मुंबई स्थिति भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर यानी कि BARC ने 8 फसलों की उन्नत किस्में जारी की हैं. इन किस्मों में 5 अनाज और 3 तिलहन फसलों की वैरायटी शामिल हैं. अपने 70 साल के इतिहास में बार्क ने अब तक 70 फसलों की वैरायटी जारी की है. ये सभी उन्नत किस्में हैं जिनसे किसानों को अधिक उपज मिलती है. लिहाजा उनकी कमाई और मुनाफा दोनों में वृद्धि होती है. देश में बार्क का नाम सबसे महत्वपूर्ण शोध संस्थानों में शुमार है.
बार्क ने किसानों के लिए 8 नई ट्रॉम्बे फसलों की उन्नत वैरायटी जारी की है. इन किस्मों को ट्रॉम्बे इसलिए कहा गया है क्योंकि बार्क मुंबई की जिस जगह पर स्थित है, उसका नाम ट्रॉम्बे है.
अपनी स्थापना के 70 वर्षों में, BARC ने किसानों को कुल 70 फसल किस्में दी हैं. BARC की स्थापना 1954 में ट्रॉम्बे में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (ΑΕΕΤ) के रूप में की गई थी. ट्रॉम्बे की किस्मों में पांच अनाज और तीन तिलहन शामिल हैं, जिन्हें राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से अलग-अलग मौसम और जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप तैयार किया गया है.
इन फसल किस्मों को रेडिएशन-आधारित म्यूटेशन ब्रीडिंग टेक्निक का उपयोग करके विकसित किया गया है. ये उच्च उपज देने वाली, जलवायु के मुताबिक ढल जाने वाली और गैर-जीएमओ फसल किस्में पूरे भारत में खेती में बड़ा बदलाव लाने के लिए तैयार हैं.
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परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) के सचिव और परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के अध्यक्ष डॉ अजीत कुमार मोहंती ने किसानों की आय बढ़ाने, खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने और भारत के कृषि लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाने में BARC के महत्वपूर्ण योगदान के बारे में बताया.
BARC के निदेशक विवेक भसीन ने इन किस्मों को इनके जल्दी पकने, रोग प्रतिरोधक क्षमता, जलवायु के मुताबिक ढलने, नमक सहनशीलता और मौजूदा विकल्पों की तुलना में अधिक पैदावार के कारण किसानों के लिए वरदान बताया. यह पहली बार है कि BARC गेहूं की किस्में लेकर आया है. दो नई गेहूं किस्में ट्रॉम्बे जोधपुर गेहूं-153 (टीजेडब्ल्यू-153) और ट्रॉम्बे राज विजय गेहूं-155 (टीआरवीडब्ल्यू-155) शामिल हैं.
राजस्थान के लिए जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से विकसित, TJW-153 गर्मी-सहिष्णु किस्म है, जो शुरुआती या अंतिम गर्मी के तनाव के बावजूद स्थिर उपज देती है. यह ब्लास्ट और पाउडरी फफूंद जैसी फफूंद जनित बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है, जो पैदावार को काफी कम कर देती हैं. यह नई किस्म राजस्थान की शुष्क परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है. मध्य प्रदेश के लिए राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के साथ विकसित, इस किस्म में जिंक और आयरन की मात्रा बढ़ी हुई है, चपाती बनाने की बेहतर क्वालिटी है, और ब्लास्ट और पाउडरी फफूंद जैसी फफूंद जनित बीमारियों के लिए प्रतिरोधी है.
चावल की तीन नई किस्में हैं बौना लुचाई-सीटीएलएम, संजीवनी और ट्रॉम्बे कोंकण खारा. छत्तीसगढ़ के लिए आईजीकेवी, रायपुर के साथ मिलकर विकसित की गई लोकप्रिय लुचाई लैंडरेस की एक म्यूटेंट किस्म है. बौना लुचाई एक बौनी, जल्दी पकने वाली किस्म है जो गिरती नहीं है. यह किस्म बारिश या हवा में नहीं गिरती, यह नरम-पकने की क्वालिटी को बनाए रखती है और अपने बाकी वैरायटी की तुलना में 40 परसेंट अधिक उपज देती है.
संजीवनी वैरायटी को लयचा चावल लैंडरेस से बनाया गया है जो 350 से अधिक फाइटोकेमिकल्स से भरपूर है जो औषधीय गुणों, इम्युनिटी और एंटीऑक्सीडेंट प्रतिक्रियाओं को बढ़ाने के लिए जाना जाता है. आईजीकेवी, रायपुर के सहयोग से छत्तीसगढ़ के लिए विकसित, यह स्वास्थ्यवर्धक चावल की किस्मों की बढ़ती मांग को पूरा करता है.
महाराष्ट्र की खारी तटीय मिट्टी के लिए डिजाइन की गई ट्रॉम्बे कोंकण खारा से खारी परिस्थितियों में 15 परसेंट अधिक अनाज की उपज मिलती है. डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली के सहयोग से विकसित, यह किस्म खारे मिट्टी में चावल की खेती को बढ़ावा देती है.
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तीन नई तिलहन किस्में ट्रॉम्बे जोधपुर मस्टर्ड-2 (TJM-2), ट्रॉम्बे लातूर तिल-10 (TLT-10) और छत्तीसगढ़ ट्रॉम्बे मुंगफली (CGTM) हैं. राजस्थान के लिए जोधपुर कृषि विश्वविद्यालय के साथ विकसित, TJM-2 मौजूदा किस्मों की तुलना में 14 परसेंट उपज लाभ देती है, जिसमें 40 परसेंट तेल होता है. यह पाउडरी फफूंदी और सफेद जंग जैसी फफूंद रोगों के लिए प्रतिरोधी है, जो किसानों के लिए एक मजबूत विकल्प देती है.
CGTM को IGKV, रायपुर के सहयोग से ट्रॉम्बे ग्राउंडनट-88 (TG-88) के रूप में जारी किया गया है. उच्च तेल सामग्री (49 परसेंट) के साथ, यह बरसात और गर्मी दोनों मौसमों में फलता-फूलता है, जो छत्तीसगढ़ के किसानों को अधिक लाभ दे सकता है.
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