बीटेक किसान... सुनने में भले ही अटपटा लगे, लेकिन बुंदेलखंड के चुनौती भरे हालात में बीटेक किसान रोहित श्रीवास्तव ने खेती में इंजीनियरिंग के सूत्र अपनाकर खेती से जुड़े तमाम मिथकों को तोड़ा है. पहला मिथक तो यह कि खेती घाटे का सौदा है और दूसरा यह कि खेती के लिए अच्छी जमीन और पानी की उपलब्धता अनिवार्य शर्त है. उन्होंने अपने 18 बीघा खेत पर पारंपरिक फसलों के साथ पशुपालन, मछलीपालन, बागवानी और कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग कर ऊंचे दामों पर बेच कर खेती को मुनाफे का सौदा साबित कर दिया है. रोहित ने 'इंटीग्रेटिड फार्मिंग' का ऐसा सफल मॉडल पेश किया है जो साल भर सतत आय का जरिया बना रहे. रोहित ने 8 साल की मेहनत के बाद बने इस मॉडल को नाम दिया है 'जैविक ग्राम'.
राेहित ने बताया कि उन्होंने 2014 में बीटेक की पढ़ाई करके कुछ समय तक दिल्ली एनसीआर इलाके की कुछ निजी कंपनियों में नौकरी भी की. लेकिन, उनका मन शहर में नहीं लगा और वह अपने गांव अतर्रा वापस आ गए. बुंदेलखंड में खेती की बदहाली देखकर रोहित के मन में हालात को बदलने के लिए कुछ नया करने का ख्याल आया. उन्होंने बताया उनके परिवार में सभी लोग खेती करते हैं, लेकिन कोई भी संतुष्ट नहीं था. खेती के नए तरीकों पर विचार करते समय उन्होंने जैविक खेती के विकल्प को चुना. जैविक खेती का जरूरी अध्ययन कर रोहित ने भी अपनी पुश्तैनी जमीन के 18 बीघा खेत पर 'समग्र कृषि' यानि 'इंटीग्रेटिड फार्मिंग' का मॉडल बनाना शुरू कर दिया.
रोहित ने बताया जैविक खेती पूरी तरह से गोबर पर आधारित होती है. गोबर की तात्कालिक जरूरत पूरी करने के लिए उन्होंने अपने खेत में गायों का रैनबसेरा बनाया. इससे बुंदेलखंड में प्रचलित अन्ना प्रथा के तहत छोड़ी गयी गायों को उन्होंने रैनबसेरे में पानी, भूसा और चारे का इंतजाम कर दिया. इसके एवज में उन्हें गाय का गोबर मिलने लगा. गोबर एकत्र कर तीन महीने के भीतर ही रोहित ने केंचुए की खाद वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू कर दिया. इसके समानांंतर उन्होंने गीर और साहीवाल नस्ल की लगभग दो दर्जन गायों की गाैशाला शुरू की.
इस बीच रोहित ने मिट्टी के लिहाज से अपने पूरे खेत की नए सिरे से डिजायनिंग की. खराब मिट्टी वाले इलाके में नेपियर और बरसीम जैसे हरे चारे लगाकर सबसे ज्यादा बंजर जमीन पर गौशाला और गाय का रैनबसेरा बनाया. इसके साथ ही उन्होंने खेत के उपजाऊ हिस्से में पारंपरिक तरीके से गेहूं, धान और सरसों जैसी फसलें उगाई. उन्होंने इन फसलों की बाजार में बिकने वाली हाइब्रिड किस्मों के बजाए देसी किस्म की फसलों को उगाया. मसलन गेहूं में पैगम्बरी, कठिया और बंसी, धान में काला नमक, महाचिन्नावर और सोनम तथा देसी पीली सरसों जैसी फसलें उपजाई.
रोहित ने इन फसलों को मंडी में बेचने के बजाए इनकी प्रोसेसिंग कर गेहूं से दलिया और आटा, सरसों से तेल और धान से चावल बनाकर इनकी पैकिंग करके बेचना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने खेत के जैविक उत्पादों का शोरूम, खेत पर ही बनाया और इसे नाम दिया 'जैविक ग्राम हाट'. साल दर साल रोहित के इस शोरूम में फसल उत्पादों का दायरा बढ़ता जा रहा है. इसमें ताजी सब्जियों से लेकर, मछली, अंडा, दूध, गेहूं चावल सहित अन्य खाद्यान्न से बने तमाम उत्पाद, खाद्य तेल और गोबर से बनी खाद, जैविक कीटनाशक गोबर के गमले, दीये एवं अगरबत्ती तक बिकती हैं.
रोहित ने अपने फार्म में पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए तालाब बनवाया है. लगभग 360 वर्ग मीटर आकार के इस तालाब से जैविक ग्राम में सिंचाई के लिए पानी की जरूरत पूरी होती है. साथ ही इसमें मछली पालन से जैविक ग्राम की आय में इजाफा होता है. तालाब के आसपास उन्होंने बत्तख और कुक्कुट पालन भी किया है. इससे जैविक हाट में बिक्री के लिए देसी एवं जैविक अंडा तो मिलता ही है, साथ में मुर्गा की बीट से बनी खाद उनके खेत के अनुपजाऊ हिस्से को तेजी से उपजाऊ बनाने में मददगार बनी है. हाल ही में रोहित ने जैविक ग्राम में मशरूम उत्पादन का काम भी शुरू कर दिया है. उनके फार्म का बटन मशरूम कानपुर के होटलों तक जाता है.
एक तरफ बांदा जिला पिछले एक दशक से सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है, वहीं, इसी जिले के अतर्रा स्थित जैविक ग्राम में पिछले आठ साल से रोहित विषम हालात में उम्मीदों खेती कर रहे हैं. खेती में उनकी इंजीनियरिंग के कमाल से इलाके के दूसरे किसान प्रभावित हुुए हैं. रोहित ने अब किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया है. जैविक ग्राम में ट्रेनिंग के लिए बुंदेलखंड के ही नहीं बल्कि दूरदराज के इलाकों से भी किसान, खेती को मुनाफे का सौदा बनाने के गुर सीखने आते हैं.
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