बात चाहे पोषक तत्वों की हो या उसकी उपयोगिता की. बेहतर उपज की बात करें या सहफसली खेती की, तो इसमें मक्के का कोई जवाब नहीं है. हर मौसम (रबी, खरीफ और जायद), साथ ही हर तरह की भूमि में मक्के की खेती की जा सकती है. वहीं यह अनाज वाली फसलों में सबसे बड़े दानों की फसल है. इसके दानों का इस्तेमाल कई तरह से किया जाता है. इसकी खेती ज्यादातर उत्तर भारत में की जाती है. अनाज के रूप में यह काफी लाभकारी फसल है. लाभकारी होने के बावजूद इसमें कई प्रकार के रोग पाए जाते हैं. ये रोग मक्के में मैग्नीशियम-फॉस्फोरस की कमी के कारण हो सकते हैं. इन रोगों के लक्षण फसलों पर पहले से ही देखने को मिलने लगते हैं. ऐसे में आप इन खादों का इस्तेमाल करके इन रोगों की रोकथाम कर सकते हैं.
मक्के की फसल में मैग्नीशियम की कमी से पौधों की नीचे वाली पत्तियों में सफेद या पीली धारियां बन जाती हैं. ये धारियां धीरे-धीरे शिराओं के बीच में फैल जाती हैं. इसके फैलने के बाद पुरानी पत्तियां लाल हो जाती हैं. वहीं छोटे पौधों में ऊपर की सभी पत्तियां पीली पड़ जाती हैं, जिससे फसलों की क्वालिटी और उत्पादन पर असर पड़ता है.
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अगर मक्के की फसल में मैग्नीशियम की कमी से पौधों की पत्तियों में धारियां बनने लगें, तो 10 किलो मैग्नीशियम सल्फेट को 100 लीटर पानी में मिलाकर पत्तियों पर छिड़काव करने से पौधों को पर्याप्त मात्रा में मैग्नीशियम मिल जाता है. इससे उत्पादन पर होने वाले असर से बचा जा सकता है.
फॉस्फोरस की कमी से पौधों की पत्तियां गहरे हरे रंग की हो जाती हैं. वहीं पत्तियों के सिरे और किनारे लाल और गुलाबी रंग के हो जाते हैं. इससे पौधों में ग्रोथ धीमी पड़ जाती है, जिससे पौधों में फलों की कमी हो जाती है. मक्के की फसलों में फॉस्फोरस की कमी के कारण किसानों को नुकसान का सामना करना पड़ता है.
अगर आपको मक्के की फसल में रोग के लक्षण दिखे तो फसलों पर 60 किलो फॉस्फोरस का छिड़काव प्रति हेक्टेयर की दर से करें. वहीं किसान फसलों में फॉस्फोरस की कमी को खत्म इसके लिए खाद के रूप में इसे बुवाई के समय भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके लिए किसानों को मक्का बोते समय पंक्तियों में सीड ड्रिल या देसी हल की मदद से 6 से 8 सें.मी की गहराई में फॉस्फोरस डालना चाहिए.
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