फसलों की उपज बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली उर्वरक डीएपी और यूरिया की वैश्विक कीमतों में तेज उछाल से घरेलू उर्वरक निर्माता परेशान हैं. क्योंकि, इसका असर घरेलू निर्माताओं को मिल रही न्यूट्रीएंट बेस्ड सब्सिड पर पड़ रहा है. ऐसे में निर्माताओं ने न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी (NBS) बढ़ाने के लिए रिव्यू की मांग की है. वैश्विक कीमतें बढ़ने के कारण उर्वरक निर्माता एनबीएस सब्सिडी की समीक्षा चाहते हैं. संभव है कि सरकार इस पर जल्द निर्णय ले सकती है.
डीएपी यानी डी-अमोनियम फॉस्फेट की वैश्विक कीमतें जुलाई में 440 डॉलर प्रति टन से बढ़कर अब 590 डॉलर प्रति टन हो गई हैं. उर्वरक कंपनियों का कहना है कि वर्तमान खुदरा मूल्य को बनाए रखने के लिए फॉस्फोरस में सब्सिडी स्तर को बढ़ाने की जरूरत है. खाद में फास्फोरस का इस्तेमाल किया जाता है. फास्फोरस पौधों में पोषक तत्व देने तथा पौधों की बेहतर ग्रोथ में मदद करता है. रबी 2023 सीजन के लिए डीएपी 1,350 रुपये प्रति 50 किलोग्राम बैग बिक रही है. सरकार ने फॉस्फोरस पर सब्सिडी पिछले रबी सीजन में 66.93 रुपये किलोग्राम से घटाकर 20.82 रुपये किग्रा और खरीफ 2023 में 41.03 रुपये किलोग्राम कर दी थी.
चालू वित्त वर्ष के अप्रैल-अक्टूबर के दौरान यूरिया की बिक्री 8 प्रतिशत बढ़कर 207.63 लाख टन हो गई, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में 192.61 लाख टन थी. बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FAI) के अध्यक्ष एन सुरेश कृष्णन ने कहा कि नॉन यूरिया फर्टिलाइजर में वैश्विक स्तर पर डीएपी की कीमत सबसे अधिक है. जबकि, भारत में यह एमओपी और कॉम्प्लेक्स से कम है. उन्होंने सुझाव दिया कि इसे नीतिगत बदलावों के साथ एड्रेस किया जाना चाहिए.
विशेषज्ञों और निर्माताओं ने कहा कि उर्वरक के असंतुलित उपयोग में मुख्य रूप से यूरिया की अत्यधिक सब्सिडी वाली दर 267 रुपये प्रति 45 किलोग्राम का बैग है. सरकार भारत के पड़ोसी देशों समेत अन्य देशों में यूरिया की ऊंची दरों की तुलना करते हुए इसे अपनी उपलब्धि बता रही है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मूल्य में अस्थिरता और रबी 2023-24 के लिए न्यूट्रिएंट बेस्ड सब्सिडी (NBS) दरों में गिरावट फॉस्फोरस और पोटाश को प्रभावित कर रही है.
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उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में पोटास के लिए एनबीएस दरों में तेज कमी मिट्टी में महत्वपूर्ण प्राथमिक न्यूट्रीशन एलीमेंट की उपलब्धता को प्रभावित कर रही है और एनपीके उपयोग अनुपात को और बढ़ा रही है. यह बताते हुए कि भारत उर्वरकों के लिए विभिन्न कच्चे माल और फीडस्टॉक के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है. एन सुरेश कृष्णन ने कहा कि क्षमता बढ़ने और नॉन सब्सिडी वाले नैनो यूरिया के लॉन्च के साथ कुछ वर्षों के बाद यूरिया का शून्य आयात हो सकता है.
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