जहां भारत में एक बार फिर किसान प्रदर्शन की आहटें सुनाई दे रही हैं तो वहीं यूरोप में किसान सड़कों पर हैं. भारत में किसान ट्रैक्टर मार्च के साथ प्रदर्शन के लिए तैयार हो रहे हैं तो वहीं यूरोप में वह इस पर चढ़कर अपने गुस्से का इजहार कर रहे हैं. साल 2020 में जब किसान प्रदर्शन भारत में हुआ तो उस समय ट्रैक्टर गुस्से की आवाज बन गए थे. यूरोप में भी अब ट्रैक्टर की 'गड़गड़' ही किसानों की आवाज बन गई है. कई दशकों से यह ट्रैक्टर जहां किसानों को उनकी खेती-बाड़ी में मदद करता आ रहा है तो वहीं अब यह उनके गुस्से की आवाज बन गया है. जानिए आखिर इस ट्रैक्टर में ऐसा क्या खास है कि किसान इसे अपना सबसे बड़ा साथी मानते आए हैं.
किसी समय किसान पशुओं की मदद से खेती का काम करते थे. लेकिन जिस समय से ट्रैक्टर आया, उसने किसानों की सारी तकलीफों को दूर कर दिया. ट्रैक्टर की वजह से खेती में मशीन का युग शुरू हुआ. इस बदलाव की वजह से उत्पादकता में वृद्धि हुई है. खेती से जुड़े सभी काम और आसान हो गए और किसानों की आय में इजाफा होने लगा है. आज भी ट्रैक्टरों में नए इनोवेशन खेती को संचालित करते हैं. अब एक ट्रैक्टर है जो जुताई से लेकर बीज डिस्ट्रीब्यूशन और कटाई तक हर काम को सही तरीके अंजाम देता है.
ट्रैक्टर को किसान का सबसे अच्छा दोस्त कहा गया है. ट्रैक्टर का प्रयोग जुताई, हैरोइंग, बुआई और ट्रांसपोर्ट तक में करने लगे हैं. इस मशीन ने किसानों की मेहनत को बहुत कम कर दिया है. इससे उनका काम अधिक आसान और तेज हो गया है. आमतौर पर शहरों में ट्रैक्टर तो नजर नहीं आते लेकिन लाल, नीले रंग की ये विशाल मशीनें अक्सर नजर आ जाती हैं.
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सन् 1892 में पहले गैसोलीन ट्रैक्टर का ख्याल आया. अमेरिकी इंजीनियर जॉन फ्रोएलिच ने इसे आगे और पीछे के गियर के साथ डिजाइन किया था. हालांकि, सबसे व्यावसायिक रूप से सफल ट्रैक्टर सन् 1901 में डैन एल्बोन द्वारा बनाया गया था. बहुत कम समय में ट्रैक्टर कई बदलावों से गुजरा है. किसानों के सबसे अच्छे दोस्त और सहायक के रूप में, 'ट्रैक्टर' ने भारत की आजादी के बाद से लोकप्रियता हासिल की है.
सन् 1940 के दशक के मध्य में भारत खेती और निर्माण के लिए ट्रैक्टरों का आयात करता था. सन् 1961 में भारत में पांच कंपनियों के इसका उत्पादन शुरू किया. सन् 2000 में अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए भारत दुनिया का सबसे बड़ा ट्रैक्टर उत्पादक बन गया. सन् 2013 में भारत में करीब 619000 ट्रैक्टरों का उत्पादन किया गया था और यह दुनिया के उत्पादन का 29 फीसदी था. आज भारत समेत दुनिया के कई देशों जिनमें खासतौर पर यूरोप के कई देशों के किसान खेती की कल्पना बिना ट्रैक्टर के नहीं कर सकते हैं.
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