एक साल पहले अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने जब औद्योगिक कचरे (Industrial Waste) पर शोध शुरू किया, तो शायद उन्हें उम्मीद भी नहीं रही होगी कि कामयाबी इतनी जल्दी भी मिल सकती है. लेकिन वैज्ञानिकों की इस टीम ने शहरों को प्रदूषित जल (Polluted Water) की सबसे बड़ी समस्या से मुक्ति दिलाने की उम्मीद जगा दी है. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इंटरडीसीप्लिनरी नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर (IDNT) के वरिष्ठ नैनोटेक्नोलॉजी एक्सपर्ट प्रो. अवसार अहमद की अध्यक्षता में गठित एक टीम ने औद्योगिक कचरे के सबसे हानिकारक केमिकल क्रोमियम-6 को लाभदायक केमिकल क्रोमियम-3 में बदलने का तरीका ढूंढ निकालने का दावा किया है. इसके लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है और दावा किया जा रहा है कि जंगली अदरक कहे जाने वाले अल्पीनिया जेरुम्बेट (Alpinia Zerumbet) की पत्तियां इस समस्या की काट हैं.
शहरों की मूल समस्या है प्रदूषण और इस प्रदूषण को खतरनाक स्तर पर पहुंचा देता है औद्योगिक कचरा. कल कारखानों से निकले केमिकल नालों में गिरते हैं और नालों के जरिए ग्राउंड वॉटर और नदियों में भी जाकर मिलते हैं. इससे शहर के आसपास के जमीन पर उगने वाली फसल भी दूषित होती है और पीने के पानी से स्वास्थ्य भी खराब होता है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि उनकी खोज से इस समस्या पर काफी हद तक अंकुश पाया जा सकता है. औद्योगिक कचरे के सबसे खतरनाक केमिकल क्रोमियम-6 को क्रोमियम-3 में बदला जा सकता है, जो मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है.
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इंटरडीसीप्लिनरी नैनो टेक्नोलॉजी सेंटर के प्रोफेसर अवसार अहमद ने किसान तक को बताया कि जिंक सल्फाइड के नैनो कण को सबसे पहले बनाया गया. इन कणों को फंगस से बनाने में 15 दिन लगते हैं जबकि रासायनिक विधि से 1100 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर तैयार करने में 4 से 5 दिन का समय लगता है. शोध में कमरे के तापमान पर नैनो कण तैयार किए गए. प्रो. अवसार अहमद ने बताया कि अल्पीनिया जेरुम्बेट (Alpinia Zerumbet) की पत्तियों के साथ जिंक सल्फेट का मिश्रण से तैयार करने में मदद मिली है. देश में इस तरह का यह पहला शोध है जिससे काफी उम्मीदें भी जगी है. आपको बता दें कि अल्पीनिया जेरुम्बेट (Alpinia Zerumbet) को जंगली अदरक भी कहा जाता है. यह दुनिया के हर कोने में पाया जाता है, लेकिन पूर्वी एशिया और खास तौर पर भारत को इसका मूल स्थान माना जाता है.
बड़ी औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले औद्योगिक अपशिष्ट को हरित विधि के द्वारा अब फसलों के लिए उपयोगी बनाया गया है. प्रोफेसर अवसार अहमद ने बताया कि इस विधि से 100 ग्राम जिंक सल्फाइड के नैनोकण बनाने का खर्च भी ₹1000 आता है. हमारा प्रयास है कि हरित विधि के प्रयोग से इस प्रक्रिया को पूरा करना. अब बड़ी मात्रा में जिंक सल्फाइड तैयार कर बाजार में उतारने का काम होगा. क्रोमियम 6 से क्रोमियम 3 बदलने में उन्हें सफलता मिली है. जिसे फसलों के लिए उपयोगी पाया गया है. यह हरित अर्थव्यवस्था के लिए काफी ज्यादा लाभदायक होगा. यहां तक कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण शोध है.
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औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषित होने वाली जल और फसलों के माध्यम से हमारे शरीर में क्रोमियम 6 पहुंच रहा है. इससे फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा के अलावा लीवर खराब हो सकता है. टीबी होने व आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा रहता है. क्रोमियम 6 का उपयोग चमड़े को उपयोगी बनाने के लिए किया जाता है. Stainless-steel ,कपड़ा निर्माण , मेटल फिनिशिंग उद्योग के कचरे में भी क्रोमियम -6 होता है, जो पानी के साथ-साथ नदियों के जरिए समुद्र में भी पहुंचता है. औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला खतरनाक हेक्सावेलेंट क्रोमियम-6 जमीन से लेकर नदियों के लिए सबसे बड़ा खतरा है.
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