अरहर के क्षेत्रफल और उत्पादन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है. विश्व के कुल क्षेत्रफल में भारत की हिस्सेदारी 79.65 प्रतिशत और उत्पादन में 67.28 प्रतिशत है. अरहर का सामान्य क्षेत्रफल 44.29 लाख हेक्टेयर है और उत्पादन 35.69 लाख टन और उत्पादकता 80.6 किलोग्राम/हेक्टेयर है. कुल खरीफ दलहन क्षेत्र में अकेले अरहर का योगदान लगभग 34 प्रतिशत और उत्पादन में 47 प्रतिशत है.
अरहर की खेती के लिए खेतों को सही तरीके से तैयार करना बहुत जरूरी होता है. ऐसे में बुवाई से पहले मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करने के बाद 2-3 जुताई हल या हैरो से करने की सलाह दी जाती है. प्रत्येक जुताई के बाद सिंचाई और जल निकास की पर्याप्त व्यवस्था करने के लिए मेड़ लगाना जरूरी होता है. क्योंकि अरहर की फसल के लिए खड़ा पानी बेहद नुकसानदायक हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि खेतों में जल निकासी कि सही व्यवस्था हो.
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चूँकि फसल असिंचित अवस्था में बोई जाती है इसलिए अगर लम्बे समय तक वर्षा न हो तो फसल में तीन सिंचाई करने कि जरूरत होती है. पहला फसल में शाखा लगने की अवस्था (बुवाई के 30 दिन बाद),दूसरा, फूल आने की अवस्था (बुवाई के 70 दिन बाद) और तीसरा कलियां बनने के समय (बुवाई के 110 दिन बाद) सिंचाई कि जरूरत होती है. अरहर के अधिक उत्पादन के लिए खेत में उचित जल निकासी सबसे पहली शर्त है. नहीं तो खेतों में अधिक पानी लगने कि वजह से फसलों को बड़ा नुकसान हो सकता है. इसलिए अरहर कि खेती कम जल निकासी की समस्या वाले क्षेत्रों में मेड़ों पर बुआई करना सही रहता है. मेड़ों पर बुआई करने से अरहर की जड़ों को अत्यधिक जलभराव की स्थिति में भी पर्याप्त हवा का संचार मिलता रहता है.
अरहर कि जल्दी पकने वाली किस्मों की बुआई जून के पहले पखवाड़े में और मध्यम और देर से पकने वाली किस्मों की बुआई जून से जुलाई के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए.
मिट्टी परीक्षण के आधार पर अंतिम जुताई के समय सभी उर्वरकों को हल के पीछे नाली में बीज की सतह से 5 सेमी. गहराई और 5 सेमी. इसे किनारे पर बोना सबसे अच्छा है. बुआई के समय 20-25 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 40-50 किग्रा. फास्फोरस, 20-25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर हर किनारे में बीज के नीचे अच्छे से डाल दें.
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