Urea: धान में यूरिया डालने में न करें गलती, जानें लागत घटाने और पैदावार बढ़ाने का वैज्ञानिक फॉर्मूला

Urea: धान में यूरिया डालने में न करें गलती, जानें लागत घटाने और पैदावार बढ़ाने का वैज्ञानिक फॉर्मूला

धान की फसल में यूरिया का अंधाधुंध प्रयोग लागत बढ़ाने के साथ-साथ कीट-रोगों को बढ़ाकर पैदावार को नुकसान पहुंचाता है. इसका वैज्ञानिक समाधान और एक सस्ती और आसान तकनीक है, जिसमें पत्तियों के रंग से फसल की नाइट्रोजन ज़रूरत का पता लगाया जाता है. इसके सही इस्तेमाल से किसान अनावश्यक यूरिया खर्च से बचते हैं, जिससे लागत घटती है और संतुलित यूरिया मिलने से फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

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Urea: धान में यूरिया डालने में न करें गलती, जानें लागत घटाने और पैदावार बढ़ाने का वैज्ञानिक फॉर्मूलायूरिया खाद के इस्तेमाल में समझदारी बरतें किसान

इस साल देश में धान की बंपर बुवाई हुई है, जो एक अच्छी खबर है. लेकिन अच्छी पैदावार के लालच में, कई किसान यूरिया का अंधाधुंध इस्तेमाल कर बैठते हैं. उन्हें इस बात की सही जानकारी नहीं होती कि फसल को कब और कितने यूरिया की ज़रूरत है. इसका नतीजा यह होता है कि लागत तो बढ़ती ही है, साथ ही फसल में कीड़े और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है. यानी कि फ़ायदा होने की जगह नुकसान हो जाता है. जैसे हमें ज़रूरत से ज़्यादा खाना नुकसान करता है, वैसे ही पौधों के लिए ज़रूरत से ज़्यादा खाद ज़हर बन जाती है.

हर फसल की अपनी एक ज़रूरत होती है. अगर आप उसे ठीक उसी ज़रूरत के हिसाब से खाद-पानी देंगे, तो पैदावार अच्छी होगी. ज़्यादा यूरिया डालने से खाद पर अतिरिक्त खर्च होता है. ज़्यादा नाइट्रोजन से पौधे नरम हो जाते हैं, जिससे उन पर कीटों का हमला आसान हो जाता है. ज़मीन की सेहत पर बुरा असर पड़ता है. फसल अच्छी होने के बजाय खराब होने लगती है.

क्या है समाधान? 

तो सवाल यह है कि एक आम किसान यह कैसे पता करे कि पौधे को कब खाद चाहिए? इसका जवाब बहुत ही सरल, सस्ता और कारगर है - लीफ कलर चार्ट (LCC). यह एक प्लास्टिक की छोटी सी पट्टी होती है, जिस पर हरे रंग के अलग-अलग शेड (हल्के पीले-हरे से गहरे हरे तक) बने होते हैं. इन रंगों को नंबर दिए गए होते हैं. धान के पत्ते का रंग देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि पौधे में नाइट्रोजन (यूरिया) की मात्रा कम है या ज़्यादा. यह चार्ट बाज़ार में मात्र 50 से 60 रुपये में आसानी से मिल जाता है. इस चार्ट का सीधा सा नियम है पत्ती का रंग जितना हल्का होगा, मतलब पौधे को नाइट्रोजन की उतनी ही ज़्यादा ज़रूरत है. पत्ती का रंग जितना गहरा हरा होगा, मतलब पौधे में पर्याप्त नाइट्रोजन है और अभी यूरिया डालने की ज़रूरत नहीं है.

लीफ कलर चार्ट का उपयोग कैसे करें?

सही परिणाम के लिए चार्ट का इस्तेमाल सही तरीके से करना ज़रूरी है:

सही पौधे चुनें: खेत में कम से कम 10 ऐसे पौधे चुनें जो स्वस्थ हों और उन पर किसी कीड़े या बीमारी का असर न हो.
सही पत्ती चुनें: हर चुने हुए पौधे की सबसे ऊपर वाली, पूरी तरह से खुली हुई पत्ती का रंग जांचें.
सही समय पर जांचें: सुबह 8 से 10 बजे के बीच का समय सबसे अच्छा होता है.
धूप से बचें: जांच करते समय पत्ती पर सीधी धूप नहीं पड़नी चाहिए. आप अपनी पीठ सूरज की तरफ रखकर छाया में पत्ती का रंग मिला सकते हैं.
एक ही व्यक्ति जांचे: कोशिश करें कि हर बार एक ही व्यक्ति रीडिंग ले, ताकि गलती की गुंजाइश न हो.

जब आप 10 पत्तियों का रंग चार्ट से मिला लें, और उनमें से 6 या उससे ज़्यादा पत्तियों का रंग चार्ट के किसी निश्चित नंबर से हल्का हो, तो समझ जाइए कि अब यूरिया डालने का समय आ गया है. धान में लीफ कलर चार्ट के अनुसार यूरिया की सिफारिश की जाती है,

चार्ट देखकर यूरिया की मात्रा कैसे तय करें?

धान का प्रकार  लीफ कलर चार्ट वैल्यू यूरिया की मात्रा (लगभग) प्रति हेक्टेयर
खरीफ़ धान (गैर-बासमती) ≤ 4  60 किलो (लगभग 1.25 बैग)
खरीफ़ धान (बासमती) ≤ 3  50 किलो (लगभग 1 बैग)
धान की सीधी बुवाई (गैर-बासमती) ≤ 3 50 किलो (लगभग 1 बैग)

ध्यान दें यह मात्रा एक बार में डालने के लिए है. हर 7 से 10 दिन में पत्तियों का रंग जांचते रहें और ज़रूरत पड़ने पर ही यूरिया डालें. 

लीफ कलर चार्ट इस्तेमाल करने के फायदे

अगर लीफ कलर चार्ट का प्रयोग करते हैं तो 20-25% तक यूरिया की खपत कम कर सकते हैं. फसल को सही समय पर सही पोषण मिलता है, जिससे पैदावार बढ़ती है. कीड़े और बीमारियों का प्रकोप कम होता है. मिट्टी और पानी का प्रदूषण कम होता है.

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