोल इन केन औसतन 13.54 प्रतिशत है.

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इसी परियोजना के अंतर्गत उत्तर पश्चिम क्षेत्र के लिए नोटिफाइड गन्ने की किस्म 'को. लख. 14204' और 'को. लख. 15207' को मध्य और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए मंजूरी दी गई. देर से पकने वाली इन दोनों किस्मों की औसत उपज क्रमश: 9273 टन प्रति हेक्टेयर और 84.53 टन प्रति हेक्टेयर है. इनकी पोल इन केन कमशः 1355 प्रतिशत एवं 14.60 प्रतिशत है. 

किसानों के लिए उपयोगी किस्में

गन्ने की किस्म 'को. शा. 16233 और को. लख. 14204' देर से पकने वाली किस्म की श्रेणी में शामिल की गई हैं, लेकिन इनकी उपज और चीनी, कई अन्य अगेती किस्मों के समान है. इसलिए ये किस्में किसानों के लिए गन्ना की खेती में किस्म विविधता के लिहाज से उपयुक्त साबित हो सकती है. भूसरेड्डी ने बताया गया कि लखनऊ स्थित भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के अंतर्गत नोटिफाइड अगेती गन्ना किस्म 'को. लख. 15201' के आंकड़े भी समिति को दिए गए. गन्ना किस्म के गुण-दोष में मतभेद होने के कारण इस किस्म को मंजूरी देने का फैसला टाल दिया गया.

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इस किस्म की समीक्षा के लिए दोनों शोध संस्थाओं के वैज्ञानिकों, पश्चिमी मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों, चीनी मिलों के प्रतिनिधियों और गन्ना विकास विभाग के विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने के निर्देश दिए गए हैं. समिति की रिपोर्ट के आधार पर अगली बैठक में इस किस्म के बारे में फैसला किया जाएगा. फिलहाल 'को लख. 15201' किस्म का बीज प्रदेश के गन्ना किसानों को बुवाई के लिए नहीं दिया जाएगा.

रोग से बचने में सक्षम नई किस्में

इस समय उत्तर प्रदेश में गन्ने में 'लाल सड़न रोग' का प्रभाव मुख्यतः इसके नवीन प्रभेद 'सीएफ-13' के कारण देखने को मिल रहा है. अभी मंजूर हुई सभी 05 किस्में लाल सड़न रोग के प्रभेद सी. एफ 13 से मध्यम रोगरोधी हैं. इसलिए इन पर लाल सड़न रोग का प्रभाव कम होगा. ये किस्में जमाव, व्यांत, मिल योग्य गन्ने की संख्या, उपज, पेड़ी क्षमता और गुणवत्ता में भी बेहतर हैं.

ये किस्में हुईं उपयोग से बाहर

बैठक में पुरानी गन्ना किस्मों (sugarcane variety) के वर्तमान गन्ना क्षेत्रफल, किसानों में लोकप्रियता का स्तर, इनके गुणदोष और वर्तमान विकल्पों पर विचार किया गया. अलोकप्रिय हो चुकी कम खेती वाली कुछ पुरानी गन्ना किस्मों को वर्तमान में बोई जा रही गन्ना किस्मों की सूची से हटा दिया गया. इन किस्मों में 'यू.पी. 0097', 'को शा. 98259', 'को. शा. 94257', 'को शा. 20193', 'को. शा 0124', 'को. शा. 96269', 'को पंत 84212', 'को. 87268', 'को 87263', 'को 89029', 'को से 01235', और 'यू.पी 39' शामिल हैं. गन्ना किसानों से अनुरोध किया गया है कि वे इन किस्मों की बुआई न करें.