सरसों की खेती के लिए जरूरी सलाहराजस्थान के कृषि विभाग ने सरसों की फसल को कीट और रोगों से बचाने के लिए नई एडवाइजरी जारी की है. विभाग ने बताया कि सरसों में बीपा (मोयला), एफिड्स, सुंडी, तना गलन (सफेद सड़न) और झुलसा जैसी बीमारियाँ फसल को 30–35 प्रतिशत तक नुकसान पहुंचा सकती हैं.
सलाह में कहा गया है कि किसान फसल की नियमित निगरानी करें और शुरुआती लक्षण दिखते ही कीटनाशक या फफूंदनाशी का छिड़काव करें. आइए कुछ खतरनाक रोग और कीटों के बारे में और रोकथाम जान लेते हैं.
चेंपा एक रस चूसने वाला कीट है. यह प्रायः हरे रंग का छोटा और मुलायम कीट होता है जो फसल में फूलों के गुच्छों, कच्ची फलियों और पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पाया जाता है. देरी से की गई बुवाई वाले खेतों में चेंपा कीट का प्रकोप अधिक होता है.
रोकथाम
चेंपा का प्रकोप होते ही एक सप्ताह के अंदर पौधे की मुख्य शाखा की 10 सेंटीमीटर की लंबाई में चेंपा कीट की संख्या 20-25 दिखाई देने पर मैलाथियॉन 5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर भुरकाव करें या मैलाथियोंन 50 ई.सी. सवा लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. 875 मिलीलीटर दवा प्रति हेक्टेयर 400-500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
जैविक नियत्रण के लिए एजेडिरेक्टीन या नीम तेल आधारित कीटनाशी 500 मिलीलीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
पेंटेड बग कीट का प्रकोप सरसों फसल के अंकुरण के तुरंत बाद होता है. फसल की 7-10 दिन छोटी अवस्था में यह कीट पत्तियों का रस चूसकर फसल को पूरी तरह नष्ट कर देता है. पेंटेड बग के शिशु और प्रौढ़ दोनों पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते हैं जिससे पौधे कमजोर और पीले पड़कर सूख जाते हैं.
रोकथाम
सरसों फसल में प्रारंभिक अवस्था पर यदि पेंटेड बग कीट का प्रकोप होता है तो डाईमिथोएट 30 ई.सी, 1 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें.
सरसों फसल के अंकुरण के 25-30 दिन में ये कीट अधिक नुकसान पहुंचाता है. आरा मक्खी का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही शेष रह जाता है.
रोकथाम
इनकी रोकथाम के लिए बुवाई के सातवें दिन मैलाथियान 5 प्रतिशत या कार्बोरिल 5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम में भुरकाव करें. आवश्यकतानुसार 15 दिन बाद फिर दोहराएं.
इस रोग के कारण 35 प्रतिशत तक उपज में हानि होती है यह रोग तराई और पानी भराव वाले स्थानों में अधिक होता है. इस रोग के कारण तने के चारों ओर कवक जाल बन जाता है. पौधे मुरझाकर सूखने लगते हैं. पौधों की वृद्धि रुक जाती है. ग्रसित तने की सतह पर भूरी सफेद या काली गोल आकृति पाई जाती है.
रोकथाम
इसके नियंत्रण के लिए बुवाई के 50 दिन बाद कार्बेन्डाजिम 0.1 प्रतिशत (1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें. जरूरत पड़ने पर 20 दिन बाद फिर से छिड़काव दोहराएं.
रोग का प्रकोप पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है. पत्तियों पर छोटे, हल्के काले, गोल धब्बे बनते हैं. धब्बों में गोल छल्ले साफ नजर आते हैं.
पत्तियों के नीचे के स्तर पर सफेद रंग के गोल फफोले दिखाई देते हैं. बाद में सरसों के फूल और फलियां अधिक वृद्धि का शिकार हो जाती हैं और फूल और पत्तियों की विकृत वृद्धि दिखाई देती है.
पत्तियों की निचली सतह पर बैंगनी भूरे रंग के धब्बे बनते हैं जो बाद में बड़े हो जाते हैं. यही से रोग जनक की बैगनी रंग की वृद्धि रुई के समान दिखाई देती है. रोग की तीव्र अवस्था में फूल कलियां नष्ट हो जाती हैं और पुष्पांगों में अतिवृद्धि या छितरापन आ जाता है.
रोकथाम
सरसों की फसल में झुलसा, तुलासिता और सफेद रोली रोग के लक्षण दिखाई देते ही कॉपर ऑक्सीक्लोराईड 50 डब्ल्यू.पी. या मैन्कोजेब 75 प्रतिशत डब्ल्यू, पी. का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें. जरूरत अनुसार यह छिड़काव 20 दिन के अंतराल पर दोहराएं. सफेद रोली के नियंत्रण के लिए तीसरा छिड़काव कैराथेन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से करना उपयुक्त और लाभदायक है.
यह एडवाइजरी “कृषि विभाग, राजस्थान की ओर से जारी की गई है और इसकी विस्तृत जानकारी jankalyan.rajasthan.gov.in पर उपलब्ध है.
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