पपीते के लिए घातक हैं ये कीट और रोग, आज ही करें बचाव वर्ना झेलना होगा भारी नुकसान

पपीते के लिए घातक हैं ये कीट और रोग, आज ही करें बचाव वर्ना झेलना होगा भारी नुकसान

इस समय पपीते पर कई रोग और कीटों का खतरा मंडरा रहा है. इस वजह से किसानों को काफी परेशानी हो रही है. दरअसल, पपीते के पौधे में लाल मकड़ी, तना गलन, डंपिंग ऑफ और लीफकर्ल जैसी बीमारियां फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर रही हैं.

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पपीते के लिए घातक हैं ये कीट और रोग, आज ही करें बचाव वर्ना झेलना होगा भारी नुकसानपपीते में लगने वाले कीट और रोग

आमतौर पर पपीते की खेती करना आसान काम लगता है क्योंकि पपीते का पेड़ जगह नहीं घेरता और छोटी सी जगह में हो जाता है. लेकिन इसकी बागवानी करना आसान नहीं होता है. देश में पपीते की खेती बड़े स्तर पर की जाती है. वहीं, इस समय पपीते पर कई रोग और कीटों का खतरा मंडरा रहा है. इस वजह से किसानों को काफी परेशानी हो रही है. दरअसल, पपीते के पौधे में लाल मकड़ी, तना गलन, डंपिंग ऑफ और लीफकर्ल जैसी बीमारियां इसे पूरी तरह से बर्बाद कर रही हैं. ऐसे में किसानों को इस समस्या से निजात के लिए आज हम पपीते में लगने वाले रोग से बचाव के उपाय बताएंगे. इस उपाय को अपनाकर किसान पपीते की फसल को बर्बाद होने से बचा सकते हैं.

पपीते में लगने वाले कीट और रोग

लाल मकड़ी: लाल मकड़ी पपीते की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है. पौधे और फलों पर इसके प्रभाव से फल खुरदुरे और काले रंग के हो जाते हैं. वहीं पत्तियों पर आक्रमण की वजह से पीली फफूंद पड़ जाती है. ऐसे में बचाव के लिए किसान पौधे पर लाल मकड़ी का आक्रमण दिखते ही प्रभावित पत्तियों को तोड़कर दूर गड्ढे में दबा दें. वहीं, कीटनाशक को पानी में मिलाकर छिड़काव करें.

तना गलन: पपीते की फसल में तना गलन रोग के कारण पौधे के तने का ऊपरी छिलका पीला होकर गलने लगता है. फिर धीरे-धीरे यह गलन जड़ तक पहुंच जाती है. इस कारण पौधा सूख जाता है, जिससे उत्पादन में कमी आती है. इस रोग से बचाव के लिए किसानों को पपीते के पेड़ के आस पास ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए ताकि उसके आसपास पानी न जमा हो.

सिंचाई के लिए जो पानी डालें उसके निकास की अच्छी व्यवस्था हो. जिन पेड़ों में ये रोग लग गया है उन्हें खेत से निकालकर जला देना चाहिए. इसके साथ ही तने के चारों तरफ बोडो मिश्रण (6:6:50) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3 प्रतिशत), टाप्सीन-एम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव कम से कम तीन बार मई, जून और जुलाई के महीने में करना चाहिए.

डंपिंग ऑफ: यह रोग पपीते में के लिए काफी खतरनाक होता है. वहीं आर्द्र गलन रोग की वजह से पौधे जमीन की सतह के पास से गलकर मरने लगते हैं.ऐसे में पपीते की फसल को डंपिंग ऑफ यानी आर्द्र गलन रोग से बचाने के लिए बुवाई से पहले पपीते के बीजों का उपचार करें. साथ ही फसल में कीटनाशक का छिड़काव करें.

लीफ कर्ल: पपीते के पेड़ में एक और रोग देखने को मिल रहा है. वो है लीफ कर्ल रोग. ये एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खियों से फैलता है. इस रोग के कारण पत्तियां सिकुड़ कर मुड़ जाती हैं और फल सूखने लगते हैं. इस रोग से 70-80 प्रतिशत तक फल का नुकसान हो जाता है. इस रोग से बचने के लिए  रोगी पौधों को उखाड़कर खेत से दूर गड्ढे में दबाकर नष्ट कर दें. इसके अलावा, सफेद मक्खियों के नियंत्रण के लिए डाइमिथोएट 1 मि.ली. का प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.

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