वर्तमान समय के शहरी जीवन में बागवानी या किचन गार्डनिंग एक पैशन बनते जा रहा है. किचन गार्डन के लिए बड़ा स्पेस होना जरूरी नहीं है. इसे आप अपने आंगन, टैरेस पर या फिर अपनी बालकनी में आसानी से शुरू कर सकते हैं. इससे न सिर्फ बागवानी करने का शौक पूरा होता है बल्कि घर पर ही अपने हाथों से उगाई हुई पौष्टिक सब्जी भी मिलती है. इसके अलावा भारतीय किचन में मसालों का अहम स्थान है. इसके बगैर हम किसी भी तरह के स्वादिष्ट व्यंजन नहीं बना सकते हैं. उसमें एक है काली मिर्च, जो हर घर में इस्तेमाल की जाती है.
काली मिर्च भोजन को टेस्टी और स्पाइसी बनाने के साथ-साथ आयुर्वेदिक दवा के रूप में भी काम करती है. अगर आप चाहें तो काली मिर्च को घर के अंदर गमले में उगा सकते हैं. इसी के साथ आप घर में काली मिर्च लगाकर पैसा भी बचा सकते हैं. तो आइए बताते हैं कि गमले में आसानी से कौन से काली मिर्च कैसे उगा सकते हैं.
काली मिर्च का वैज्ञानिक नाम पाइपर नाइग्रम है और इसे पेपरकॉर्न भी कहा जाता है. काली मिर्च का उपयोग खाने में मसाले के तौर पर किया जाता है, इसलिए लोग इस पौधे को घर पर लगाना पसंद करते हैं. काली मिर्च (ब्लैक पेपर) का पौधा बेल के रूप में उगने वाला बहुवार्षिक पौधा है, जो कई वर्षों तक जीवित रहता है.
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आप इसे घर पर पॉट या गमले में आसानी से उगा सकते हैं. दरअसल गर्म जलवायु में इस पौधे को किसी भी समय उगाया जा सकता है. वहीं यदि आप ठंडी जलवायु वाले क्षेत्र में रहते हैं, तो इस पौधे को घर के अंदर गमले या पॉट में लगा सकते हैं. काली मिर्च के पौधे को बीज से उगाने के लिए बसंत यानी जनवरी से मार्च का महीना सबसे अच्छा होता है.
1. सबसे पहले अच्छी क्वालिटी वाली किस्म के ब्लैक पेपर सीड्स खरीदें.
2. फिर उन बीजों को जर्मिनेट करने के लिए सीडलिंग ट्रे या छोटे साइज के पॉट में जैविक खाद मिलाकर मिक्स कर दें.
3. अब सीडलिंग ट्रे की प्रत्येक 1 से 2 के बीजों को गमले में लगभग ½ इंच गहराई में लगाएं.
4. बीज लगाने के बाद वाटर कैन की मदद से उसमें पानी डालें और गमले को धूप वाले स्थान पर रखें.
5. काली मिर्च के बीजों को अच्छी तरह से जर्मिनेट होने के लिए 24 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है, इस तापमान पर काली मिर्च के बीज 30–40 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं.
6. जब मिर्च के पौधे की लंबाई 4-6 इंच हो जाए, तब आप इन पौधों को लगा सकते हैं. वहीं पौधा लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे की जड़ों को किसी भी प्रकार का नुकसान न पहुंचे.
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