भारत हर साल लगभग 5.50 करोड़ टन आलू का उत्पादन करता है और वैश्विक आलू उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. देश में उपभोक्ताओं और उद्योगों को पूरे साल आलू की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए, फसल की खुदाई से पहले और खुदाई की प्रक्रिया को सही तरीके से संपन्न करना जरूरी है, जिससे आलू को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सके. एक अनुमान के अनुसार, भारत में खुदाई के बाद 15-20 फीसदी तक आलू खराब हो जाता है. इसलिए, फसल प्रबंधन जितना अहम है, उतना ही जरूरी खुदाई के बाद प्रबंधन भी है.
आलू की खुदाई और भंडारण में थोड़ी सी सावधानी बरतकर किसान भारी नुकसान से बच सकते हैं. इससे आलू की क्वालिटी बनी रहती है और किसानों को बेहतर दाम मिलते हैं.
आलू अनुसंधान केंद्र, रीजनल सेंटर मेरठ के प्रमुख डॉ. राजेश कुमार सिंह के अनुसार, उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में उगाए जाने वाले आलू की विशेष देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि कटाई के बाद यहां अधिक गर्मी पड़ती है और फिर मॉनसूनी बारिश होती है. उन्होंने बताया कि आलू के बेहतर भंडारण के लिए इसकी खुदाई सही समय पर और उचित तरीके से की जानी चाहिए.
आलू की खुदाई से 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए, जिससे कंदों का छिलका सख्त हो जाए और खुदाई के दौरान छिलका न टूटे. इससे भंडारण की क्वालिटी भी बेहतर बनी रहती है. जब आलू के पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगें, तो खुदाई से 10 दिन पहले तनों और पत्तियों को काट देना चाहिए, ताकि कंदों का छिलका और अधिक मजबूत हो सके. आलू की खुदाई मैन्युअल या यांत्रिक उपकरणों की मदद से की जाती है, और इस दौरान कंदों को कटने या खरोंच से बचाने का विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि कटे-फटे कंद भंडारण के दौरान जल्दी सड़ने लगते हैं. किसानों को 90 दिन वाली फसल की खुदाई 15 मार्च तक पूरी करने की कोशिश करनी चाहिए.
आलू की खुदाई मैन्युअल रूप से या पोटैटो डिगर मशीन की मदद से की जाती है. इस कृषि यंत्र के उपयोग से आलू में चिपकी मिट्टी को आसानी से हटाया जा सकता है. पोटैटो डिगर मशीन की मदद से खुदाई तेज और सटीक होती है, जिससे समय और लागत दोनों की बचत होती है. इस मशीन की कीमत 40,000 से 1.5 लाख रुपये तक होती है, जो कंपनी और तकनीक पर निर्भर करती है. यह मशीन ट्रैक्टर से जुड़कर काम करती है और आलू से चिपकी मिट्टी को भी आसानी से अलग कर देती है.
डॉ. सिंह ने यह भी बताया कि बदलते तापमान का आलू की पैदावार पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन अगर अधिक बारिश होती है, तो खेत में मौजूद आलू सड़ने का खतरा बढ़ सकता है. आलू की खुदाई के बाद कंदों को छाया में रखना चाहिए, ताकि वे अधिक गर्मी से बच सकें. उचित वेंटिलेशन की व्यवस्था होनी चाहिए और उन्हें प्रकाश के सीधे संपर्क से बचाना चाहिए, क्योंकि प्रकाश के संपर्क में आने से कंद हरे हो जाते हैं.
आलू के छिलके के मजबूती से बनने के बाद कंदों की छंटाई की जानी चाहिए, जिससे रोगग्रस्त, कटे या क्षतिग्रस्त आलू अलग किए जा सकें. आमतौर पर, यह प्रक्रिया यांत्रिक उपकरणों की मदद से की जाती है, जिससे खरोंच और कटाव को न्यूनतम किया जा सके. भंडारण के लिए आलू का परिवहन सुबह जल्दी या देर शाम किया जाना चाहिए, ताकि कंदों का तापमान नियंत्रित रहे और अधिक गर्मी के प्रभाव से बचा जा सके. आलू को धूप और बारिश से बचाने के लिए अच्छी तरह ढककर रखना जरूरी है.
भारत में अधिकांश आलू कोल्ड स्टोरेज में संग्रहित किए जाते हैं, जहां उन्हें बीज, खाने (टेबल आलू), और प्रोसेसिंग उद्देश्यों के लिए रखा जाता है. आमतौर पर, 40-50 किलोग्राम क्षमता वाले गनी या सिंथेटिक बैग में इन्हें संग्रहित किया जाता है, जिससे खुदाई उपरांत नुकसान कम किया जा सके. कोल्ड स्टोरेज में कम तापमान बनाए रखने से रोगाणुओं और कीटों की वृद्धि को रोका जाता है और श्वसन और वाष्पोत्सर्जन से होने वाले नुकसान को कम किया जाता है.
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