उड़द और मूंग की खेती किसानों के लिए काफी फायेदमंद होती है. इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. अगर सही तरीके से खेत का प्रबंधन किया जाए और फसल का ध्यान दिया जाए तो किसान अच्छी पैादावार हासिल कर सकते हैं. उड़द और मूंग की खेती में सबसे अधिक खतरा कीट और रोग का होता है. क्योंकि खासकर मूंग में कीट और का प्रकोप होने की संभावना अधिक बनी रहती है. इसलिए इसकी खेतों में उचित निगरानी करनी होती है ताकि शुरुआत से ही रोग और कीट के लक्षण आने पर बचाव की प्रक्रिया अपनाई जा सके.
बिहार राज्य कृषि विभाग की तरफ से भी सोशल मीडिया हैंडल ऐक्स पर पोस्ट करके किसानों को मूंग और उड़द की खेती को लेकर सलाह जारी किया गया है. इसमें बताया गया है कि सितंबर महीने में किसानों को कौन-कौन से कृषि कार्य करने चाहिए. इसके साथ ही पीला मौजेक रोग से फसलों को बचाने का तरीका बताया गया है.
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उड़द और मूंग की खेती में अन्य कीट भी हैं जो फसलों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं. कृषि वैत्रानिकों के अनुसार उड़द और मूंग की फसल को माहू कीट के शिशु और प्रौढ़ पत्तियों और फूलों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और फूल झड़ जाते हैं. इससे फलियों की संख्या में कमी आ जाती है. नीम आधारित 3-4 मिली दवा को प्रति लीटर पानी या नीम बीज सत से बनी 5 मिली दवा को प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें माहू की गंभीर प्रकोप की स्थिति में रासायनिक दवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8% एस.एल. का 3 मिली दवा को 10 लीटर पानी की दर से मिलकार छिड़काव करें.
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पीला मोजैक रोग के प्रभाव से फसलों का रंग पीना पड़ने लगता है. मूंग, उड़द के अलावा यह सोयाबीन में भी होता है. रोग के प्रकोप के कारण पोधों के पत्तियों में छेद हो जाते हैं. इस रोग का प्रकोप सितंबर अक्तूबर में खेतों में दिखाई देता है. जब बारिश का मौसम खत्म होने लगता है और खेतों में नमी की मात्रा संतुलित होने लगती है. इसी समय पौधों में इस रोग का प्रकोप शुरू होता है. इससे फसल नष्ट हो जाती है और उत्पादन पर इसका असर पड़ता है.
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