देश में खाद बनाने के लिए म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MoP) की बिक्री में भारी उछाल देखा गया है. क्योंकि, निजी और सरकारी क्षेत्र की फर्टिलाइजर मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों ने इसे जमकर खरीदा है. आंकड़ों के अनुसार एमओपी की बिक्री 28 प्रतिशत बढ़ी है. एमओपी एक तरह का कच्चा उत्पाद है जिसे खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा वित्त वर्ष में नवंबर तक म्यूरिएट ऑफ पोटाश (MoP) की बिक्री में भारी बढ़ोतरी हुई है. MoP खाद अभी 28.6 प्रतिशत बढ़कर 14.25 लाख टन हो गई, जो एक साल पहले 11.08 लाख टन थी, क्योंकि भारतीय किसानों ने पोटाश की बढ़ी हुई कीमतों के बावजूद इसके साथ समझौता कर लिया था. इसके अलावा, वे यूरिया और डाई-अमोनियम फास्फेट (DAP) से बने खादों की ओर भी बढ़ गए. बता दें कि कुछ साल पहले तक डीएपी और एमओपी की कीमतें लगभग एक ही स्तर पर हुआ करती थीं.
बता दें कि एमओपी खाद बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाला कच्चा उत्पाद है. इसकी मदद से निजी और सरकारी क्षेत्र की कंपनियां विभिन्न तरह के उर्वरक बनाती हैं. इसे चीन, रूस समेत कुछ अन्य देशों से आयात किया जाता है.
सरकार ने पोटाश पर सब्सिडी कम करने का फैसला किया, जिससे यह डीएपी से महंगा हो गया, जबकि एमओपी डीएपी के मामले पूरी तरह से विदेशों से मंगवाई जाती है. वहीं, इसका स्वदेशी उत्पादन लगभग 40 प्रतिशत ही है. हालांकि, फॉस्फेटिक उत्पादन का ज्यादातर हिस्सा बाहर से मंगाए गए कच्चे माल के जरिए होता है.
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पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना के तहत 2024-25 रबी सीजन के लिए पोटाश पर सब्सिडी 2.38 रुपये प्रति किलो तय की गई है, जबकि 2022-23 रबी सीजन के लिए यह 23.65 रुपये प्रति किलो था. दूसरी ओर, एमओपी की वैश्विक कीमत, जो जून 2021 में 280 डॉलर प्रति टन थी और जून 2022 में 590 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई, फिर अक्टूबर 2024 में गिरकर 283 डॉलर प्रति टन हो गई.
सिंगल सुपर फॉस्फेट एक बेहद किफायती और टिकाऊ खाद है, जिसमें करीब 16 फीसदी फास्फोरस और 11 फीसदी सल्फर होता है. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, दूसरे उर्वरक की तुलना में दलहन और तिलहन फसलों के लिए सल्फर काफी फायदेमंद होता है. इससे ना सिर्फ तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा बढ़ती है. वहीं, दलहनी फसलों में भी इसके प्रयोग से प्रोटीन की मात्रा में बेहतरी देखी गई है. सिंगल सुपर फॉस्फेट में मौजूद पोषक तत्वों से मिट्टी की कमियां ठीक हो जाती हैं और बिना किसी नुकसान के फसलों के बेहतर पैदावार मिलती है.
पौधों में किसान सबसे ज्यादा नाइट्रोजन और फास्फोरस का इस्तेमाल करते हैं. नाइट्रोजन यूरिया से मिलता है और डीएपी यानी डाई अमोनियम फास्फेट है जो फास्फेटिक उर्वरक का काम करता है. दोनों पहले सूखे फार्म में आते थे लेकिन अब नैनो यूरिया और डीएपी के रूप में यह लिक्विड में भी आ गए हैं. नैनो यूरिया और डीएपी को पारंपरिक यूरिया के स्थान पर विकसित किया गया है. दावा है कि यह पारंपरिक यूरिया की आवश्यकता को न्यूनतम 50 प्रतिशत तक कम कर सकता है. इसकी 500 मिली की एक बोतल में सामान्य यूरिया की एक बोरी के बराबर नाइट्रोजन होता है.
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