भारत में खेती मौसम के अनुकूल ही की जाती है. अगर मौसम ने साथ दिया तो किसानों फायदे में रहते हैं. अगर साथ नहीं दिया तो किसान भारी घाटे में चले जाते हैं. ऐसे में इस बार के बदलते मौसम का अनुमान लगाते हुए बक्सर कृषि बिज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने किसानों को फायदे बताए हैं. इसमें बताया गया है कि हमेशा बदलते मौसम से घाटा ही नहीं होता बल्कि कुछ फायदा भी होता है. बस किसानों को उस परिस्थिति का लाभ उठाना होता है. परिस्थिति को जानकर उस हिसाब से खेती और उसके उपाय करने होते हैं. बक्सर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक कहते हैं कि मौसम इस बार इसी प्रकार चलता राह तो किसानों को फायदा होने वाला है.
बक्सर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक मान्धाता सिंह बताते हैं कि सब्जियों के लिए यह मौसम बेहद उपयुक्त है. चूंकि हल्की बारिश के कारण मिट्टी ढीली हो चुकी है और उसमें नमी बरकरार है. ऐसे में सब्जियों की खेती और धान की खेती की तैयारी के लिए यह मौसम फायदा देने वाला है.
दूसरी ओर, कृषि विज्ञान केंद्र के मिट्टी विशेषज्ञ देवकरण कहते हैं कि इस मौसम में मिट्टी में पैदा हुए कीट-पतंग मर जाएंगे जिससे फसलों का फायदा होगा. वे किसानों को सलाह देते हैं कि जितनी ज्यादा हो सके मिट्टी की जुताई कर इसे ढीली करने का प्रयास करना चाहिए. इससे आने वाले दिनों में पड़ने वाली गर्मी से मिट्टी के कीट मार जाएंगे. वहीं किसानों की मानें तो ये मौसम उनकी खेती के लिए अनुकूल है लेकिन बारिश के साथ ओलावृष्टि हो गई तो फिर सब्जियों के लिए आफत साबित होने वाली है.
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कृषि वैज्ञानिक मान्धाता सिंह कहते हैं कि बेमौसम बारिश में अधिक पानी गिर जाए तो अगली फसल के लिए दिक्कत हो जाएगी. अभी धान का सीजन है, लेकिन बारिश अधिक होगी तो अगले गेहूं की बुआई पर असर पड़ेगा. मान्धाता सिंह कहते हैं कि मौसम में बदलाव से फायदे कम और नुकसान अधिक होते हैं. जलवायु परिवर्तन से पिछले दो साल से गेहूं की पैदावार प्रभावित हो रही है. जलवायु परिवर्तन से मौसमी बदलाव देखा जा रहा है जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव है.
मान्धाता सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन किसानों के लिए अनुकूल नहीं है, लेकिन किसानों को मौसम के अनुकूल बनना होगा. किसानों को देखना होगा कि बिगड़े हालात में भी कौन सी फसल अच्छी उपज देगी, उसी फसल की खेती करनी चाहिए. जैसे सब्जी की खेती हो या मक्के की खेती, इसमें फायदा मिल सकता है. कृषि वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर सूखे की स्थिति बनती दिख रही है तो किसानों को धान की वैसी किस्म रोपनी चाहिए जो कम पानी में भी उपज दे सके. अगर बाढ़ के इलाके हैं तो वैसी किस्म रोपनी चाहिए जो अधिक पानी को भी बर्दाश्त कर सके. साथ ही फसल में पोटाश आदि का छिड़काव करना चाहिए ताकि अधिक बारिश की हालत में फसल गिरे नहीं.
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बक्सर कृषि विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ देवकरण कहते हैं कि अभी हल्की बारिश हुई है जिससे मिट्टी में थोड़ी नमी बरकरार है. अगर किसान गरमा फसल लगाने के लिए जुताई करें तो फायदा होगा. इससे मिट्टी में पैदा होने वाले कीड़े, उनके अंडे और लार्वा आदि नष्ट हो जाएंगे जो बाद में फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं. अभी खेत की जुताई करने से मिट्टी में हवा आती है और सूर्य की रोशनी भी अंदर तक जाती है जिससे मिट्टी की उर्वरकता बनी रहती है. देवकरण कहते हैं कि किसान अभी खेतों में हरी खाद जैसे ढैंचा, मूंग या सनई के खाद लगा दें तो धान की फसल को फायदा होगा. इससे मिट्टी उपजाऊ बनेगी जो जलवायु परिवर्तन को असर को कम कर सकती है.(पुष्पेंद्र पांडेय की रिपोर्ट)
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