जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक तापमान में वृद्धि, तेज बारिश, कभी बारिश, कभी गर्मी के कारण फसलों को भारी नुकसान हो रहा है, तो कभी कीटों और बीमारियों के कारण फसलों को नुकसान हो रहा है. इससे मुख्य रूप से अधिक लागत लगाकर सब्जियों की खेती करने वाले छोटे और मझोले किसानों पर खासा असर पड़ रहा है. किसान तक की खरीफनामा सीरीज की इस कड़ी में किसानों की इस समस्या पर पूरी रिपोर्ट, जिसमें चर्चा करेंगे ऐसी तकनीक की, जिसका प्रयोग कर किसान सामान्य खेती की तुलना में दो से तीन गुना तक आय अर्जित कर सकते हैं.
असल में किसान अपनी बेहतर आय के लिए कम लागत वाली संरक्षित कृषि तकनीक जैसे कीट प्रूफ नेट-हाउस, वॉक-इन टनल और लो-टनल तकनीक अपनाकर सामान्य खेती की तुलना में दोगुनी से तीन गुना आय अर्जित कर सकते हैं. वहीं बदलते मौसम अचानक मार से बच सकते हैं. आइए जानते हैं कि ये क्या है.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा के सब्जी विज्ञान के प्रधान वैज्ञानिक और संरक्षित खेती के एक्सपर्ट डॉ अवनी सिंह ने किसान तक से बातचीत में कहा कि बरसात के मौसम में बैंगन, शिमला मिर्च, फूलगोभी, टमाटर, भिंडी, खीरा और पपीते में कीट या वायरस का खतरा अधिक होता है, जिसे कीट प्रूफ नेट-हाउस का उपयोग करके कीटों और अन्य रोग वाहक कीटों को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है. उन्होंने कहा कि ऐसे में प्रोटेक्टेड कल्टीवेशन के तहत कीट रोधी नेट हाउस यानि कीट प्रूफ नेट-हाउस तकनीक का उपयोग जरूरी हो जाता है. उन्होंने बताया कि सब्जियों की खेती के लिए कीट प्रूफ नेट-हाउस एक बेहतर संरचना है, क्योंकि संरचना फसल और खुले वातावरण के बीच एक भौतिक अवरोध पैदा करते है.
किसान तक से बातचीत में डॉ. अवनी सिंह ने बताया कि अधिकांश उड़ने वाले कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए 40 जाली प्रति वर्ग इंच की नायलॉन की जाली का प्रयोग कर की कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है. इसका प्रयोग करने से कीट और रोग प्रबंधन की लागत बहुत कम हो जाती है.साल भर में 4 बार कीट-रोधी नेट-हाउस में सब्जियां उगाई जा सकती हैं. इसका इस्तेमाल हेल्दी नर्सरी उगाने के लिए किसी भी मौसम में इस्तेमाल किया जा सकता है.
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1000 हजार वर्ग मीटर का कीट प्रूफ नेट-हाउस बनाने में 5 से 6 लाख का खर्च आता है, लेकिन वे पारंपरिक खेती की तुलना में 2 से 3 गुना मुनाफा कमा सकते हैं.इस संरचना के निर्माण के लिए सरकार की तरफ से 50 फीसदी तक सब्सिडी मिलती है.
किसान तक से बातचीत में डॉ अवनी सिंह ने कहा कि वाक इन टनल अस्थायी और कम लागत वाली संरचनाएं हैं, जिन्हें 100-माइक्रोन की मोटाई साथ पैराबैगनी किरणो से प्रतिरोधी, पारदर्शी प्लास्टिक सीट से ढके आधे इंच के जीआई पाइप पर खड़ा किया जाता है.इसकी ऊंचाई करीब 2.0-2.5 मीटर और इसकी चौड़ाई करीब 4 मीटर होती है. वॉक इन टनल सभी प्रकार की फसलों, फूलों और सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है. ऐसी संरचनाओं का निर्माण करना कम खर्चीला होता है. इसलिए इसे आम तौर पर किसानों द्वारा अपनाया जाता है. वॉक इन टनल अच्छी देखरेख पर तक आसानी से चल सकता है.
इसमें मुख्य रूप से खीरा, शिमला मिर्च, लेट्यूस, मटर और बीन्स आसानी से उगाए जाते हैं, इसका इस्तेमाल हेल्दी नर्सरी उगाने के लिए किसी भी मौसम में इस्तेमाल किया जा सकता है. वाक इन टनल में मौसम परिवर्तन हिसाब से कवर को चेंज कर सकते है. कीट प्रूफ नेट-हाउस जाल, शेड नेट जाल या पॉलीथिन का कवर करके सब्जियों की खेती कर सकते हैं. इस तकनीक का इस्तेमाल खरीफ और रबी सीजन सब्जियों की खेती में करके समान्य खेती की तुलना में 2 से तीन गुना लाभ कमा सकते हैं.100 वर्गमीटर वाक इन टनल बनवाने में 30 से 32 हजार का खर्च आता है. इस तकनीक पर सब्सिडी योजना जिसका किसान जानकरी लेकर लाभ उठा सकते हैं.
किसान तक से बातचीत में उन्होंने कहा कि लो-टनल पौधों को बारिश, हवा, ओले और बर्फ आदि से बचाती है.वे मुख्य रूप नर्सरी के उगाने के लिए उपयोग किए जाता हैं और शुरुआती बीज अंकुरण में भी मदद करते हैं. किसान की सब्जियों की किस्मों को उगा सकते हैं. छोटे मझोले किसान लोटनल पॉली हाउस में पूरे साल इनकम जनरेशन के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं. यह 2 मिमी एंटी-जंग रॉड बांसके टुकड़ो पर बनाया जाता है. इस तकनीक में सबसे पहले नर्सरी बेड बनाया जाता है और बांस या लोहे की छड़ों के टुकड़ों को 2-3 फीट ऊंचे अर्धचंद्राकार संरचना बनाकर पारदर्शी पॉलीथीन से ढक दिया जाता है. नर्सरी पौध उगाने के लिए प्लास्टिक लोटनल बहुत कारगर होता हैं.
उत्तर भारत में दिसंबर और जनवरी अधिक ठंडे होते हैं. फसल में कम तापमान के दबाव को झेलने की ताकत कम होती है. तापमान कम होने के कारण बीजों का अंकुरण संभव नहीं हो पाता है, जिससे सब्जियों की बुवाई में देरी हो जाती है. उस समय यह नर्सरी पौधे को सुरक्षा प्रदान करती है.सर्दी के मौसम में अगेती टमाटर, जूकनी, मिर्च, खीरा, लौकी, करेला, तरबूज, खरबूजा और ककड़ी सहित यह छोटे किसानों का पॉली हाउस कहा जाता है. किसान इसमे नर्सरी उगाकर बिजनेस भी कर सकते है.1000 वर्ग मीटर के लो टनल पॉली हाउस बनवाने 25 से 30 हजार तक खर्चा होता है . इस लोटनल पॉली हाउस में सरकारी अनुदान है. जिसे किसान अपने जिले के उद्यान विभाग में जानकारी लेकर लाभ उठा सकते हैं.
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