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Kharif Preparation: किसानों की हितैषी है गर्मी, जो देती है साल भर के लिए खेत तैयार करने का मौका

Kharif Preparation: किसानों की हितैषी है गर्मी, जो देती है साल भर के लिए खेत तैयार करने का मौका

फसल चक्र के तीन सीजन रबी, खरीफ और जायद की फसलों के लिए खेत को तैयार करने में मौसम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. कृष‍ि विशेषज्ञों के मुताबिक जिस गर्मी से बचने के लिए हम सबसे ज्यादा जुगत लगाते है, वही गर्मी, साल भर के लिए खेतों को तैयार करने के लिहाज से किसानों की सबसे बड़ी हितैषी है, क्योंकि इस अवधि में किसान खेत की मिट्टी का उपचार कर खेत को साल भर उपज देने के लिए तैयार करते हैं.

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खरीफ की बुआई से पहले गहरी जुताई कर खेत को सेहतमंद बना सकते हैं किसान, फोटो: साभार फ्रीपिक     खरीफ की बुआई से पहले गहरी जुताई कर खेत को सेहतमंद बना सकते हैं किसान, फोटो: साभार फ्रीपिक

गर्मी के मौसम में हर साल नौ दिन ऐसे होते हैं, जब तापमान अधिकतम होता है. मौसम के आकलन और खेती की परंपरागत पद्धति में इस अवधि को 'नौतपा' कहा जाता है. हर साल मई के अंतिम और जून के पहले सप्ताह में होने वाले नौतपा का खेती के लिहाज से महत्व संदेह से परे है, जिसकी पुष्टि विज्ञान भी करता है. इस साल नौतपा 25 मई से शुरू हो रहे हैं. उत्तर भारत में खेती की परंपरागत प्रणाली के मुताबिक नौतपा में खेत को साल भर की उपज देने के लिए किसान तैयार करते हैं. इससे स्पष्ट है कि ग्रामीण जीवन में नौतपा का महत्व जगजाहिर है. यह बात दीगर है कि गर्मी की तपिश चरम पर होने के कारण नौतपा को शहरी जीवन में परेशानी का सबब मान लिया गया है.

खेती में गर्मी का महत्व

यूपी में झांसी स्थित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक डॉ प्रशांत जांभुलकर ने बताया कि सर्दी में कम तापमान में खेत की मिट्टी को नुकसान पहुंचाने वाले कीटाणु पनपते हैं. सर्दी बढ़ने के साथ ये कीटाणु खुद को बचाने के लिए मिट्टी में 6 से 8 इंच गहराई तक पहुंचने की कोशिश करते हैं. जिससे मिट्टी में एक निश्चित गहराई में सुरक्षित रह‍ कर ये कीटाणु मिट्टी की ऊपरी सतह पर पाए जाने वाले पोषक तत्वों काे अपना निवाला बना सकें.

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उन्होंने कहा कि इस दौरान लू भरी गर्म हवाएं खेत में पड़े फसल अवशेष को सुखाने में ड्रायर का काम करती हैं और अगली बारिश में इन्हें सड़ा कर मिट्टी में मिलकर खाद बनने का सुगम रास्ता मुहैया कराती है. गर्मी के मौसम में खेत की मिट्टी में मिले हानिकारक कीटाणुओं से निजात दिलाने और फसल अवशेष को हरित खाद बनाने की प्रक्रिया उस समय सबसे तेज होती है, जब तापमान चरम पर होता है.

गौरतलब है कि विज्ञान से इतर, ज्योतिष या परंपरागत खेती की भाषा में इस अवधि काे नौतपा कहा जाता है. वैज्ञानिक एवं परंपरागत, दोनों नजरियों से किसानों के लिए इस अवधि का महत्व स्वयंसिद्ध है. ज्योतिष विज्ञानी डाॅ शेषनारायण बाजपेई ने बताया कि विज्ञान और परंपरा, दोनों में नौतपा का अपने अपने तरीके से महत्व बताया है. यह अवध‍ि किसानों को उनकी साल भर की मेहनत का बेहतर परिणाम प्राप्त करने का मजबूत आधार बनाने का एक अवसर है. जिसे किसान मिट्टी के उपचार के लिए पूरे मनोयोग से इस्तेमाल करते हैं.

किसान कैसे करें खेत तैयार

डॉ जांभुलकर ने किसानों को बताया कि उत्तर भारत के मैदानी एवं पठारी इलाकों में गर्मी इन दिनों अपने चरम पर है. मौसम विभाग के पूर्वानुमान के मुताबिक आगामी 4 जून को दक्षिण पश्चिम मानसून के दस्तक देने से पहले किसानों को भीषण गर्मी के इस दौर का लाभ उठाते हुए अपने खेतों को गहरे से जुतवा कर कम से कम 2-3 दिनों तक यूंं ही छोड़ देना चाहिए. जिससे मिट्टी में 8 इंच गहराई तक जमे बैठे हानिकारक कीटाणु सतह पर आ कर गर्मी की तपिश से नष्ट हो जाते हैं.

उन्होंने बताया कि जमीन के उपचार का यह पहला दौर होता है. इसमें खेत की गहरी जुताई करके सख्त मिट्टी काे तोड़कर भुरभुरा बनाना आसान होता है. इससे मिट्टी में पानी को सोखने की क्षमता (Water Holding Capacity) बढ़ती है. खेत जलधारण क्षमता बढ़ने पर मिट्टी के पोषक तत्व बढ़ते हैं, जो खेत को उपजाऊ बनाते हैं.

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ढाल की दिशा में करें जुताई

डॉ जांभुलकर ने बताया कि किसानों को खरीफ फसलों की उपज के लिए खेत को तैयार करने के लिए खेत की जुताई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे खेत की ढाल की दिशा में जुताई करें. खासकर, वर्षा आधारित खेती वाले इलाकों में जुताई का यह अनिवार्य तरीका है. ऐसा करने से नौतपा के बाद बारिश होने पर खेत में जलजमाव नहीं हाे पाता है और बारिश का पानी जुताई की गहराई तक मिट्टी में एक समान मात्रा में मिल कर अतिरिक्त पानी बह कर बाहर निकल जाता है.

वैज्ञानिक मतानुसार गहरी जुताई का दूसरा लाभ खरपतवार प्रबंधन के रूप में होता है. इससे रबी की फसलों की कटाई के बाद खेत खाली होने पर जो खरपतवार खेत में जम जाता है, उसे गहरी जुताई कर जड़ से खत्म किया जा सकता है. गहरी जुताई नहीं होने पर खेत में जमा खरपतवार की जड़ें मिट्टी में ही रह जाती हैं, जिससे खरीफ की बुआई होने पर ये फिर से उग आती हैं. इसी प्रकार गहरी जुताई करने से खेत में गिरे पिछली फसल के दाने भी जमने से रोके जा सकते हैं.

2 से 3 बार हो गहरी जुताई

डाॅ जांभुलकर किसानों को बताते हैं कि मई माह में 15 से 20 दिन के अंतराल पर कम से कम 2 बार खेत की गहरी जुताई करना चाहिए. उनका सुझाव है कि ज्यादा खरपतवार होने की स्थिति में गहरी जुताई 3 बार भी की जा सकती है. इससे मिट्टी में मिले हानिकारक कीटाणु ज्यादा मात्रा में नष्ट होते हैं.

मृदा उपचार के अगले चरण में गहरी जुताई के बाद नीम, मूंगफली, महुआ और सरसों आदि की खली को गोबर की खाद में मिलाकर खेत में डालना चाहिए. इससे मिट्टी में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ने से खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है. मिट्टी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए ट्राइकोडर्मा मिली गोबर की खाद का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए 200 किग्रा गोबर की खाद में 1 किग्रा ट्राइकोडर्मा पाउडर मिलाकर इसके ढेर को नम बनाने के लिए इस पर पानी का छिड़काव करते हैं. इस ढेर को प्लास्टिक की तिरपाल से ढक कर 3 सप्ताह के लिए रख देते हैं. इसके बाद संवर्धित खाद गहरी जुताई के बाद खेत में डाल सकते हैं. इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के साथ मृदा जनित रोगों पर नियंत्रण भी हाे जाता है.