ICAR-सेंट्रल इंस्टिट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च (CICR) ने पंजाब में कपास की फसल के लिए एआई आधारित एक फेरोमोन ट्रैप बनाया है जो गुलाबी सुंडी के प्रकोप से फसल को बचाने में मदद करेगा. पंजाब में कपास की फसल के लिए गुलाबी सुंडी सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है क्योंकि बीटी कपास पर इसकी दवा का कोई असर नहीं होता. पंजाब ही नहीं बल्कि देश के सभी प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में गुलाबी सुंडी ने आतंक मचा रखा है. सीआईसीआर का एआई पर चलने वाला फेरोमोन ट्रैप रियलटाइम में किसानों को गुलाबी सुंडी के अटैक के बारे में जानकारी देगी जिससे फसल बचाव में मदद मिलेगी.
गुलाबी सुंडी गुजरात में 2015 में और महाराष्ट्र में 2017 में पहली बार रिपोर्ट की गई. इसकी बड़ी तादाद 2018-19 तक पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में फैल गई. जलावन के लिए कपास के डंठलों को जुटाकर ऱकने से इस कीट का संक्रमण और बढ़ गया, जिससे पंजाब (2022) और राजस्थान (2023) में प्रकोप हुआ. सुंडी ने कपास की पैदावार को कम कर दिया और फाइबर की क्वालिटी को प्रभावित किया. इससे किसानों को धान, तिलहन और दालों जैसी अधिक लाभ देने वाली फसलों की ओर रुख करना पड़ा. नतीजतन, पंजाब में कपास का रकबा 2018 में 2.68 लाख हेक्टेयर से घटकर 2024 में 0.97 लाख हेक्टेयर रह गया, जबकि उत्पादन 2018 में 12.2 लाख गांठ से घटकर 2023 में 4.73 लाख गांठ रह गया.
गुलाबी सुंडी के साथ कई ऐसी बातें हैं जिससे उसे कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है. एक तो फसलों पर इसका बर्ताव बहुत रहस्यमय होता है. यह सुंडी कब दिखेगी, कब नहीं इसे लेकर किसान अक्सर अचंभे में रहते हैं. दूसरी बात ये कि इसका जीवन चक्र बहुत छिपा रहता है. कब किस स्टेज में पहुंच जाए उसकी जानकारी जल्दी नहीं मिल पाती. यही वजह है कि इसकी मॉनिटरिंग और इसका नियंत्रण करना बहुत मुश्किल होता है. हालांकि इसके लिए फेरोमोन ट्रैप पहले भी बनाए गए हैं, लेकिन उतने कारगर नहीं हैं. जैसे सेक्स फेरोमोन ट्रैप केवल वयस्क कीटों को ही पकड़ पाता है और इसी आधार पर कीटनाशक छिड़काव का फैसला लिया जाता है. इसी आधार पर कीटनाशकों को बनाया भी जाता है. लेकिन यह काम मुश्किल होता है.
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सेक्स फेरोमोन ट्रैप में पकड़े गए कीटों का डेटा जुटाने, उस पर रिसर्च करने और फिर दवा बनाने का काम बहुत समय लेने वाला और महंगा होता है. यह काम मैनुअली होता है, इसलिए गलती की भी आशंका बनी रहती है. मैनुअल डेटा से मिली जानकारी से यह ठीक-ठीक पता नहीं चल पाता कि कीटनाशकों का छिड़काव कितने दिनों पर करना है. साथ ही मैनुअल जुटाए गए डेटा से यह पता लगाना भी मुश्किल होता है कि किसी विशेष क्षेत्र में कितनी सुंडियों ने प्रकोप किया है. इन सभी मुश्किलों को देखते हुए सीआईसीआर ने एआई आधारित फेरोमोन ट्रैप बनाया है जिससे रियलटाइम में कीटों की जानकारी मिलेगी. इससे उन्हें नियंत्रित करना आसान होगा.
पारंपरिक फेरोमोन ट्रैप की सीमाओं को दूर करने के लिए, डॉ. वाई.जी. प्रसाद और डॉ. के. रामेश के नेतृत्व में आईसीएआर-सीआईसीआर ने पिंक बॉलवर्म (गुलाबी सुंडी) की रियलटाइम में निगरानी के लिए एआई-आधारित स्मार्ट फेरोमोन ट्रैप बनाया. यह स्मार्ट ट्रैप हर घंटे लाइव डेटा भेजता है - जिसमें तस्वीरों, कीटों की संख्या और मौसम की जानकारी शामिल है. इसका डेटा सीधे क्लाउड और रजिस्टर्ड यूजर्स जैसे किसान और इससे जुड़े अधिकारियों को मिलता है. एआई आधारित यह फेरोमोन ट्रैप गुलाबी सुंडी का पता लगाने और उनकी गिनती करने में 96.2 परसेंट तक सटीक है. इसका डेटा पाने के लिए एक एंड्रॉइड और डेस्कटॉप ऐप बनाया गया है जिससे किसानों को गुलाबी सुंडी के बारे में जानकारी मिलती है और उसी आधार पर एक्शन लिया जाता है.
पंजाब के तीन प्रमुख कपास उत्पादक जिलों (मानसा, बठिंडा और श्री मुक्तसर साहिब) के 18 गांवों में स्मार्ट ट्रैप लगाए गए, जिनमें प्रत्येक जिले में छह यूनिट लगाई गई. इन AI स्मार्ट ट्रैप से ऑटोमेटिक डेटा का उपयोग करके कपास किसानों को गुलाबी सुंडी से होने वाले नुकसान इसे नियंत्रित करने के लिए रोज अलर्ट भेजे गए और बचाव के लिए सलाह दी गई. ICAR-CICR ने राज्य भर के 28,190 कपास किसानों को GSM नेटवर्क के माध्यम से 30 सेकंड के वॉयस मैसेज भेजे. किसान समूह के अलावा व्यक्तिगत किसानों को भी अलर्ट जारी किए गए. इसके अलावा, सोशल मीडिया, व्यक्तिगत फोन कॉल, बल्क मैसेज और गांव के गुरुद्वारा साहिबों में घोषणाओं का उपयोग कीट अलर्ट और नियंत्रण उपायों को बताने के लिए किया गया.
पंजाब में कपास के किसानों को एआई ट्रैप प्रोजेक्ट से बहुत लाभ हुआ है, उन्हें समय पर कीट अलर्ट और कीट प्रबंधन सलाह उनके मोबाइल फोन पर मिल रही है. मानसा जिले के खियाली चाहियांवाली गांव के जगदेव सिंह ने कीट निगरानी और ईटीएल-आधारित कीटनाशक के इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए इस प्रोजेक्ट की तारीफ की. साप्ताहिक अलर्ट और फील्ड विजिट ने उन्हें सही समय पर कीटनाशकों का इस्तेमाल करने में मदद की, जिससे उनकी फसल सुरक्षित रही. इसी तरह, श्री मुक्तसर साहिब के रामगढ़ चुंगा गांव के श्री जगसीर सिंह ने इस पहल के लिए कृषि मंत्रालय के प्रति आभार जताया, जिसने न केवल कीट मुक्त कपास की उपज सुनिश्चित की बल्कि उनकी आय में भी वृद्धि की. उनका मानना है कि ऐसी तकनीकें आने वाली पीढ़ियों को खेती अपनाने के लिए प्रेरित करेंगी.
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कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 2025-26 फसल मौसम के लिए पंजाब से अन्य कपास उत्पादक राज्यों में एआई-आधारित फेरोमोन तकनीक को बढ़ाने का निर्णय लिया है. यह पायलट प्रोजेक्ट उन्नत एआई तकनीक की पहली सफल फील्ड तैनाती को बताता है, जो किसानों के मोबाइल पर सीधे रियलटाइम की कीट निगरानी डेटा पहुंचाती है ताकि स्प्रे करने में सहायता मिल सके.
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