महाराष्ट्र सरकार 7 दिसंबर से नागपुर में होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कृषि और किसानों के हितों के सुरक्षित करने के नाम पर पांच बिल पेश करने जा रही है. इनमें किसानों के पक्ष में ऐसे प्रावधान किए गए हैं कि पूरी एग्री इनपुट इंडस्ट्री बेचैन है. देश की कृषि-रसायन, बीज और उर्वरक बनाने वाली कंपनियां इसके विरोध में उतर आई हैं. इन कंपनियों का कहना है कि एग्री इनपुट बनाने और बेचने वालों को महाराष्ट्र सरकार अपराधियों की तरह से व्यवहार करने का कानून बना रही है. वो उन्हें ठीक तरह से नहीं डील कर रही है. दरअसल, सरकार नकली बीज, उर्वरक या कीटनाशकों के कारण किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए वह पांच विधेयक ला रही है. लेकिन कंपनियों को आशंका है कि इनमें ऐसे प्रावधान हैं कि इंस्पेक्टरी राज बढ़ जाएगा. जिससे कंपनियों को परेशान किया जाएगा.
दूसरी ओर, सरकार का कहना है कि मिलावटी, सब स्टैंडर्ड या गलत ब्रांड वाले बीज, उर्वरक और कीटनाशकों से परेशान किसानों को बचाने के लिए यह पहल की जा रही है. ऐसी खाद, बीज और कीटनाशकों से किसानों को होने वाले नुकसान के लिए कंपनियों को उन्हें मुआवजा देना होगा. सरकार ने इन बिलों का ड्राफ्ट तैयार करने के बाद उस आपत्तियां मांगी थीं. बीते 20 अक्टूबर तक आपत्तियां देनी थीं. आपत्तियों के बावजूद सरकार ने इसमें अब तक संशोधन नहीं किया है. इन कानूनों को बनवाने में राज्य के कृषि मंत्री धनंजय मुंडे की अहम भूमिका रही है.
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इन पांच बिलों के प्रावधानों के खिलाफ कृषि-रसायन, बीज, उर्वरक निर्माताओं और आयातकों के उद्योग संघों ने संयुक्त रूप से विरोध दर्ज करवाया था. विरोध दर्ज करवाने वालों में इसमें क्रॉप केयर फेडरेशन ऑफ इंडिया (सीसीएफआई), क्रॉप लाइफ इंडिया (सीएलआई), कीटनाशक निर्माता और फॉर्म्युलेटर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (पीएमएफएआई) और एग्रो केम फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसीएफआई) शामिल हैं. एग्रो इनपुट बेचने वाले रिटेलर भी इसका विरोध कर रहे थे. इसके खिलाफ उन्होंने हड़ताल की थी. जिससे सरकार बैकफुट पर आ गई. उसे रिटेलरों को इन बिलों के प्रावधान से बाहर करने की घोषणा करनी पड़ी.
क्रॉप लाइफ इंडिया से जुड़े एक पदाधिकारी ने 'किसान तक' से कहा कि मान लीजिए कि किसी भी कारण से बीज बोने की सही विधि का इस्तेमाल नहीं किया गया और उसकी वजह से जर्मिनेशन कम हुआ तो किसान मुआवजा पाने के लिए शिकायत करेगा. ऐसे में बिना गलती के भी कंपनी फंसेगी. इसी तरह एग्रो केमिकल का अच्छा प्रभाव हो इसके लिए समय, मात्रा और पानी आदि का विशेष ध्यान रखना होता है. अगर किसान ने सही तौर-तरीके नहीं अपनाए और केमिकल ने उसकी वजह से काम नहीं किया तो फिर उसका भी दोष कंपनी को दिया जाएगा. इसलिए हम इन कानूनों के विरोध में हैं.
उद्योग संगठनों का कहना है कि कैसे इस बात की जांच होगी कि किसान की खुद गलती से नुकसान हुआ या कंपनी की गलती से. या फिर कोई और कारण था जिसकी वजह से किसानों को नुकसान पहुंचा. उपभोक्ताओं के नुकसान की भरपाई के लिए पहले से ही Consumer Protection Act, 2019 में प्रावधान है. फिर नए कानूनों की क्या जरूरत है.
उद्योग संगठनों का कहना है कि इस बिल में किसानों की शिकायत पर कंपनियों के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करने का प्रावधान है. इससे उद्योग संगठन सख्त नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. उनका कहना है कि एग्री इनपुट बेचने वालों के खिलाफ अपराधियों की तरह व्यवहार किया जा रहा है. ऐसे ही हालात रहे तो अब महाराष्ट्र में कारोबार करने से ये कंपनियां कतराएंगी.
दरअसल, इन उद्योग संगठनों से जुड़ी कंपनियां ब्रांडेड एग्री इनपुट बेचती हैं. ऐसे में उन्हें लगता है कि अगर किसी भी गलती से भी उनके प्रोडक्ट का असर नहीं हुआ या फिर बीजों का जमाव नहीं हुआ तो फिर उन पर ये कानून लागू होंगे. इससे उनकी साख खराब होगी और अलग-अलग विभागों के इंस्पेक्टर उन्हें परेशान करेंगे. ये संगठित उद्योग तो खुद नकली एग्री इनपुट का विरोध कर रहे हैं और इसके पीड़ित हैं.
मिलावटी, अमानक या गलत ब्रांड वाले बीज, उर्वरक या कीटनाशकों के उपयोग से अगर फसल खराब होती है या फिर उपज कम हो जाती है और उससे किसानों को आर्थिक तौर पर नुकसान होता है तो संबंधित कंपनियों को किसानों को मुआवजा देना होगा. फैसला होने के 30 दिन के अंदर मुआवजे का भुगतान नहीं करती है तो फिर उसे 12 फीसदी ब्याज भी किसान को देना होगा. बस मुआवजा पाने के लिए किसानों के पास पक्का बिल होना चाहिए.
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