तुंगभद्रा डैम का नाम सुना होगा आपने. यह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में है. इस डैम का नाम सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए बड़ी ख्याति के साथ लिया जाता है. लेकिन हाल के दिनों में इस डैम में एक गड़बड़ आ गई थी. दरअसल, इस डैम से पानी की बहुत बर्बादी हो रही थी. यह मामला चिंता में इसलिए भी डाल रहा था क्योंकि एक तो सिंचाई का पानी बर्बाद हो रहा था. दूसरा, पानी बर्बाद होने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा पैदा हो रहा था. लेकिन अब इस खतरे से छुटकारा मिल गया. उम्दा इंजीनियरों की एक टीम ने तुंगभद्रा डैम पर कड़ी मेहनत के बाद स्टॉपलौग लगा दिया है जिससे पानी की बर्बादी रुक गई है.
इस स्टॉपलौग का लगना केवल आंध्र प्रदेश के किसानों के लिए खुशखबरी नहीं है. इससे तेलंगाना और कर्नाटक के किसानों ने भी राहत की सांस ली है क्योंकि उन्हें भी इस डैम का पानी मिलता था. जो पानी बर्बाद हो रहा था, अब वह पानी उनके खेतों को सींचने के काम आएगा.
इंजीनियरों की टीम के लिए स्टॉपलौग (पानी रोकने की तकनीक) लगाना मुश्किल काम था क्योंकि भारी बारिश के बाद बाढ़ का पानी लगातार बहा जा रहा था. इस काम का जिम्मा रिटायर्ड हाइड्रो मेकेनिकल इंजीनियर कन्हैया नायडू को दिया गया. उनकी टीम ने पानी रोकने का यह बड़ा काम किया है. 'TOI' एक रिपोर्ट बताती है कि स्टॉपलौग लगने के बाद अब बांध का पानी बिना बर्बाद हुए सिंचाई के लिए मिलना शुरू हो जाएगा.
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मामला बीते शनिवार को अधिक चिंताजनक हो गया था जब भारी बारिश के बाद तुंगभद्रा डैम का गेट नंबर-19 टूट कर बह गया. इससे अधिकारियों में हड़कंप मच गया. इस डैम ने अभी अपनी पूरी क्षमता से पानी जमा कर लिया है और अभी तकरीबन 105 टीएमसी पानी जमा है. पानी की यह क्षमता आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक के किसानों के लिए अगले दो फसल सीजन के लिए उपयुक्त है. किसान इतने पानी से आराम से अपनी फसलों की सिंचाई कर सकेंगे. लेकिन अगर डैम की मरम्मत न की जाती तो शायद यह संभव नहीं था.
इस डैम का एक गेट टूटने के बाद अधिकारियों ने दूसरे गेट को खोल दिया वर्ना कुछ बड़ी घटना हो सकती थी. गेट टूटने के बाद तुरंत बाद तीनों राज्यों को इस बात की जानकारी दी गई और इसे संभालने का काम शुरू किया गया. इंजीनियरों के सामने बड़ी चुनौती ये थी कि जब तक डैम में पानी कम नहीं होता तब तक स्टॉपलौग लगाना मुश्किल था. यह काम तभी हो पाता जब डैम का पानी अपने ग्राउंड लेवल तक जाता. लेकिन इंजीनियरों ने इसकी परवाह किए बिना एक नायाब तरीका निकाला.
इंजीनियरों की टीम ने मेटल के पांच अलग-अलग प्लेट्स तैयार किए. इसके फैब्रिकेशन का काम तीन अलग-अलग कंपनियों को दिए गए. साथ ही युद्ध स्तर पर मरम्मत का काम शुरू किया गया. इस काम में पानी का दबाव न बढ़े, इसके लिए अधिकारियों ने तुंगभद्रा डैम का बाकी गेट खोल दिए. इससे रिपेयर वाली जगह पर दबाव कम हो गया. जांज के लिए इंजीनियरों ने पहले दिन एक शीट लगाई और एक दिन का इंतजार किया. इससे उन्हें सफलता मिलती दिखी और अगले दिन पूरे प्लेट्स लगा कर स्टॉपलौग लगा दिया गया. इससे तुंगभद्रा डैम को लेकर बड़ी सफलता मिली है. किसानों में खुशी है कि उन्हें सिंचाई के लिए लगातार पानी मिलता रहेगा. साथ ही बाढ़ जैसे खतरे से भी आजादी मिल गई है.
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