Nano Urea: भारत के नैनो यूरिया पर विदेशी वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल? जानिए क्यों

Nano Urea: भारत के नैनो यूरिया पर विदेशी वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल? जानिए क्यों

डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों ने इफको से पूछा है कि नैनो यूरिया की क्षमता कितनी है, इस बारे में डिटेल में जानकारी दी जानी चाहिए. वैज्ञानिकों ने ये सवाल तब उठाए हैं जब इफको ने नैनो यूरिया के निर्यात का पूरा प्लान जाहिर कर दिया है. 2021 में नैनो यूरिया की शुरुआत की गई थी.

Advertisement
Nano Urea: भारत के नैनो यूरिया पर विदेशी वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल? जानिए क्योंनैनो यूरिया पर डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों ने उठाए सवाल

पूरी तरह देश में तैयार नैनो यूरिया अब विदेशों में जाने वाली है. सरकार और इफको ने इसके निर्यात की पूरी प्लानिंग कर ली है. अब तक इसका इस्तेमाल देश में ही होता था, लेकिन विदेशों से आ रही मांगों को देखते हुए इसके निर्यात पर जोर दिया जा रहा है. इस बीच डेनमार्क के दो वैज्ञानिकों ने इस खाद की क्षमता और फायदे पर सवाल उठाए हैं. दोनों वैज्ञानिकों ने कहा है कि इफको को उस साइंटिफिक रिसर्च की जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए जिसके आधार पर नैनो यूरिया बनाई गई है. वैज्ञानिकों ने मांग की है कि नैनो यूरिया की क्षमता के बारे में जानकारी लेने के लिए किसी स्वतंत्र संस्था से रिसर्च कराई जानी चाहिए. वैज्ञानिकों ने कहा है कि इस बात की जांच हो कि पौधों पर नैनो यूरिया का प्रभाव पॉजिटिव होता है और होता भी है तो कितना अच्छा असर होता है.

हॉलैंड में छपे एक रिसर्च पेपर 'प्लांट एंड सॉइल' में दोनों वैज्ञानिकों ने अपनी बात रखी है. इन वैज्ञानिकों के नाम हैं मैक्स प्रैंक और सोरेन हुस्ते. दोनों वैज्ञानिकों ने कहा है कि नैनो यूरिया से खाद्य सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा हो सकता है. रिसर्च पेपर में लिखा गया है कि इफको ने नैनो यूरिया से जितनी उम्मीद जताई है, वह वास्तविकता से बहुत दूर है. दोनों ने आगाह किया है कि इससे किसानों को भारी फसल नुकसान झेलना पड़ सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि इससे किसानों की रोजी-रोटी भी खतरे में पड़ सकती है.

निर्यात से ठीक पहले उठे सवाल

नैनो यूरिया की शुरुआत अगस्त 2021 में की गई जबकि डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने इसकी क्षमता पर अभी सवाल उठाए हैं. उनका रिसर्च पेपर भी अभी ही जारी हुआ है. पेपर भी ऐसे वक्त में आया है जब इफको नैनो यूरिया के निर्यात की तैयारी में है. इफको ने निर्यात की पूरी प्लानिंग भी जारी कर दी है. ऐसे में खाद उद्योग के लोग डेनमार्क के वैज्ञानिकों को टाइमिंग पर सवाल उठा रहे हैं. कहा जा रहा है कि जब नैनो यूरिया पर सवाल ही उठाना था तो दो साल पहले होना चाहिए था जब उसकी लॉन्चिंग हुई थी.

ये भी पढ़ें: Paddy Crop : धान की अच्छी बढ़वार और बेहतर पैदावार के लिए खड़ी फसल में इन बातों का रखें खयाल

इस बीच देश में वैज्ञानिकों का एक धड़ा ये चाहता है कि इफको को वैज्ञानिकों की चिंता को दूर करना चाहिए और उनके उठाए सवालों का जवाब देना चाहिए. इफको के सूत्रों ने 'बिजनेसलाइन' को बताया कि विस्तृत स्पष्टीकरण की तैयारी की जा रही है और वैज्ञानिकों के उठाए सवालों का जवाब दिया जा सकता है. 

वैज्ञानिकों ने इफको से क्या पूछा

वैज्ञानिकों का सवाल है कि 21 किलो नाइट्रोजन वाले 45 किलो के परंपरागत यूरिया बैग को महज 20 ग्राम नाइट्रोजन के नैनो यूरिया से रिप्लेस किया जा सकेगा. वैज्ञानिक कहते हैं, इस हिसाब से नैनो यूरिया परंपरागत यूरिया की बोरी की तुलना में फसलों में 1,000 गुना तक यूरिया की क्षमता बढ़ा सकती है. ऐसे में इस क्षमता पर सवाल उठना लाजिमी है, इसीलिए वैज्ञानिकों ने इफको से जवाब मांगा है.

ये भी पढ़ें: Soil health : खेतों में बेहिसाब नाइट्रोजन के इस्तेमाल से मिट्टी हो रही है बंजर, श्वसन गति भी हुई प्रभावित

रिसर्च पेपर में इस बात का भी हवाला दिया गया है कि सरकार नैनो यूरिया का उत्पादन बढ़ाने के लिए 10 नई फैक्ट्रियां बनाने जा रही है. इससे 2025 तक नैनो यूरिया का सालाना उत्पादन 4400 लाख बोतल हो सकेगा. इसके अलावा इफको नैनो जिंक, नैनो कॉपर और नैनो डीएपी भी उतारने जा रही है जिसे मार्च 2023 में मंजूरी मिल चुकी है.

POST A COMMENT