ऑनलाइन गड़बड़ी से ठप पड़ा इलायची का निर्यात, देश में जहां-तहां फंसे 500 कंटेनर

ऑनलाइन गड़बड़ी से ठप पड़ा इलायची का निर्यात, देश में जहां-तहां फंसे 500 कंटेनर

यूरोपियन यूनियन के देशों को होने वाले निर्यात में दिक्कत आ रही है. इन देशों में बासमती चावल और इलायची की खेप भेजी जानी है, लेकिन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के चलते ऑनलाइन सर्टिफिकेशन का काम पूरा नहीं हो पा रहा है. इससे निर्यात की खेप को ई-सील नहीं मिल पा रहा है और माल जहां-तहां फंस गया है.

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ऑनलाइन गड़बड़ी से ठप पड़ा इलायची का निर्यात, देश में जहां-तहां फंसे 500 कंटेनरभारत से यूरोप के देशों को ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का निर्यात होता है (फोटो-Unsplash)

देश के अलग-अलग हिस्सों से होने वाले निर्यात पर सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी की मार पड़ी है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 500 कंटेनर यूरोप के देशों में इसलिए नहीं भेजे जा रहे क्योंकि सॉफ्टवेयर में कुछ गड़बड़ है. ऑनलाइन शिपमेंट में इस गड़बड़ के चलते क्लीयरेंस नहीं मिल पा रहा है. इससे यूरोप के देशों में भेजा जाने वाला माल अलग-अलग पोर्ट पर फंसा हुआ है. इन सामानों में मुख्य रूप से ऑर्गेनिक प्रोडक्ट हैं.

सॉफ्टवेयर में आई टेक्निकल गड़बड़ी से यूरोपियन कमीशन के डिजिटल सर्टिफिकेशन और मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म पर सौदे को मंजूरी नहीं मिल पा रही है. इससे बासमती चावल, इलायची और अन्य सामानों से लदे लगभग 500 कंटेनर जहां-तहां फंसे पड़े हैं.

क्या है मामला

आजकल निर्यात में ऑनलाइन डिजिटल प्लेटफॉर्म का सबसे अहम रोल होता है. निर्यात किए जाने वाले सौदे को डिजिटल साइन और स्टांप की सुविधा ऑनलाइन ही दी जाती है. ऑर्गेनिक उत्पादों की जांच ऑनलाइन होने के बाद उसे सर्टिफिकेट भी मिल जाता है जिसके बाद निर्यात को हरी झंडी दे दी जाती है. यूरोपियन यूनियन के अलग-अलग देशों में ऑर्गेनिक सामानों के निर्यात का यही नियम बना है. लेकिन सॉफ्टवेयर में कुछ गड़बड़ होने से माल भरे कंटेनर कई जगह फंसे हुए हैं.

ऑनलाइन सर्टिफिकेशन का सिस्टम जून 2020 में शुरू किया गया था. डिजिटल प्लेटफॉर्म एक तरह से सर्टिफिकेशन संस्था होती है जो निर्यात के लिए ऑनलाइन सर्टिफिकेट देती है. इस डिजिटल प्लेटफॉर्म को मुहैया कराने का जिम्मा एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) का है. भारत में एपीडा ही निर्यात की मॉनिटरिंग करता है.

आइए समझ लेते हैं कि निर्यात के लिए ऑनलाइन सिस्टम कैसे काम करता है. दरअसल, जिस सौदे को या खेप को निर्यात करना है उसका अप्रूवल सर्टिफिकेट एपीडा जारी करता है. यह सर्टिफिकेट यूरोपियन कमीशन को फॉरवर्ड किया जाता है. इसी आधार पर ई-सील जारी किया जाता है. ई-सील के लिए ही यह सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसके आधार पर निर्यात को हरी झंडी मिलती है. 

निर्यात के लिए जरूरी ई-सील

कोविड के दौरान यूरोपियन यूनियन के देशों ने ई-सील से जुड़े नियमों में कुछ ढील दी थी. लेकिन अब इसके नियम सख्त कर दिए गए हैं. अब जिन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का निर्यात किया जाना है, उन सबका डिजिटल सर्टिफिकेट और ई-सील लिया जाना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं होगा तो निर्यात रुक जाएगा. फिलहाल सॉफ्टवेयर में कुछ गड़बड़ी के चलते डिजिटल सर्टिफिकेशन में दिक्कतें आ रही हैं. 

यूरोपियन यूनियन के देशों में ऑर्गेनिक प्रोडक्ट के निर्यात के लिए ई-सील की जरूरत होती है और ई-सील बनाने में अभी दिक्कतें आ रही हैं. यही वजह है देश के अलग-अलग स्थानों पर बासमती चावल, इलायची से लदे 500 कंटेनर फंसे हुए हैं.  

कहां आ रहीं दिक्कतें

'बिजनेसलाइन' को एक सूत्र ने बताया कि सॉफ्टवेयर में दिक्कत पर गौर किया जा रहा है और जल्द ही समस्या सुधार ली जाएगी. एक अन्य सूत्र ने बताया कि सर्टिफिकेशन में ऑनलाइन गड़बड़ी सिर्फ भारत के साथ ही देखी जा रही है. इसके पीछे दो वजहें हो सकती हैं. पहली ये कि हो सकता है भारत के अधिकारी ई-सील प्रक्रिया को लागू करने से हिचक रहे हों. दूसरा मामला ये हो सकता है कि भारत का सिस्टम नए सर्टिफिकेशन प्रोसेस के साथ पूरी तरह न ढल पाया हो जिससे ई-सील में दिक्कतें आ रही हैं.

ऑनलाइन सर्टिफिकेशन का काम करने वाली फ्रांस की संस्था इकोसर्ट ने बताया कि इंसपेक्शन सर्टिफिकेशन के लिए साइन और स्टांप लगाने का काम डिजिटल तरीके से हो रहा है. जून 2020 में ही निर्यातकों को इस बात की जानकारी दे दी गई थी. जानकारी में बताया गया था कि किसी भी खेप के लिए ट्रेसेस सिस्टम से इलेक्ट्रॉनिक सील लिया जाना जरूरी होगा. अभी यह समस्या केवल भारत में आ रही है और यूरोपियन यूनियन ने विदेशी सर्टिफिकेशन संस्थाओं पर रोक लगाई है. इस रोक के चलते भारत के ऑर्गेनिक प्रोडक्ट यूरोप के देशों में निर्यात नहीं हो रहे हैं.

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