आपने शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) का नाम सुना होगा. यह ऐसी खेती है जिसमें किसी तरह की लागत या कोई खर्च नहीं आता. यह खेती पूरी तरह से प्रकृति यानी कि कुदरत पर आधारित होती है. कुदरती संसाधनों की मदद से ही यह पूरी खेती की जाती है. यहां जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग का अर्थ है बिना किसी उर्वरक और कीटनाशक या किसी अन्य बाहरी सामग्री का उपयोग किए फसल उगाना. यहां शून्य बजट शब्द का अर्थ सभी फसलों के उत्पादन की शून्य लागत से है.
ZBNF मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करती है. इस खेती में किसी तरह के केमिकल खाद का इस्तेमाल नहीं होता है और उत्पादन की शून्य लागत से किसानों की आय में वृद्धि होती है. यही वजह है कि सरकार अब इसी खेती पर जोर दे रही है. सरकार का मानना है कि जिस खेती में अधिक से अधिक खर्च आता है, उससे किसान कर्ज के जंजाल में फंसता है. किसानों को कीटनाशकों और रासायनिक खादों पर अधिक खर्च करना पड़ता है. उस हिसाब से खेती से कमाई नहीं होने पर किसानों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसलिए, जीरो बजट नेचुरल खेती के माध्यम से किसानों की लागत को शून्य करना है ताकि फसल से भी आमदनी हो, वह किसान के लिए शुद्ध मुनाफा हो.
किसानों को सबसे अधिक खर्च बीजों पर करना होता है. आजकल के बीज अगले साल प्रयोग में नहीं आते. यही वजह है कि आज की खेती बेहद महंगी हो गई है. किसान अगर प्राकृतिक खेती करें और बीजों को अगले साल के लिए सहेज कर रखें तो उनकी लागत बेहद कम हो सकती है. घर में रखे बीज का इस्तेमाल अगले साल बुआई में किया जाए तो इसकी लागत शून्य हो जाएगी.
खेती में यह साबित हो गया है कि अगर एक ही खेत में अलग-अलग फसलों को लगाया जाए तो उसके कई फायदे हैं. किसान चाहें तो दाल, अनाज, सब्जियां, फलियां और साग एक साथ उगा सकते हैं. इससे किसान को एक साथ कई उपज मिलेगी, साथ ही दालों को उगाने से मिट्टी की उर्वरकता बनी रहेगी. इस खेती से किसान को अनाज के साथ साग-सब्जी भी एक साथ मिल जाया करती है.
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प्राकृतिक खेती में मेढ़ों पर पेड़ों को लगाने की सलाह दी जाती है. इसके कई फायदे हैं. पेड़ की लकड़ी जलावन के काम आएगी. पेड़ के गिरे पत्ते खेत में खाद का काम करेंगे. आजकल चिनार की लकड़ी की बहुत मांग है जिसे महंगे रेट पर बेचा जाता है. किसान अगर खेतों के किनारे चिनार लगा दें तो तीन से चार साल में उन्हें कमाई मिलने लगेगी. खेती पर आने वाला खर्च उस चिनार की लकड़ी से प्राप्त हो जाएगा.
अब खेती में बैलों का इस्तेमाल नहीं हो रहा. खेती में बढ़ने वाले खर्च की एक बड़ी वजह ये भी है. अगर किसान गाय, बैल रखें तो उनके गोबर से कंपोस्ट खाद बनेगी. बैल से खेती की जुताई हो सकेगी. इससे किसान का पैसा बचेगा. बैल से खेत की जुताई को मशीन की जुताई से उत्तम माना जाता है और इससे पैदावार बढ़ती है. गाय-बैल का गोबर मुफ्त में खाद देगा और जुताई भी मुफ्त में हो सकेगी.
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रासायनिक खाद किसी भी सूरत में न तो खेत के लिए और न ही इंसानी सेहत के लिए अच्छा है. यह खेती की लागत को कई गुना तक बढ़ा देता है. इसके विपरीत प्राकृतिक खेती में ऑर्गेनिक खाद के इस्तेमाल पर जोर दिया जाता है. यह खाद घर में मौजूद चीजों से बन जाती है. जैसे सब्जी का छिलका, गोबर, पेड़-पौधों की पत्तियां, सड़े तने, गन्ने की खोई आदि. इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं, मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहती है और बिना किसी खर्च के फसलों को खाद मिल जाती है.
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