मेढ़ विधि से मक्का उपजाएं, कम मेहनत और कम लागत में ज्यादा लाभ कमाएं

मेढ़ विधि से मक्का उपजाएं, कम मेहनत और कम लागत में ज्यादा लाभ कमाएं

आजकल मक्के की विभिन्न प्रजातियों का अलग-अलग तरीके से उपयोग किया जाता है. मक्के को पॉपकॉर्न, स्वीटकॉर्न और बेबीकॉर्न के रूप में मान्यता दी गई है. मक्के की खेती में अपार संभावनाओं को देखते हुए किसान अधिक से अधिक इसकी खेती कर रहे हैं.

Advertisement
मेढ़ विधि से मक्का उपजाएं, कम मेहनत और कम लागत में ज्यादा लाभ कमाएंमक्के की खेती में ये विधि है फायदेमंद

मक्के को विश्व में खाद्यान्नों की रानी कहा जाता है. क्योंकि इसकी उत्पादन क्षमता खाद्य फसलों में सबसे अधिक है. पहले मक्के को खासकर गरीबों का मुख्य भोजन माना जाता था, जबकि अब ऐसा नहीं है. अब इसका उपयोग मानव भोजन (25%) के साथ-साथ मुर्गीपालन (49%), पशु आहार (12%), स्टार्च (12%), शराब (1%) और बीज (1%) के रूप में भी किया जाता है. है. इसके अलावा मक्के का उपयोग तेल, साबुन आदि बनाने में भी किया जाता है. भारत में मक्के से 1000 से अधिक उत्पाद बनाये जाते हैं. मक्के का केक अमीर लोगों का मुख्य नाश्ता है. मक्के का पाउडर छोटे बच्चों के लिए एक पौष्टिक आहार है और इसके दानों को भूनकर भी खाया जाता है. मक्के की खेती शहरों के आसपास मुख्यतः हरे भुट्टे के लिए की जाती है.

मक्के से बनाए जाते हैं अलग-अलग उत्पाद

आजकल मक्के की विभिन्न प्रजातियों का अलग-अलग तरीके से उपयोग किया जाता है. मक्के को पॉपकॉर्न, स्वीटकॉर्न और बेबीकॉर्न के रूप में मान्यता दी गई है. मक्के की खेती में अपार संभावनाओं को देखते हुए किसान अधिक से अधिक इसकी खेती कर रहे हैं. ऐसे में किसानों को सलाह दी जाती है कि किसान मेढ़ विधि को अपनाकर कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. 

ये भी पढ़ें: मक्के और गन्ने की खेती के लिए मिलेगी सब्सिडी, किसान ऐसे उठाएं लाभ

क्या है मेढ़ विधि?

उठी हुई क्यारी को मेढ़ कहा जाता है. रोपण को सबसे अच्छा माना जाता है. अधिक नमी वाले मौसम जैसे मानसून और सर्दियों के मौसम के दौरान मक्का के लिए इस रोपण विधि को सबसे अच्छा माना जाता है. ये विधि अच्छी फसल स्टैंड प्राप्त करने में मदद करता है, उच्च उत्पादकता और संसाधन उपयोग दक्षता में भी कारगर है. उन्नत क्यारी रोपण प्रौद्योगिकी, 20-30% सिंचाई करके उच्च उत्पादकता से जल की बचत की जा सकती है.

मेढ़ पर करें मक्के की बुआई

  • संसाधनों का बचाव : इस विधि द्वारा फसल की बुआई करने पर 20-30% सिंचाई जल, 25-40% बीज एवं 25% नत्रजन का बचाव किया जा सकता है.
  • फसल सुरक्षा : मेढ़ पर मक्का की खेती करने से अत्यधिक वर्षा से होने वाले नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है. अधिक वर्षा की स्थिति में दो मेढ़ों के बीच के नाले का उपयोग जल निकास के लिए किया जाता है, जिससे जल जमाव के कारण फसल नुकसान से बचाया जा सकता है तथा दो पंक्तियों के बीच खाली स्थान रहने से तेज हवा के बहने पर भी सामान्यतः खड़ी फसल गिरती नहीं है.
  • मेढ़ों पर फसल लगाने से सूर्य की किरणों और वायु की समुचित उपलब्धता के कारण पौधों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है. जिससे गुणवत्ता, उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि होती है.
POST A COMMENT