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सरकार ढैंचा बीज की खरीद पर देगी सब्स‍िडी, इससे बंजर जमीन बनेगी उपजाऊ

सरकार ढैंचा बीज की खरीद पर देगी सब्स‍िडी, इससे बंजर जमीन बनेगी उपजाऊ

यूपी में व्यापक पैमाने पर बंजर पड़ी ऊसर जमीनों को उपजाऊ बनाने पर सरकार का पूरा जोर है. योगी सरकार ने इसके लिए किसानों को ग्रीन खाद के रूप में इस्तेमाल किए जाने वाले ढैंचा की घास को हथियार बनाया है. इस साल गर्मी में सरकार किसानों को अनुदान पर ढैंचा का बीज देगी.

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यूपी में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए किसानों को अनुदान पर मिलेगा हरी खाद का बीज यूपी में बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए किसानों को अनुदान पर मिलेगा हरी खाद का बीज

ढैंचा को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यह मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाल नाइट्रोजन और कार्बन तत्वों की कमी को पूरा करता है. खेतों को उपजाऊ बनाने और खरपतवार की समस्या से निपटने के लिए किसान पारंपरिक रूप से ढैंचा का इस्तेमाल करते रहे हैं. रासायनिक खादों और खरपतवार नाशक दवाओं के चलन में आने के बाद किसानों ने बदलते  वक्त के साथ में ढैंचा का इस्तेमाल करना बंद कर दिया था. प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने के क्रम में अब एक बार फ‍िर सरकार ग्रीन खाद का इस्तेमाल कर किसानों को अनुपजाऊ जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इसी कड़ी में यूपी सरकार क‍िसानों को ढैंचा बीज की खरीदारी पर सब्स‍िडी देने जा रही है. ज‍िससे क‍िसान अपनी जमीनों पर जमीन पर ढैंचा लगा सकें और बंजर जमीन को उपजाऊ कर सकें.     

आईए जानते हैं क‍ि ढैंचा है क्या. इसे हरी खाद क्यों कहते हैं और कैसे क‍िसान इससे अपनी राह आसान बना सकते हैं. साथ ही जानते हैं क‍ि यूपी सरकार ढैंचा बीज की खरीद पर क‍िसानों को क‍ितनी सब्स‍िडी दे रही है.   

खेतों के लिए संजीवनी है हरी खाद

रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से खेत की मिट्टी में बालू एवं कैल्शियम तत्वों की मात्रा बढ़ने पर ऊसर-पन आ जाता है. इसके अलावा देश में नैसर्गिक रूप से भी बंजर जमीन की बहुतायत है. किसान सदियों से बंजर और ऊसर जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए ग्रीन खाद के रूप में ढैंचा का इस्तेमाल करते रहे हैं.

बुंंदेलखंड जैसे पठारी इलाकों में बंजर और ऊसर जमीनों में किसान सिर्फ एक ही फसल ले पाते हैं. इन जमीनों को उपजाऊ बनाने के लिए किसान रबी की फसल कटने के बाद खेत खाली होने पर ढैंचा की बुआई कर देते हैं. एक महीने में इसकी फसल हरी घास के रूप में तैयार हो जाती है. किसान इसे पालतू जानवरों को खि‍ला कर बाकी फसल को खेत में ही छोड़ देते हैं.

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बारिश के बाद खेत की जुताई करने पर ढैंचा की घास खेत में मिल जाती है. य‍ह खेत में खरपतवार उगने से रोकती है, साथ ही इससे मिट्टी में नमी की मात्रा बढ़ने से नाइट्रोजन एवं कार्बन तत्वों की प्रचुरता आने से उपजाऊ शक्ति बढ़ती है. इस वजह से ढैंचा के रूप में खेतों को मिलने वाली हरी खाद को संजीवनी माना जाता है.

ढैंचा बीज पर सब्स‍िडी 

बंजर या ऊसर जमीन को उपजाऊ बनाने में ढैंचा की घास सबसे ज्यादा प्रभावी मानी जाती है. लिहाजा इसके बीज की मांग भी बढ़ी है. खासकर प्राकृतिक एवं जैविक खेती करने की ओर प्रोत्साहित हो रहे किसान ढैंचा का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. प्राकृतिक एवं जैविक खेती को बढ़ावा देने के क्रम में योगी सरकार मिट्टी में कार्बनिक तत्वों को बढ़ाने के लिए हरी खाद को प्रोत्साहित कर रही है. 

इन सब में हरी खाद के लिहाज से सबसे उपयोगी माना गया ढैंचा का बीज, खरीफ सीजन में किसानों को 50 फीसद सब्स‍िडी पर दिया जाएगा. योगी सरकार ने इस साल 30 हजार कुंतल ढैंचा का बीज किसानों को अनुदान पर बांटने का लक्ष्य तय किया है. पिछले साल भी सरकार ने 54.65 पैसे प्रति कुंतल की कीमत पर किसानों को 30 हजार कुंतल बीज वितरित किया था. इस साल भी इसी कीमत पर यह बीज दिया जाएगा. कुछ प्रगतिशील किसानों को यह बीच डिमांस्ट्रेशन के लिए भी दिया गया था. जिससे किसान इसके इस्तेमाल के तरीके से अवगत हो सकें. उन्हें यह बीज 90 फीसदी अनुदान पर दिया जाता है.

कैसे उपयोगी है ग्रीन खाद

कृषि विभाग के उपनिदेशक जयप्रकाश ने बताया कि ढैंचा एवं अन्य ग्रीन खादें, उर्वरता के साथ मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाती है. इससे मिट्टी में वायु संचरण बढ़ने के कारण लाभकारी जीवाणुओं की तादाद में इजाफा होता है. उन्होंने बताया कि सनई एवं ढैंचा की जड़ों में ऐसे जीवाणु होते हैं जो हवा से नाइट्रोजन लेकर इसे मिट्टी में स्थिर कर देते हैं.

इसका लाभ अगली फसल को मिलता है. उनके मुताबिक कार्बनिक तत्व मिट्टी की आत्मा होते हैं. इसलिए हरी खाद को मिट्टी में ऑर्गेनिक रूप से कार्बन तत्वों को बढ़ाने वाला बूस्टर माना जाता है. कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता खुद में सभी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है. साथ ही यह रासायनिक खादों के लिए भी उत्प्रेरक का काम कर उसकी क्षमता को बढ़ाती है. अगली फसल में खरपतवारों का प्रकोप भी कम हो जाता है. कुछ सालों तक लगातार ढैंचा को का प्रयोग करने से खेत की भौतिक संरचना बदल जाती है.

इस्तेमाल का तरीका

इफको के मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक डॉ. डीके सिंह ने बताया कि अगर हरी खाद के लिए सनई और ढैचा बोया गया है, तो इसकी फसल को पलटना पड़ता है. उन्होंने कहा कि किसानों को इसकी बोआई के लगभग 6 से 8 सप्ताह बाद फूल आने से पहले इसे जुताई करके पलट देना चाहिए. इसके बाद खेत में पानी में लगा दिया जाता है, जिससे फसल खेत में ही सड़ जाती है.

किसान, फसल को पलटने के बाद और सिंचाई करने के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का भुरकाव भी कर सकते हैं. इसके बाद फसल करीब 3 से 4 सप्ताह में सड़ जाती है. इसके बाद किसान खेत में अगली फसल की बुआई कर सकते हैं. उन्होंने बताया कि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए ग्रीन खाद के रूप में सनई उपयुक्त होती है. एक हेक्टेयर जमीन में इसका 80 से 100 किग्रा बीज लगता है. ढैंचा की बोआई कम वर्षा वाले क्षेत्रों में की जा सकती है. इसका 60 से 80 किग्रा बीज प्रति हेक्टेयर लगता है.

हरी खाद में ये भी है शामिल

हरी खाद के रूप में किसान ढैंचा के अलावा, सनई, उड़द एवं मूंग को भी बो सकते हैं. रबी सीजन के बाद किसान अक्सर अपने खाली खेतों में उड़द और मूंग बोते हैं. इससे खेत खाली रहने से बच जाते हैं और इनमें खरपतवार नहीं उग पाता है. साथ ही उड़द और मूंंग की उपज को बाजार में बेचकर किसानों की अतिरिक्त आय भी हो जाती है. बोनस के रूप में ये फसलें खेत को कार्बन तत्वों की भरपाई करके मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं. इसलिए इन्हें हरी खाद की श्रेणी में शामिल किया गया है.

 

बुआई का समय

हरी खाद के कारगर विकल्प के रूप में सनई, ढैचा, मूंग, उड़द आदि की सिंचाई की सुविधा होने पर खाली खेत में अप्रैल से जून के बीच कभी भी इनकी बोआई की जा सकती है. इसमें ढैचा एवं सनई, हरी खाद के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त माने गए हैं. सिंह ने बताया कि मूंग एवं उड़द की बोआई से हरी खाद के साथ प्रोटीन से भरपूर दलहन की अतिरिक्त फसल भी संबंधित किसान को मिल जाती है. बशर्ते, इनके लिए खुद का सिंचाई का साधन होना जरूरी है. इनकी बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 15 से 20 किग्रा बीज की जरूरत होती है.

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