धान का रकबा घटाकर उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य, कृषि मंत्री शिवराज सिंह का बड़ा ऐलान 

धान का रकबा घटाकर उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य, कृषि मंत्री शिवराज सिंह का बड़ा ऐलान 

रविवार को धान की दो नई किस्में- 'डीआरआर धान 100 (कमला)' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' को लॉन्‍च किया गया है. ये दोनों किस्‍में जीनोम एडिटिंग तकनीक से विकसित की गई हैं.  धान की इन किस्‍मों को किसानों के लिए अधिक उपज और कम लागत वाला करार दिया जा रहा है. साथ ही साथ ये किस्‍में पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित  होंगी.

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धान का रकबा घटाकर उत्पादन बढ़ाने का लक्ष्य, कृषि मंत्री शिवराज सिंह का बड़ा ऐलान कृषि मंत्री ने देश को समर्पित कीं नई किस्‍में

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दलहन और तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने पर जोर देते हुए 'माइनस 5 और प्लस 10' का फॉर्मूला पेश किया है. इसका अर्थ है चावल के रकबे को 50 लाख हेक्टेयर कम करना और उतने ही क्षेत्र में 100 लाख टन का उत्पादन बढ़ाना. इससे बचे हुए क्षेत्र में दलहन और तिलहन की खेती को बढ़ावा दिया जा सके. उन्‍होंने यह बात रविवार को उस समय कही जब वह चावल की दो जीनोम-एडिटेड किस्में देश को समर्पित कर रहे थे. इन किस्‍मों को देश में अपनी तरह की पहली उपलब्धि करार दिया जा रहा है. ये दो किस्में जलवायु-अनुकूल हैं, पानी को बचाने में मददगार हैं और उपज भी बढ़ाती हैं. 

लॉन्‍च हुईं दो नई किस्‍में 

रविवार को धान की दो नई किस्में- 'डीआरआर धान 100 (कमला)' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' को लॉन्‍च किया गया है. ये दोनों किस्‍में जीनोम एडिटिंग तकनीक से विकसित की गई हैं.  धान की इन किस्‍मों को किसानों के लिए अधिक उपज और कम लागत वाला करार दिया जा रहा है. साथ ही साथ ये किस्‍में पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार साबित  होंगी. बताया जा रहा है कि इन नई किस्मों की खेती से करीब 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 45 लाख टन अतिरिक्त धान का उत्पादन होने का अनुमान है. इसके साथ ही ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में 20 प्रतिशत (3,200 टन) की कमी आएगी और फसल 20 दिन पहले तैयार होने से करीब तीन सिंचाई की बचत होगी. जल्दी पकने से किसान अगली फसल की बुआई भी समय पर कर सकेंगे. 

दलहन और तिलहन पर काम जारी 

आईसीएआर के उपमहानिदेशक डीके यादव ने जानकारी दी कि जीनोम एडिटिंग के माध्यम से दलहन और तिलहन फसलों पर भी कार्य चल रहा है. इसमें एक सरसों की फसल पर विशेष तौर पर किस्म विकसित की जा रही है. आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एमएल जाट ने बताया कि दोनों जीन-एडिटेड किस्मों का अखिल भारतीय समन्वित परीक्षण पूरा हो चुका है. जल्द ही इनके प्रजनक बीज, आधार बीज और प्रमाणित बीज किसानों को उपलब्ध करा दिए जाएंगे. उन्होंने यह भी बताया कि खाद्यान्‍न, तिलहन और दलहन सहित कई अन्य फसलों में भी जीनोम एडिटिंग रिसर्च जारी है. 

आईएआरआई के पूर्व निदेशक डॉ. एके सिंह ने साफ किया कि इन नई किस्मों को जीनोम संपादन तकनीक (सीआरआईएसपीआर-कैस) से विकसित किया गया है. इसमें पौधों के मूल जीन में सूक्ष्म बदलाव किए जाते हैं और कोई बाहरी जीन नहीं जोड़ा जाता. एसडीएन1 और एसडीएन2 विधियों से विकसित किस्में भारत सरकार के बायो-सिक्‍योरिटी नियमों से मुक्त हैं और इन्हें जेनेटिकली मॉडिफाइड फसलों की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. 

जीनोम एडिटिग भविष्य की तकनीक

धान की इन नई किस्मों की खेती से लगभग 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 45 लाख टन अतिरिक्त धान उत्पादन, ग्रीनहाउस गैसों में 20 फीसदी की कमी और 20 दिन पहले तैयार होने के कारण 750 करोड़ क्यूबिक मीटर सिंचाई जल की बचत का अनुमान है. जीनोम एडिटिंग प्रॉसेस में बाहरी जीन का प्रयोग नहीं किया जाता है बल्कि पौधों के मूल जीन में सटीक बदलाव करके गुणों को बेहतर बनाया जाता है. भारत सरकार ने SDN1 और SDN2 तकनीकों से विकसित जीन-एडिटेड फसलों को सुरक्षित मानते हुए बायोसेफ्टी गाइडलाइन से छूट दी है. इससे नई प्रजातियों को डेवलप करने का रास्‍ता खुला है. यह टेक्‍नोलॉजी खाद्य और पोषण सुरक्षा में अहम भूमिका निभा सकती है.

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