देश की एक बड़ी आबादी बड़ी पशुपालन व्यवसाय से जुड़ी हुई है. वहीं, बढ़ती मांग की वजह से पशुओं की आबादी भी लगातार बढ़ रही है, लेकिन पशुओं के चारे कमी में भी हो रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक चारा उत्पादन के लिए देश की कुल कृषि योग्य भूमि में से सिर्फ चार फीसदी पर ही चारा उत्पादन किया जा रहा है. जबकि मौजूदा वक्त में 14 से 17 फीसदी कृषि योग्य पर चारे की खेती करने की आवश्यकता है.
वहीं, केंद्रीय मत्स्य, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अनुसार, मौजूदा वक्त में देश सूखे चारे में 23.4 प्रतिशत की कमी का सामना कर रहा है. दरअसल, केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने मंगलवार को लोकसभा में एक जवाब में कहा कि आईसीएआर-इंडियन ग्रासलैंड एंड फोडर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईजीएफआरआई), झांसी ने अनुमान लगाया है कि देश में क्रमशः हरा चारा 11.24 फीसदी, सूखा चारा 23.4 और दाने की 28.9 फीसदी कमी है.
वहीं, इसके लिए उन्होंने भूमि उपयोग के बदलते पैटर्न, शहरीकरण, चरागाहों की घटती उत्पादकता, नकदी फसलों की भूमि पर ज्यादा खेती को कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि देश में चारे की स्थिति की समीक्षा के लिए 6 अक्टूबर को पशुपालन और डेयरी विभाग के सचिव की अध्यक्षता में राज्य सरकारों और हितधारकों के साथ एक बैठक हुई थी. उन्होंने कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तत्वावधान में झांसी स्थित IGFRI द्वारा 20 राज्यों के लिए तैयार की गई चारा संसाधन योजनाओं को भी कार्यान्वयन के लिए राज्यों के साथ साझा किया गया है.
उन्होंने कहा कि सरकार देश में चारा और चारा विकास पर एक उप-मिशन के साथ राष्ट्रीय पशुधन मिशन को लागू कर रही है. इसके तहत उच्च उपज वाली चारा किस्मों के बीज उत्पादन, नकदी फसल के रूप में चारा फसल को बढ़ावा देने और इस प्रकार चारा फसलों के तहत अधिक क्षेत्र में विविधता लाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है.
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