हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले की ठंडी मरुस्थलीय हंगरंग घाटी में सेब दिवस 2.0 का आयोजन किया गया. यह आयोजन डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), किन्नौर और क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, शार्बो के संयुक्त तत्वावधान में हुआ.
वर्ष 2021 में जनजातीय उप-योजना परियोजना के अंतर्गत स्थापित हाई ऐल्टिट्यूड प्रदर्शन बगीचे में सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर, रेड वेलोक्स, ऑर्गन स्पर-II और गाला वैल जैसी दस प्रीमियम किस्मों का सफल उत्पादन हो रहा है. यह मॉडल बगीचा अब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में उच्च घनत्व बागवानी की संभावना का सशक्त उदाहरण बन चुका है.
इस अवसर पर डॉ. प्रमोद शर्मा (KVK किन्नौर प्रमुख) ने बताया कि प्राकृतिक खेती और सीड्लिंग रूटस्टॉक आधारित उच्च घनत्व रोपण प्रणाली हिमालयी क्षेत्रों की स्थायित्वपूर्ण खेती के लिए अनिवार्य बनती जा रही है. उन्होंने प्रकृति-आधारित समाधान, बहुस्तरीय फसल प्रणाली और फसल विविधीकरण पर भी जोर दिया.
विषय विशेषज्ञ देव राज कैथ ने किसानों को फसल बीमा, सब्सिडी और जैविक कीट प्रबंधन पर जानकारी दी. आत्मा परियोजना के जय कुमार ने बताया कि किन्नौर के छह गांवों—नाको, चांगो, रिब्बा, आसरंग, थांगी और कानम—को प्राकृतिक खेती क्लस्टर के रूप में विकसित किया गया है.
फल वैज्ञानिक डॉ. दीपिका नेगी ने सेब बागानों में स्ट्रॉबेरी जैसी उच्च मूल्य फसलों को शामिल करने की सलाह दी. वहीं मगसूल प्रा. लि., बेंगलुरु के निदेशक अजय तन्नीकुलम ने किसानों को बाजार से जोड़ने और वैल्यू चेन विकास की जानकारी साझा की.
शलकर के केसांग तोबदेन और चांगो के कृष्ण चंद ने प्राकृतिक खेती की अपनी सफलता की कहानियां साझा कीं, जो अन्य किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बनीं.
बी.एससी. (औद्यानिकी) के छात्र, जो RAWE कार्यक्रम के तहत किन्नौर में कार्यरत हैं, उन्होंने भी अपने अनुभव साझा करते हुए स्थानीय किसानों की नवाचार क्षमता की प्रशंसा की.
कार्यक्रम में जलवायु सहिष्णु, जल-संरक्षण आधारित और पर्यावरण-मित्र बागवानी तकनीकों को अपनाने का आह्वान किया गया, ताकि स्थायी कृषि विकास को गति दी जा सके.
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