अंतरराष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) के वैज्ञानिकों ने सोलर एनर्जी से चलने वाले जलकुंभी हार्वेस्टर के लिए पहला इंडस्ट्रियल डिजाइन पेटेंट मिल गया है. यह हार्वेस्टर आसान होने के साथ ही किफायती है और इसे कोई भी आसानी से संचालित कर सकता है. यह हार्वेस्टर जलकुंभी कचरे को खाद, मछली चारे और कागज में बदलने में मददगार साबित हो सकता है. यह हार्वेस्टर मछली पालन से लेकर नदी, नालों और जलाशयों की जलकुंभी से लेकर अन्य तरह के कचरे की सफाई के लिए बेहद कारगर बताया गया है. यह काम करने वाली मशीनें काफी महंगी आती हैं और यह हार्वेस्टर काफी कम कीमत का है.
गावों कस्बो के तालाबों में जलकुंभी का संक्रमण इकोसिस्टम को बुरी तरह प्रभावित करता है. मत्स्य पालन को नुकसान पहुंचाता है और नहरों के जल को बाधित करता है. जबकि, मछलियों की ग्रोथ और लंबे समय तक चलने वाले बीज प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है. क्योंकि, जलकुंभी के केवल 8-10 पौधे 6-8 महीनों के भीतर बढ़कर 6,00,000 से अधिक पौधों का रूप ले लेते हैं और पूरे तालाबा या नहर का हिस्सा घेर लेते हैं.
जलकुंभी से बचाव के लिए खरपतवार का रासायनिक और जैविक उपाय काफी महंगा पड़ता है. जबकि इसे हटाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीनरी का काफी महंगी होती है और प्रक्रिया भी लंबी चलती है. एक्सपर्ट का कहना है कि जलकुंभी खरपतवार को स्थायी नियंत्रण इसके समय समय पर कटाई करना है. चाहे वह मैन्युअल रूप से हो या मशीनों के जरिए किया जाए.
घर में डिजाइन और निर्मित सोलर एनर्जी से चलने वाला यह हार्वेस्टर 200,000 से कम कीमत में मिल जाता है. यह इसे ग्रामीण इलाकों के लोगों के लिए इसलिए सस्ता है कि इसका काम करने वाली अन्य मशीनें इससे करीब 10 गुना महंगी आती हैं. यह सोलर एनर्जी से चलता है तो बिजली खर्च भी बचता है, जबकि साइज छोने की वजह से समय और मजदूरी में 50-60 फीसदी बचत होती है.
ICRISAT के रेसिलिएंट फार्म और फूड सिस्टम के अनुसंधान कार्यक्रम निदेशक डॉ. एमएल जाट ने कहा कि इस हार्वेस्टर को कृषि मशीनरी कैटेगरी में रखा गया है. दो या तीन लोगों की टीम केवल 2-3 दिनों में 3 एकड़ (1.2 हेक्टेयर) के तालाब से 72,000 किलोग्राम जलकुंभी बायोमास को मशीन से काट सकती है. इसके विपरीत मैनुअल तरीके से कटाई के लिए 10-20 मजदूरों की जरूरत होती है और इस काम को करने में 18-20 दिन लगते हैं.
ICRISAT की ओर से कहा गया कि यह हार्वेस्टर कचरे को खाद में बदलने में मददगार है. महिला स्वयं सहायता समूह बायोमास को खाद, मछली के चारे या हाथ से कागज में बदल सकती हैं. ओडिशा सरकार के कृषि सचिव डॉ. अरबिंद कुमार पाढी ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व वाले ये उद्यम वैकल्पिक आजीविका उत्पन्न कर सकते हैं और अंतर्देशीय मत्स्य पालन को बढ़ावा दे सकते हैं. ऐसे में ICRISAT के सोलर एनर्जी संचालित हार्वेस्टर की जरूरत और इस्तेमाल को बल मिला है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today