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अध्ययन में दावा- इस तकनीक से खेती करने पर 35 फीसदी तक बढ़ सकता है सरसों का उत्पादन

अध्ययन में दावा- इस तकनीक से खेती करने पर 35 फीसदी तक बढ़ सकता है सरसों का उत्पादन

अध्ययन में पाया गया कि नियमित खेतों की तुलना में मॉडल फार्मों में पांच वर्षों में सरसों की औसत उपज में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 1,787 किलोग्राम से बढ़कर 2,414.8 किलोग्राम हो गई है. एसईए ने एक बयान में कहा है कि सरसों मॉडल फार्मों ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न रणनीतियों को लागू किया था.

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अब बढ़ जाएगी सरसों की पैदावार. (सांकेतिक फोटो) अब बढ़ जाएगी सरसों की पैदावार. (सांकेतिक फोटो)

भारत तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है. वह लाखों टन खाद्य तेल हर साल आयात करता है. लेकिन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने अपने एक अध्ययन में दावा किया है कि उसके द्वारा बताए गए तरीके से खेती करने पर सरसों की पैदावार बढ़ जाएगी. खास बात यह है कि अध्ययन में कहा गया है कि अगर आदर्श कृषि पद्धतियां अपनाई जाए, तो सरसों की औसत उपज पांच वर्षों में 35 प्रतिशत तक बढ़ सकती है. अगर ऐसा होता है कि तो भारत के ऊपर तेल आयात का बोझ कुछ कम होगा.

बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, एसईए ने  सामाजिक रूप से जिम्मेदार, पारिस्थितिक रूप से मजबूत और लाभदायक आपूर्ति श्रृंखलाओं के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय नागरिक समाज संगठन, सॉलिडेरिडाड नेटवर्क के सहयोग से राजस्थान में पायलट प्रोजेक्ट का संचालन शुरू किया है. इसने साल 2020-21 में राजस्थान के पांच जिलों में 400 खेतों के साथ इस पायलट प्रोजेक्ट का संचालन शुरू किया है. इस प्रोजेक्ट को धीरे-धीरे अन्य प्रमुख सरसों उत्पादक राज्यों को कवर करने के लिए आगे बढ़ाया गया. यह पांच राज्यों में फैले लगभग 3,500 मॉडल फार्मों में आयोजित किया गया था, जिसमें 125,000 से अधिक किसान शामिल थे.

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बढ़ गई फसल की उपज

अध्ययन में पाया गया कि नियमित खेतों की तुलना में मॉडल फार्मों में पांच वर्षों में सरसों की औसत उपज में 35 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो 1,787 किलोग्राम से बढ़कर 2,414.8 किलोग्राम हो गई है. एसईए ने एक बयान में कहा है कि सरसों मॉडल फार्मों ने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न रणनीतियों को लागू किया था, जो मुख्य रूप से नवीन कृषि पद्धतियों, उन्नत तकनीकी अपनाने और व्यापक किसान सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से सरसों की पैदावार बढ़ाने पर केंद्रित थीं.

एसईए के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि वर्तमान में उपलब्ध बीजों का उपयोग करके उपज में वृद्धि हासिल की गई और इस प्रक्रिया में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) बीज का उपयोग नहीं किया गया. परियोजना के तहत तकनीकी-आर्थिक इनपुट के अलावा; किसानों को ब्लॉक स्तर पर अद्वितीय किसान फील्ड स्कूलों (एफएफएस) के माध्यम से भी प्रशिक्षित किया गया. बयान में कहा गया कि इन एफएफएस ने मजबूत सामुदायिक संस्थानों के रूप में काम किया, जहां किसानों ने अपनी सीख साझा की.

16.47 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात

एसईए विश्लेषण से पता चला कि सरसों कम मानसून और कम सिंचित क्षेत्रों के लिए एक आदर्श फसल है, क्योंकि यह कम उत्पादन लागत और कम पानी के साथ उच्च रिटर्न प्रदान करती है. सरसों की पैदावार में वृद्धि खाद्य तेलों पर भारत की आयात निर्भरता को कम करने में भी योगदान दे सकती है. वर्तमान में, भारत अपनी वार्षिक खाद्य तेल आवश्यकताओं का लगभग 60 प्रतिशत आयात करता है. एसईए के अनुसार, 2022-23 (नवंबर से अक्टूबर) में भारत ने लगभग 138,000 करोड़ रुपये मूल्य के लगभग 16.47 मिलियन टन खाद्य तेलों का आयात किया था.

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सरसों के बंपर उत्पादन की उम्मीद

एसईए ने कहा कि यह प्रभाव को कम करने के लिए खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता को बढ़ाता है. भारत का सरसों बीज उत्पादन 2020-21 में 8.6 मिलियन टन से बढ़कर 2022-23 में 11.35 मिलियन टन हो गया है, जबकि फसल का क्षेत्रफल 2020-21 में 6.70 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 2022-23 में 8.80 मिलियन हेक्टेयर हो गया है. एसईए ने कहा कि मौजूदा 2023-24 (नवंबर-अक्टूबर) सीजन में सरसों के बीज का उत्पादन रिकॉर्ड 10 मिलियन हेक्टेयर के बुवाई क्षेत्र के साथ 12 मिलियन टन के सर्वकालिक उच्च स्तर तक पहुंचने का अनुमान है.