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खेत में आईसीयू... मिट्टी और फसलों की लाइलाज बीमार‍ियों का होगा उपचार

खेत में आईसीयू... मिट्टी और फसलों की लाइलाज बीमार‍ियों का होगा उपचार

सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन किसान की फसलें भी हम इंसानों की ही तरह गंभीर रोगों से ग्रसित हो जाती हैं. ऐसे में फसलों की बीमारियों के उपचार के लिए अब न केवल एक क्लीनिक की सुविधा है, बल्कि इनकी लाइलाज बीमारियों के इलाज के लिए आईसीयू भी मौजूद है. 

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केंद्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय, झांसी में फसलों के लाइलाज रोगों का आईसीयू में हो रहा उपचार, फोटो: किसान तक  केंद्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय, झांसी में फसलों के लाइलाज रोगों का आईसीयू में हो रहा उपचार, फोटो: किसान तक

समय के साथ बढ़ते प्रदूषण का असर पेड़-पौधों और फसलों की सेहत पर भी पड़ रहा है. ऐसे में किसानों की फसलों को भी नई-नई बीमारियां घेरने लगी हैं. इंसानों एवं पशुओं की तरह ही वैज्ञानिक शोध के आधार पर फसलों की बीमारियों के इलाज के लिए अस्पताल काम करने लगे हैं. इसके तहत पेड़ पौधों और फसलों काे होने वाले रोगों का इलाज खेत पर ही करने के लिए सरकार ने एक क्लीनिक शुरू क‍िया है. इतना ही नहीं फसलाें को होने वाले गंभीर रोगों के इलाज के लिए अब आईसीयू की सुविधा भी दी जा रही है. किसानों को अपने तरह की यह अनूठी सेवा यूपी में झांसी स्थ‍ित रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृष‍ि विश्वविद्यालय में शुरू की गई है.

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक और फसल रोग निदान परियोजना के प्रमुख डॉ प्रशांत जांभुलकर ने 'किसान तक' को बताया कि इस योजना के पहले चरण में  'मोबाइल प्लांट हेल्थ क्लीनिक' सेवा शुरू की जा चुकी है. उन्होंने बताया कि अपने तरह की यह अनूठी सेवा देश में पहली बार केंद्रीय कृष‍ि मंत्रालय द्वारा कृष‍ि विश्वविद्यालय के माध्यम से शुरू की गई है.

इसके तहत उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र के लगभग 15 जिलों में किसानों को फसलों के उपचार की सुविधा दी जा रही है. उन्होंने बताया कि किसानों को यह सुविधा देने के लिए 'किसान वाणी' नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया गया है. इसमें अब तक 250 किसान जुड़ चुके हैं. इन किसानों की कॉल पर फसलों के रोग का उपचार करने की सुविधा दी जाती है.

पहले रोग की पहचान, फ‍िर निदान

डॉ जांभुलकर ने बताया कि किसान द्वारा खेत की मिट्टी या फसल में रोग लगने की सूचना मिलने पर मोबाइल क्लीनिक वैन खेत पर भेजी जाती है. इस वैन में मिट्टी और फसलों के सामान्य रोगों की पहचान करने से जुड़ी सभी तकनीक मौजूद हैं. उन्होंने बताया कि फसल और मिट्टी में लगे रोग को मोबाइल वैन की छोटी लैब में पहचान करना जब मुमकिन नहीं हाेता है, तब फसल या मिट्टी के सैंपल को, विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित 'रोग निदान लैब' में लाया जाता है.

उन्होंने बताया कि यह लैब फसलों की गंभीर बीमारियों की पहचान करने में सक्षम अत्याधुनिक तकनीकों से लैस है. इसे फसलों का ''आईसीयू'' कहा जा सकता है. इस लैब में फसल या मिट्टी को लगे रोग की पहचान कर माकूल उपचार किया जाता है.

डीएनए परीक्षण करने की भी सुविधा

डा जांभुलकर ने बताया कि मिट्टी एवं फसलों के गंभीर रोगों की पहचान से पहले इनके सैंपल को कुछ समय के लिए आईसीयू के 'आइसोलेशन चैंबर' में रखा जाता है. जिससे रोग के लक्षण उभर कर सामने आ सकें. लक्षणों के आधार पर बीमारी की पहचान की जाती है.

उन्होंने बताया कि आइसोलेशन में भी लक्षण नहीं उभरने पर सैंपल को 'इक्यूबेशन चैंबर' में रख कर रोग जनित कारकों (बैक्टीरिया एवं वायरस) को उभरने का मौका दिया जाता है. इन कारकों की पहचान कर रोग का निर्धारण किया जाता है. इसके बाद रोग के कारकों का डीएनए परीक्षण करके बीमारी के स्थाई इलाज का मार्ग प्रशस्त होता है.

उन्होंने इस आईसीयू की तकनीकी कुशलता का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें रोगों की रोकथाम के लिए 'जीनोम सीक्वेंसिंग' भी की जा सकती है. डा जांभुलकर ने बताया कि जीनोम सीक्वेंसिंग की मदद से फसलों को लाइलाज रोगों से स्थाई निजात दिलाने में मदद मिलती है.

फसलों का होता है मुफ्त में इलाज

डा जांभुलकर ने बताया कि मोबाइल क्लीनिक हो या आईसीयू, फसल एवं मिट्टी के रोगों की पहचान के लिए किसानों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. किसानों को फसलों के रोग निवारण के लिए सुझाई जाने वाली दवाओं का भी कोई शुल्क नहीं देना पड़ता है. लैब में परीक्षण के बाद खेत में मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिए किसानों को ग्रीन ग्रास या जिप्सम आदि का इस्तेमाल करने के लिए सुझाव दिया जाता है. किसानों को ग्रीन ग्रास के बीज या जिप्सम आदि कृष‍ि विभाग द्वारा अत्यध‍िक रियायती दरों पर उपलब्ध हो जाते हैं. उन्होंने कहा कि इस प्रकार किसानों को फसल एवं मिट्टी की चिकित्सा सुविधा लगभग मुफ्त में ही मिल जाती है.

गांव-गांव में तैनात होंगे 'प्लांट डॉक्टर'

डॉ जांभुलकर ने कहा कि इस परियोजना के अगले चरण में लगभग हर गांव में एक प्लांट डॉक्टर तैनात किए जाने की योजना है. इसमें हर गांव के एक श‍िक्ष‍ित युवा को मिट्टी एवं फसलों की सामान्य बीमारियों की पहचान करने में सक्षम बनाया जाएगा. इसे 'प्लांट डॉक्टर' नाम दिया गया है.

प्लांट डॉक्टर सीधे तौर पर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहेंगे. किसानों से फसलों एवं मिट्टी के रोगों की सूचना मिलने पर ये रोग की पहचान कर इसकी प्राथमिक रिपोर्ट से कृष‍ि वैज्ञानिकों को अवगत करा देंगे. इसके आधार पर किसानों को तत्काल रोग के उपचार की विध‍ि बता दी जाएगी. जिससे फसलों को यथाशीघ्र उपचार मिल सके.

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