पहले `गेहूं के मामा` को करें खत्म, फिर करें कटाई, कई समस्याएं तुरंत हो जाएंगी छूमंतर!

पहले `गेहूं के मामा` को करें खत्म, फिर करें कटाई, कई समस्याएं तुरंत हो जाएंगी छूमंतर!

गेहूं की कटाई से पहले खेत में कुछ जरूरी काम करना होता है जिससे फसल के उत्पादन और गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद मिलती है. कटाई से पहले खेत में रोगिंग प्रक्रिया करते हैं तो फसल अधिक बेहतर होगी और उपज में वृद्धि होगी.उच्च गुणवत्ता वाला बीज उत्पादन किया जा सकता है.

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पहले `गेहूं के मामा` को करें खत्म, फिर करें कटाई, कई समस्याएं तुरंत हो जाएंगी छूमंतर! गेहूं की कटाई से पहले कुछ जरूरी काम जरूर करें

अब कुछ ही समय में किसानों की गेहूं की फसल कटाई के लिए तैयार हो जाएगी. हर किसान को उम्मीद होती है कि इस फसल से अच्छी उपज मिलेगी और उनकी आमदनी बेहतर होगी. लेकिन अगर किसान गेहूं कटने से पहले एक जरूरी काम कर लें, तो अगली साल गेहूं फसल में कई बड़ी परेशानी से  मुक्त हो सकते हैं. गेहूं की कटाई से पहले खेत में रोगिंग यानी फसल से अवांछित पौधों को हटाने का काम करना बेहद जरूरी है. इसमें खरपतवार, दूसरी फसल के अवांछित पौधे, रोगग्रस्त पौधे या किसी अन्य किस्म के पौधों को खेत से निकालकर नष्ट किया जाता है. यह विधि खेत में खरपतवार और बीमारियों के फैलाव को रोकने, फसल की गुणवत्ता बनाए रखने और उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी होती है.

इस काम की अनदेखी से बढ़ेगी परेशानी 

गेहूं की फसल का एक बड़ा दुश्मन है "गेहूं का मामा" जिसे गुल्ली डंडा या गेहुंसा भी कहा जाता है. यह एक प्रकार का खरपतवार है जो फसल के साथ खाद, पानी और पोषक तत्वों की प्रतिस्पर्धा करता है, जिससे गेहूं कमजोर हो जाता है और उत्पादन कम हो जाता है. अगर इसे समय पर नहीं हटाया गया, तो इसके बीज पककर खेत में गिर जाते हैं और अगली फसल में फिर से उग आते हैं, जिससे हर साल यह समस्या बढ़ती जाती है. इसी कंडुआ रोग से प्रभावित पौधे को पहचान कर निकाल देना चाहिए. नहीं तो रोगी पौधे के रोगजनक खेतों में गिर जाते हैं और अगली फसल में फिर गेहूं की फसल पर अटैक करते हैं और पौधों को रोगग्रस्त कर देते हैं. अगर बीज के लिए इस उपज का इस्तेमाल करेंगे तो अगली फसल में कंडुवा रोग से फसल प्रभावित होगी.

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दुश्मन पौधों की पहचान कैसे करें? 

गेहूं का मामा यानी गेहुंसा फसल की बढ़वार की अवस्था में सामान्य गेहूं के पौधों जैसा दिखता है जिसे पहचान करना कठिन हो सकता है. लेकिन जब इस खरपतवार में फूल बनने लगते हैं, तो इसे आसानी से पहचाना जा सकता है. इसी तरह इस दौरान जो कंडुआ रोग से बालियां संक्रमित हो जाती हैं, उसके पौधे गेहूं के स्वस्थ पौधों की तुलना में लगभग एक सप्ताह पहले ही पकने लगते हैं. इस तरह दोनों पौधों को पहचान कर निकाल सकते हैं जिससे फसल की गुणवत्ता खराब ना हो. 

झंझट से मुक्ति का तरीका 

जब गेहूं का मामा फूल की अवस्था में आ जाए, तो इसे सावधानीपूर्वक उखाड़कर पॉलिथीन बैग में डालें और बाद में जला दें, ताकि इसका फैलाव न हो. कंडुआ रोग से ग्रसित पौधों को भी इसी तरह उखाड़कर नष्ट करें, ताकि उनके बीजों में मिलावट न हो और रोगजनक कवक खेत में न फैलें. अगर खेत से इन खरपतवार और रोगी पौधों को समय पर हटा दिया जाए, तो अगले साल ये खरपतवार और रोग खेतों में ज्यादा फैल नहीं पाएंगे. खरपतवार नाशकों और रोग के लिए दवाओं की जरूरत नहीं पड़ेगी और बीज की गुणवत्ता भी बनी रहेगी. 

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फसल में रोगिंग के फायदे अनेक 

गेहूं की कटाई से पहले रोगिंग करना एक जरूरी प्रक्रिया है, जिससे किसान अगली फसल को स्वस्थ और अधिक उपज देने वाली बना सकते हैं. यह एक आसान लेकिन प्रभावी तरीका है, जिससे न केवल उत्पादन बढ़ता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है क्योकि खेत में खरपतवार और रोगों का फैलाव रोका जा सकता है. अगली फसल में खरपतवार और बीमारियों की समस्या कम होगी. निराई-गुड़ाई और खरपतवार नाशकों पर खर्च कम होगा. गेहूं की फसल अधिक स्वस्थ होगी और उपज में वृद्धि होगी. उच्च गुणवत्ता वाला बीज उत्पादन किया जा सकता है.

 

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