सोयाबीन की बुवाई जून के पहले सप्ताह से शुरू हो जाती है. ऐसे में सोयाबीन की बंपर पैदावार पाने के लिए किसानों को इसकी उन्नत किस्मों को उगाना चाहिए और सही विधि से बुवाई करनी चाहिए ताकि फसलों की पैदावार अच्छी हो सके. बाजार में सोयाबीन के अलावा सोयाबीन से सोया बड़ी, सोया मिल्क, सोया पनीर आदि बनाए जाते हैं. आपको बता दें कि सोयाबीन तिलहनी फसलों में आता है और देश के कई राज्यों में इसकी खेती की जाती है. मध्य प्रदेश में इसकी खेती प्रमुखता से की जाती है. भारत में सोयाबीन का उत्पादन 12 मिलियन टन की मात्रा में होता है. भारत में यह खरीफ की फसल है.
भारत में सबसे ज्यादा सोयाबीन का उत्पादन मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान में होता है. सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 45 फीसदी जबकि महाराष्ट्र की हिस्सेदारी 40 फीसदी है. इसके अलावा बिहार में किसान इसकी खेती कर रहे हैं. सोयाबीन की खेती करने वाले किसान अगर इसकी फसल से अच्छी पैदावार चाहते हैं तो वे डीएपी और एनपीके खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं. अब सवाल यह उठता है कि पौधों को कब और कौन सा उर्वरक दिया जाए ताकि उनकी वृद्धि अच्छी हो.
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सोयाबीन में प्रोटीन, कैल्शियम, फाइबर, विटामिन ई, बी कॉम्प्लेक्स, थायमिन, राइबोफ्लेविन एमिनो एसिड, सैपोनिन, सिटोस्टेरॉल, फेनोलिक एसिड और कई अन्य पोषक तत्व होते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं. इसमें आयरन होता है जो एनीमिया को दूर करता है. सोयाबीन मुख्य रूप से खरीफ सीजन में बोई जाती है. इसकी बुवाई जून के पहले सप्ताह से शुरू होती है. लेकिन सोयाबीन की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के मध्य तक है.
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इन दवाइयों के प्रयोग से पौधों की जड़ों का विकास होगा और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी. इतना ही नहीं इस खाद के इस्तेमाल से पौधों की जड़ें मिट्टी में गहराई तक जाएंगी जिससे पौधों का विकास होता है. पौधों की वृद्धि, विकास और पौधों में नई शाखाओं का अंकुरण अच्छा होगा. पौधों में किसी भी प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी नहीं होगी. इन दवाओं के प्रयोग से सोयाबीन की फसल में फलियों की संख्या बढ़ेगी. साथ ही दानों का आकार भी बड़ी मात्रा में बढ़ेगा और इसके साथ ही दाने चमकदार बने रहेंगे.
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